TOC NEWS // अवधेश पुरोहित
भोपाल । भारतीय जनता पार्टी की तेजतर्रार नेत्री उमा भारती की बदौलत २००३ में उन परिस्थितियों में जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के राजनीतिक गुरू सुंदरलाल पटवा के कार्यकल के दौरान भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ किये गये अपमानजनक बर्ताव से गुस्साएं भाजपा के वह निष्ठावान कार्यकर्ता धीरे-धीरे घर बैठ गए थे और १९९८ में परिास्थितियां भाजपा के पक्ष में पूरे प्रदेश में माहौल होने के बावजूद भी भाजपा को १९९८ में सफलता नहीं मिल पाई थी जबकि इस समय प्रदेश के संगठन प्रभारी वर्तमान प्रधानंत्री नरेन्द्र मोदी के हआ करते थ्ज्ञे,
लेकिन नरेन्द्र मोदी को भी पटवा गुट ने इतना असहयोग किया कि मोदी की लाख रणनीति को भी इन नेताओं ने असफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी इन सभी रूठे नेताओं और असंतुष्ट नेताओं और कार्यकतराओं को मनाने में २००३ में उमा भारती को जितनी मेहतनम मशक्कत को करनी पड़ी उतनी मेहनत शायद तत्कालीन दिग्विजय सिंह की सरकार से इस प्रदेश को मुक्ति दिलाने के लिये नहीं करनी पड़ी होगी। भाजपा की अंदरुनी राजनीति की शिकार होकर उमा भारती को उस समय चलता किया गया और इस सत्ता की कमान बाबूलाल गौर के हाथा में आई लेकिन बाबूलाल गौर के खिलाफ ७४ बंगले में स्थित एक सरकारी बंगले से जो मुहिम चली उस मुहिम के चलते बाबूलाल गौर को इतना परेशान किया गया कि भी आखिर भाजपा के नेता की शह पर चलाये जा रहे आंदोलन के कारण सत्ता उनसे उमा भारती की तरह छीन ली गई,
इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता संभाली लेकिन मजे की बात यह है कि शिवरजा के सत्ता संभालते ही उनके विधानसभा क्षेत्र बुधनी से अवैध वन कटाई अवैध खनिज और रेत का जो कारोबार का श्रीगणेश हुआ, और ज्यों -ज्यों शिवराज की सत्ता चरम पर आती गई वैस-वैसे यह कारोबार पूरे प्रदश्ेा में अपन वर्चस्व कायम करना रहा। हालांकि इस रतेत के कारोबार के खेल में मुख्यमंत्री के परिजन शामिल हैं तो वहीं भाजपा के अधिकांश जनप्रतिनिाियों का इस कारोबार को संरक्षण प्राप्त है और आज स्थिति यह है कि ठेठ आदिवासी जिला अलीराजपूर तक यह रेत का कारोबार भाजपाई नेताओं और बैठे प्रशासनिक अधिकारियों के संरक्षण में यह काराबार जारी है,
जिस प्रकार से यह कारोबार जारी है शायद उसी प्रकार से सरकार के लाख किसान की खेती को लाभ का धंधा बनाने के ढिंढोरा पीटे जाने के बावजूद भी ख्ेाती को लाभ का खंधा बनाने की कोई रुचि सत्ताधीशेां की नहीं है उन्हें तो किसानों के खेत नहीं बल्कि प्रदेश की नदियों जिनमें शिवराज की बुढ़ापे की काशी नर्मदा भी शामिल है। उसकी रेत के कारोबार में रुचि ज्यादा है शायद यही कारण है जिसके चलते किसानों में आक्रोश धीरे-धीरे परपता रहा और जून के प्रथम सप्ताह में वह आंक्रोोश उस प्रदेश के उस मालवा क्षेत्र से जो कभी संघ की प्रयोगशाला का बहुत बड़ा गड़ माना जाता था। उसी मालवा के मंदसौर में किसानों का आक्रोश ज्वालामुखी बनकर सउ़कों पर फूटा और इस आक्रोश के बाद भाजपा के नेताओं की उन नेताओं के साथ सत्ता के मुखिया का वह भ्रम टूटा जिसके चलते वह इस प्रदेश को स्वर्णिम मध्यप्रदेश की ओर ले जाने का सप ना संजोएस हुए थे और वह इसी सपने का ढिंढोरा पीटते हुए
