Friday, September 9, 2016

तानाशाही, मनमानी और आर्थिक बदहाली से जूझता नगर निगम भोपाल

Toc News
भोपाल नगर पालिक निगम में जबसे महापौर पद पर आलोक शर्मा निर्वाचित होकर विराजे हैं, नगर निगम की हालत ही खराब हो गई है। ऐसी आर्थिक बदहाली, प्रशासनिक मनमानी और तानाशाही भरा माहौल पहली बार किसी परिषद में बना है, ऐसा कई बार पार्षद पद के लिए निर्वाचित हो चुके पार्षदगण अक्सर कहते रहते हैं।

मेरा भोपाल क्लीन भोपाल, मेरा भोपाल ग्रीन भोपाल, मेरा भोपाल हेरीटेज भोपाल, मेरा भोपाल स्मार्ट भोपाल जैसी बातों से अपने भाषणों की शुरुआत करने वाले महापौर आलोक शर्मा अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में घोषणावीर महापौर बन कर रह गये हैं। अलोक शर्मा ने महापौर बनते ही भोपाल को साफ करने का बीड़ा उठाया था और हर वार्ड में सप्ताह में एक दिन सफाई अभियान चलाने की घोषणा की थी। शुरुआती दिनों में वह हर सप्ताह कहीं नाली, कहीं नाला साफ करते तो कहीं सड़क पर झाड़ू लगाते समाचार पत्रों और चैनलों पर दिखते थे। परंतु आज उस अभियान की क्या दशा हो गई है किसी से छिपा नहीं है और कई महीनों से महापौर आलोक शर्मा का सफाई करते हुए चित्र कहीं नहीं छपा। साथ ही सफाई अभियान भी बंद हो गया और शहर बदतर हालात की ओर बढ़ता गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की दुदर्शा भी भोपाल में हो गई है।

इस कड़ी में वर्षा पूर्व भोपाल के नालों की सफाई को लेकर नगर निगम भोपाल द्वारा किये गये तमाम दावे खोखले निकले और भारी वर्षा ने उसके दावों की पोल खोल दी और कई लोग नगर निगम की लापरवाही के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठे। हजारों लोगों को आर्थिक हानि हुई, उनके घर पानी में डूब गये जिससे उनका खाद्यान्न, पहनने का कपड़े, बिस्तर और अन्य सामग्री खराब हुई। कई दुकानों में पानी भर जाने के कारण वहां रखा हुआ सामान बर्बाद हो गया और दुकानदारों को लाखों का नुकसान हुआ। बाद में मुआवजे के नाम पर लाखों रुपया शासन को बांटना पड़ा, जिससे शासन-प्रशासन को भी आर्थिक हानि हुई।

वर्षाकाल से पूर्व कांग्रेस पार्षद दल द्वारा नाले-नालियों की साफ-सफाई को लेकर विशेष चर्चा कराने की मांग परिषद की बैठक में उठाई गई और परिषद अध्यक्ष सुरजीत सिंह चौहान ने चर्चा कराने की बात कही भी, लेकिन चूंकि इस बार की परिषद पूर्ण रूप से तानाशाही तरीके से चलाई जा रही है। महापौर आलोक शर्मा के दबाव में चर्चा कराने से पूर्व ही राष्ट्रगान प्रारंभ कर परिषद की बैठक स्थगित कर दी गई और इतने महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा नहीं हो सकी। यदि चर्चा होती तो सभी 85 पार्षद अपने-अपने क्षेत्र में नाले-नालियों की वास्तविक स्थिति को परिषद में रखते और कहां-कहां सफाई कार्य कराया जाना आवश्यक है आदि बातें महापौर और आयुक्त नगर निगम के सामने रख पाते और उन पर अमल कर शहर को वर्षा काल में हुई तबाही से बचाया जा सकता था।

नगर पालिक निगम भोपाल में इन दिनों बड़े-बड़े प्रोजेक्टों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है और गैर जरूरी कार्यों में जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गये टैक्स से पैसा खर्च कर अपव्यय किया जा रहा है। जिसका एक बड़ा उदाहरण भोपाल के बड़े तालाब के किनारे 8-10 करोड़ रुपये खर्च कर बनाई गई दीवार है जो वर्षा होते ही पानी में डूब गई और तालाब ने अपनी वास्तविक सरहदें सबको बता दीं। नगर निगम भोपाल ने कुछ बड़े रसूखदारों की जमीन बचाने के लिए ही तालाब के अंदर दीवार बनाने का कार्य किया था ताकि तालाब के दायरे से इन रसूखदारों की संपत्तियों को दूर बता कर इनको बचाया जा सके। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपने भ्रमण के दौरान इस दीवार को तोडऩे के निर्देश देकर इस बात पर मुहर लगा दी थी कि इसका निर्माण गलत तरीके से किया गया है।

