सोशल मीडिया पर क्यों मचा है बबाल, मंगला मिश्रा की योग्यता पर सवालिया निशान
भोपाल,। मध्यप्रदेश माध्यम में संचालक के पद पर जमे मंगला प्रसाद मिश्रा की योगयता पर शुरू से ही सवालिया निशान लगे रहे हैं, लेकिन उन्हे एक के बाद एक पदोन्नति मिलना जाहिर करता है कि व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो व्यक्ति स्वयं स्वीकार कर चुका हो कि उसे समाचार की भाषा का पूर्ण ज्ञान नहीं है उसे मध्यप्रदेश माध्यम और जनसंपर्क जैसे विभाग में महत्वपूर्ण पर कैसे दिया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि 1994 में साध्वी ऋतंभरा के एक मामले में मंगला मिश्रा ने स्वयं ही सर्वोच्च न्यायालय में दिए अपने बयान में माफी मांगते हुए कहा था कि मुझे शब्दावलि का ज्ञान नहीं है, उस समय जस्टिस रामास्वामी ने मंगला मिश्रा को फटकार लगाई थी। गौरतलब है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मंगला मिश्रा को जनता को गुमराह करने का दोषी बनाया था।
सूत्रों की मानें तो मंगला प्रसाद मिश्रा की शैक्षणिक योग्यता जानने के लिए अब तक सैकडों आदेवन सूचना के अधिकार के तहत दिए गए लेकिन उनका उत्तर नहीं दिया गया। सूत्र बताते हैं कि मंगला मिश्रा ने अपनी एक बीए की मार्कशीट दिखाई थी, जो 78-79 की है उस मार्कशीट की सत्यता पर भी सवालिया निशान लगे हैं, यहीं नहंी कहा तो यह भी जा रहा है कि विभाग के रिकार्ड में मंगला मिश्रा की शैक्षधिक योग्यता के दस्तावेज सही नहीं हैं।
सर्विस रिकार्ड में भी लिखे हुए में काट-छांट की गई है। सूत्रों की मानें तो मंगला प्रसाद मिश्रा के पास उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ के महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन विश्वविद्यालय की डिग्री है, जबकि इस यूनिवर्सिटी को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने फर्जी विश्वविद्यालय की सूची में डाल दिया है।
मंगला मिश्रा की डिग्री को कैसे सही माना जाए। सवाल तो यहां भी खड़ा होता है कि जो व्यक्ति स्वयं को सर्वोच्च न्यायालय में अल्पज्ञानी बता रहा है उसने स्नातक में संस्कृत, अर्थशास्त्र और 'सैन्य विज्ञान' जैसे विषय में द्वितीय श्रेणी में परीक्षा कैसे उत्तीर्ण कर ली है।
अब तक जिन लोगों ने भी मंगला मिश्रा की योग्यता जानने के लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दिए हैं उन्हे अब तक उसकी जानकारी नहीं दी गई, जबकि राज्य सूचना आयोग ने 2014 में अपने एक आदेश में कहा था कि सरकारी रिकार्ड खो जाने या लापरवाही से नष्ट हो जाने की स्थिति में जिम्मेदार व्यक्ति पर एफआइआर दर्ज होनी चाहिए। फिर मंगला मिश्रा के मामले में इतनी नरम दिली क्यों?
सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने वाले एक आवेदक ने नाम न छापने की बताया कि हमने मंगला मिश्रा की शैक्षणिक योग्यता जानने कई आवेदन दिए हैं लेकिन एक का भी उत्तर नहीं दिया गया। जिन्हे सूचना के अधिकार में सर्विस रिकार्ड की सत्यप्रतिलिपि दी गई है उस प्रतिलिपि में संयुक्त संचालक जनसंपर्क संचालनालय की सील तो लगी है लेकिन हस्ताक्षर नहीं हैं इससे लगता है कि मंगला मिश्रा के मामले में सब कुछ फर्जी है।
इनका कहना है
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में जो हो जाए कम है यहां अयोग्य व्यक्ति को उच्च स्थान मिल जाता है और योग्यता को दरकिनार कर दिया जाता है। सरकार की छवि बनाने वाले विभाग में ही सरकार ने यदि इस तरह की छवि वाले लोगों को उपकृत करने की परंपरा चला रखी है तो और क्या अपेक्षा की जा सकती है।
अजय सिंह
नेता प्रतिपक्ष, मप्र विधानसभा
*राष्ट्रीय हिन्दी मेल विशेष*
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