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रामायण के सभी मशहूर पात्रों से आमतौर पर हम सभी परिचित हैं। प्रभु राम, दशरथ, मां सीता, लक्ष्मण या पूरा रावण खानदान ही क्यों न हो प्रायः हम उन सभी के चरित्रों से पूरी तरह रूबरू होने का दावा तो करते ही हैं। इन सबके बारे में हमने सामान्यः वाल्मीकि रामायण या तुलसीकृत रामायण में पढ़ रखा है। इसके अलावा कई लोककृतियों व लोकगानों में इन चरित्रों की कथा कुछ अलग रूप में भी मिलती है।
मुख्य रामायण के अलावा कंबन या कृतिवासकृत रामायण की कथा भी कुछ मायनों में अलग है। लेकिन इन सब में कहीं न कहीं थोड़ी समानता जरूर होती है। किंतु आज हम आपको इन सब कथाओं से हटकर कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कम ही लोग परिचित होंगे। शायद आपको इसमें बहुत कुछ कल्पना का मिश्रण भी लगे किंतु यदि धार्मिक आख्यान के विरूपण की चिंता किए बगैर आप इस पर ध्यानपूर्वक गौर करेंगे तो आप इसकी सत्यता को अवश्य महसूस कर पाएंगे।
आपने सुना होगा कि रावण के कनिष्ठ भ्राता कुम्भकर्ण ने ब्रह्माजी से छः महीने लंबी नींद का वरदान मांगा था। इस वरदान को ब्रह्माजी ने सहर्ष स्वीकृत भी कर दिया था और तत्क्षण राक्षसराज कुम्भकर्ण छः महीने की निद्रा में चला गया। यहां तक कि युद्ध के दौरान जब रावण को लगा कि अब सेना का नेतृत्व करने के लिए कुम्भकर्ण को लाना चाहिए तो उसे जगाने के लिए बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
खैर ये तो बहुत ही चर्चित कथा है। आइए अब हम आपको कुम्भकर्ण के उस दूसरे रूप से रूबरू करवाते हैं जो बेहद रहस्यमय होने के साथ ही रोचक भी है। कहा जाता है कि रावण अपने समय का सर्वाधिक विद्वतजन था। उसके खानदान में एक से एक धुरंधर पड़े थे, जिनकी बौद्धिक क्षमता तत्कालीन विश्व में अतुलनीय थी।
परंतु इनमें से कुम्भकर्ण एक ऐसा व्यक्तित्व था जिसकी कहानी सचमुच हैरान करने वाली है। कुम्भकर्ण के बारे में ऐसा माना जाता है कि वह छः महीने सोता था। लेकिन एक परम ज्ञानी महर्षि सोकर प्रमादी होकर अपना जीवन क्योंकर व्यतीत करेगा? कई शोधकारों ने कुम्भकर्ण की इस लंबी नींद का राजफ़ाश किया है।
उनके अनुसार कुम्भकर्ण एक वैज्ञानिक था, जिसे अपने अत्याधुनिक व अकल्पनीय शोधों के लिए गोपनीय स्थान पर जाना पड़ता था। मान्यतानुसार ये गोपनीय स्थान किष्किंधा के दक्षिण में किसी गुफा में था, जहां पर उसने आश्चर्यजनक रूप से एक भारी-भरकम प्रयोगशाला स्थापित कर रखी थी। वह अधिकांश वक्त इसी स्थान पर अपने सहयोगियों के साथ गंभीर व उन्नत किस्म के प्रयोग करता रहता था। इससे हटकर कुछ शोधकर्ता ये दावा करते हैं कि कुम्भकर्ण की वैज्ञानिक प्रयोगशाला लैटिन अमेरिकी प्रदेश में थी, जहां जाने व लौटने के लिए वह स्वयं के बनाए अत्याधुनिक विमानों का इस्तेमाल करता था।
शोधकारों ने ये भी दावा किया है कि रावण ने स्वचालित हथियार व दिव्यास्त्र सहित कई विमान भी कुम्भकर्ण की सहायता से ही हासिल किए थे। जिस पुष्पक विमान का ज़िक्र वाल्मीकि रामायण में आता है, उसे भी रावण ने कुम्भकर्ण से ही बनवाया था। अतुलनीय रूप से इन विमानों की क्षमता आज के वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल देती है। यदि इसे केवल कपोल कथा न मानी जाए तो इस तथ्य को स्वीकार करने में कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए कि कुम्भकर्ण की वैज्ञानिक क्षमता अद्भुत थी तथा वह तत्कालीन विश्व का महानतम शोधकर्ता था।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ में कुछ ऐसे दिव्यास्त्रों का नाम लिया है, जिनकी विनाश क्षमता बहुत ज्यादा थी। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि ये सभी दिव्यास्त्र कुम्भकर्ण की महान बुद्धि के परिचायक थे, जिन्हें उसने अत्यल्प समय में विकसित किया और रावण ने उनकी सहायता से उस समय के लगभग सभी महान वीरों को परास्त किया।
हालांकि इन सब वक्तव्यों को शोधकर्ताओं ने किसी पुख्ता आधार पर पुष्ट नहीं किया है और न ही इन्हें सिद्ध करने के लिए किसी भौतिक साक्ष्य का सहारा लिया है। किंतु इसके बावज़ूद उनके ऐसे कथन कुम्भकर्ण की रहस्यमयी नींद का कुछ न कुछ जवाब जरूर देते नज़र आते हैं।
अगले आलेखों के क्रम में हम रावण तथा रामायण से जुड़े ऐसे ही कुछ और अनसुलझे रहस्यों को सामने लाएंगे, जिन्हें जानना वाकई रुचिकर होगा............
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