इस प्रदेश की जनता को ‘सबका साथ, सबका विकास का ढिंढोरा पीटते रहे लेकिन किसान आंदोलन के बाद भी इस नोर की पोल खुलती नजर आई और यह स्पष्ट दिखाई देने लगा कि प्रदेश में सबका विकास सबके साथ नहीं, भ्रष्ट अधिकारियों के साथ भाजपा के नेताओं का विकास की पोल खुलती नजर आई और मंदसौर में हुए उग्रआंदोलन के बाद जब संघ और भाजपा नेताओं की नींद उड़ी तो उन्हें भी अपना भविष्य खतरे में दिखार्इै देने लगा और सभी उसकी खोज में लग गए कि आखिर मुख्यमंत्री शिवाज सिंह के रामराज्य के ढिंढोरे के चलते ऐसा क्या हुआ कि क्रिसान आ्रोषित हो गए। हालांकि इस किसान आंदोलन को अफीम तस्करों से जोड़कर प्रदेश ककी जनता के साथ-साभ भाजपा नेताओं को गुमरह करने का भी रास्ता निकाला गया और उसी तरीके को अपनाकर अब सरकारी स्तर पर यह प्रचारित किया जा रहा है कि इस अंदोलन के पीछे अफीम तस्करों का हाथ था,
बात यदि अफीम मस्करों की करें तो प्रदेश के जनसंघ से लेकर भाजपा की राजनीति तक उससे जुड़े नेता जिनमें शिवराज सिंह चौहान के गुरु सुन्दरलाल पटवा पर भी अब अफीम तस्कर के साथ दोस्ताना की खबरें गलबहैया करने के आरोप तो हमेशा लगते ही नहीं यही नहीं नीमच के लोगों के अनुसार तो पटवा के परिवार द्वारा खरीदी गई एक सम्पत्ति की रजिस्ट्री में यह भी लिखा हुआ है कि पारिवारिक मि अफीम तस्कर के द्वारा इस सम्पत्ति का मूल्य अदा किया गया है, पता नहीं इस चर्चा में कितनी दम हैइसका खुलासा तो स्वर्गीय सुनदरलाल पटवा के परिजन या मध्यप्रदेश सरकार के रजिस्ट्रार फम्र्स एवं स्थायें ही कर सकते हैं,जिनके पास इस रजिस्ट्री की एक प्रति उपलब्ध होगी,
लेकिन प्रदेश के उस मालवा अंचल में जो कभी संघ की एक बड़ी प्रयोगशाला रही हो वहां से पनपना किसान आंदोलन यह बात जाहिर करता है कि प्रदेश के किसानों में शिवराज सरकार के खिलाफ आक्रोश जारी है, यही नहीं संघ और भाजपा नेताओं के द्वारा इस अ ांदोलन के बाद लिये गये जायजे के बाद इस रिपोर्ट का खुलासा हुआ उसमें भी यह बताया गया कि यह आंदोलन प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार और अधिकारियों की मनमानी के कारण हुआ है। इस तरह की रिपोर्ट आने के बाद अब भाजपा और संघ से जुड़ेे नेताओं में इस बात को लेकर चिंता व्याप्त हो गई कि यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो शिवराज सरकार का तो भविष्य खतरे में ही है उनको भी अपने भविष्य में अंधकार नजर आ रहा है।
इन्हीं सब मुद्दों को ध्यान में रखकर अब भाजपा और संघ के जुड़े हर कोई नेता अपने भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में चिंतन और मंथन करने में लग गया और वह अब इस प्रयास में है कि कैसे भी प्रदेश में पनप रहे इस किसानों के मन में आक्रोश को कैसे शांत किया जाए। तो वहीं इन परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिये कांग्रेस भी इसे ऑक्सीजन मानकर अब मैदान में दौड़ती नजर आ रही है, जिसके चलते वह शिवराज सरकार और भाजपा के खिलाफ प्रदेश में बढ़ रहे जनआक्रोश का लाभ उठाने का हर संभव प्रयास करने में लगी है देखना यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों में से कौन इस स्थिति का लाभ उठाने में सफल हो पाता है।
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