नगर निगम भोपाल द्वारा झील संरक्षण के नाम पर भी अनेक ऐसे कार्य कराये गये जिसमें पैसों का दुरुपयोग हुआ और विकास कार्यों में खर्च होने वाला धन गैर जरूरी कार्यों में लगा दिया गया। पार्षद निधि और अन्य निधियों से वार्डों में होने वाले विकास कार्यों की गति थम सी गई और बहाने-बहाने से फाइलें रोकने और उनको मंजूर करने में बहुत धीमी गति की प्रक्रिया अपना कर शहर के विकास कार्यों को प्रभावित किया जा रहा है। छोटे ठेकेदारों के भुगतान महीनों तक लम्बित रहने से उनकी भी आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है। 25 दिवसीय कर्मचारियों का वेतन कई-कई महीने रोक कर दिया जा रहा है और पार्षदों को दिया जाने वाला मानदेय भी समय पर नहीं दिया जा रहा। इन सभी चीजों को देखते हुए लगता है कि नगर निगम की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है।

जहां तक सवाल प्रशासनिक मनमानी का है तो जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधि यानि पार्षदगणों को नगर निगम के उच्च पदों पर बैठे अधिकारीगण कोई महत्व नहीं देते। उनकी बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना उनकी रोजमर्रा की आदत बन गई है। इसी प्रकार कई अधिकारी तो खुले शब्दों में पार्षदों से कह देते हैं कि तुम्हारे कहने से कोई कार्य नहीं करेंगे। कई अधिकारी विधायकों, मंत्रियों के दबाव में पार्षद निधि से होने वाले कार्यों को भी रोके बैठे रहते हैं कि जब तक हमारे आका (विधायक-मंत्री) भूमिपूजन नहीं करेंगे, हमको आदेश नहीं देंगे तब तक वार्ड की जनता विकास की बाट जोहती रहे, हम तो अपने हिसाब से ही काम करेंगे। इसी कड़ी में पिछले दिनों नगर निगम आयुक्त ने यांत्रिक विभाग के एक उप यंत्री को निलम्बित भी किया था। परंतु बाद में  इंजीनियरों के लामबंद होने के बाद उसको बहाल कर दिया गया।

पार्षदों की हैसियत केवल वार्ड में सफाई करवाने, पानी सप्लाई करवाने जैसे कार्यों तक सीमित होकर रह गई है। विकास कार्यों को करवाने के लिए उन्हें एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। उसके बाद भी सुनवाई हो जाये तो बहुत। मुख्यालय कोटे से करवाये जाने वाले कार्यों पर पूूरी तरह से महापौर आलोक शर्मा का शिकंजा है। यांत्रिक विभाग के नगर यंत्री उनके बिना एक पत्ता भी नहीं हिलाते, पार्षदों के कहने पर कोई कार्य स्वीकृत करना तो दूर आयुक्त के कहने के बावजूद भी कार्य मंजूर करने में आनाकानी उनकी आदत बन गई है।

रही बात तानाशाही की तो परिषद की बैठकों के दौरान महापौर आलोक शर्मा द्वारा पार्षदों द्वारा जनहित, नगर निगम हित में पूछे गये सवालों को बिना उचित कारण मनमाने तरीके से अग्राहय करना इस बात को साबित करता है। अक्सर ऐसे प्रश्नों को महापौर द्वारा अग्राहय करवा दिया जाता है जिसमें नगर निगम से जुड़े किसी घपले-घोटाले को उजागर करने की बात हो अथवा  आर्थिक गड़बड़ी का कोई मामला हो। परिषद में विपक्षी दल कांग्रेस के पार्षदों द्वारा जनहित और नगर निगम के हित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कराने, विचार-विमर्श करने की मांग को अनसुना कर अपनी मनमर्जी से परिषद की बैठक को स्थगित करवाना इसी तानाशाही प्रवृत्ति का द्योतक है।
डेढ़ साल का कार्यकाल पूरा कर चुके महापौर आलोक शर्मा अभी तक आम जनता से, पार्षदों से मिलने के लिए कोई दिन, कोई समय तथा कोई स्थान निश्चित नहीं कर सके हैं तथा पार्षदों के फोन भी नहीं उठाते।  सभी पार्षद तथा आमजन परेशान हैं कि यदि महापौर से मिलना हो, अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराना हो तो कहां मिलें। महापौर आलोक शर्मा को पकडऩा कितना मुश्किल है यह कोई भी पार्षद चाहे कांग्रेेस का हो या भाजपा का बता सकता है। नगर निगम भोपाल में कई निर्णय अपने मनमाने तरीके से लागू करवा कर आलोक शर्मा अपनी तानाशाही प्रवृत्ति को दिखा चुके हैं। सामान्य टेण्डर की प्रक्रिया की राशि घटाने के मामले में तो महापौर परिषद के सदस्यों तक ने विरोध जताया था, परंतु आलोक शर्मा ने किसी की नहीं सुनी, उनको जो करना था उन्होंने करवा दिया।

कुल मिला कर यह परिषद तानाशाही, अधिकारियों की मनमानी और आर्थिक बदहाली के लिये आने वाले समय में याद की जाती रहेगी ऐसा प्रतीत होता है।

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