TOC NEWS // नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच इस बात को तय करेगा कि क्या 'राइट टु प्रिवेसी' यानी 'निजता का अधिकार' संविधान के तहत मूल अधिकार है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने मामले को 9 जजों की बेंच को रेफर कर दिया। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि इस मामले को अब 9 जजों की संवैधानिक बेंच सुनेगी और वह इस मामले में पहले से दिए गए दो जजमेंट को एग्जामिन करेगी।
अटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि खड़ग सिंह और एमपी शर्मा से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग बेंच ने कहा हुआ है कि राइट टु प्रिवेसी मौलिक अधिकार नहीं है। 1950 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच ने एमपी शर्मा से संबंधित वाद में कहा था कि राइट टु प्रिवेसी मौलिक अधिकार नहीं है। वहीं 1961 में खड़ग सिंह से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट की 6 जजों की बेंच ने भी राइट टु प्रिवेसी को मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं माना था।
आधार के लिए लिए जाने वाला डेटा राइट टु प्रिवेसी का उल्लंघन करता है या नहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने ये सवाल आया कि क्या राइट टु प्रिवेसी मूल अधिकार है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि पहले अब ये तय किया जाएगा कि राइट टु प्रिवेसी संविधान के तहत मूल अधिकार है या नहीं।
इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच सुनवाई करेगी और पहले के दिए जजमेंट को देखेगी। इसके बाद आधार मामले में प्रिवेसी को देखेगी। चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि पहले हम ये दखेंगे कि राइट टु प्रिवेसी संविधान के तहत मूल अधिकार है या नहीं। अब 9 जजों की बेंच बुधवार को इस मामले की सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश अटर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के जजमेंट का हवाला दिया। अदालत में सुनवाई के दौरान जस्टिस जे चेलामेश्वर ने टिप्पणी की कि ये तर्क सही नहीं है कि संविधान में राइट टु प्रिवेसी का जिक्र नहीं है लेकिन कॉमन लॉ में है। ये सही है कि ये लिखित में नहीं है लेकिन फ्रीडम ऑफ प्रेस भी लिखा नहीं हुआ है लेकिन उसकी व्याख्या की गई है। ऐसे में पहले का जजमेंट देखना जरूरी है।
गौरतलब है कि 23 जुलाई 2015 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राइट टु प्रिवेसी संविधान के तहत मूल अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार की ओर से पेश तत्कालीन अटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी कि संविधान में देश के नागरिकों के लिए राइट टु प्रिवेसी का प्रावधान नहीं है।
उन्होंने 1950 के 8 जजों के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला देकर कहा था कि जजमेंट में कहा गया था कि राइट टु प्रिवेसी मूल अधिकार नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि राइट टु प्रिवेसी से संबंधित कानून अस्पष्ट है। आधार कार्ड के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि राइट टु प्रिवेसी, मूल अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि इस सवाल को अभी तय किया जाना है और ऐसे में मामले को लार्जर बेंच को रेफर कर देना चाहिए।
No comments:
Post a Comment