अवधेश पुरोहित @ Toc News
भोपाल । इन दिनों प्रदेश में कुपोषण को लेकर जहां पक्ष-विपक्ष में कुपोषण के आंकड़ों को लेकर राजनैतिक द्वंद्व मचा हुआ है तो इसी बीच प्रदेश के मंत्रियों के दावों को सरकार के ही दस्तावेज झुठलाने में लगे हुए हैं। मजे की बात यह है कि जिस प्रदेश के सत्ता के मुखिया मध्यप्रदेश को स्वर्णिम मध्यप्रदेश में ले जाने का ढिंढोरा पीट रहे हैं
उस प्रदेश में किसी भी प्रकार से बचपन पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है, स्थिति यह है कि सरकार के गलत रवैये और नीतियों के चलते जहां एक ओर बच्चों की कुपोषण से लगातार मृत्यु होने का सिलसिला जारी है तो वहीं दूसरी ओर राज्य में स्थापित भारी उद्योगों की चिमनियों से उगल रहे जहर के कारण प्रदूषण की वजह से मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के स्वर्णिम मध्यप्रदेश की धरा में आने के पहले ही तमाम बीमारियां लेकर आ रहे हैं, लेकिन इस ओर आज तक किसी भी राजनेता या सरकार की निगाह नहीं गई और आखिर निगाह जाए ही क्यों जब कुपोषण पर शिवराज सरकार अपने कार्यकाल के दौरान २२ अरब खर्च करने के बावजूद भी इस प्रदेश पर लगा कुपोषण का कलंक नहीं मिटा पाई तो फिर एक नया सिरदर्द प्रदूषण को लेकर क्यों पैदा करे? शायद यही वजह है कि आज प्रदेश में बच्चे किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं हैं, कुपोषण को लेकर जहां राजनेताओं में आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है तो वहीं सरकारी दावों को एक दूसरे विभाग के ही दस्तावेज झुठलाने में लगे हुए हैं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने पिछले दिनों दावा किया कि राज्य में ७० हजार बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं
लेकिन उनके इस दावे को झुठलाने का काम शिवराज सरकार के महिला बाल विकास द्वारा पूरे प्रदेश में कुपोषण को लेकर कराये गये सर्वे से ही आईना दिखाने का काम करने में लगा हुआ है, जहां स्वास्थ्य मंत्री दावा करते हैं कि प्रदेश में ७० हजार बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं तो उन्हें के इस दावे को महिला बाल विकास के आंकड़े झुठलाते हुए उन्हें आईना दिखाते हैं और उन आंकड़ों के अनुसार अकेले धार जिले में ७८ हजार ७७३ बच्चे होने का खुलासा कर इस सरकार को आईना दिखाने का काम करते हैं, मजे की बात यह है कि इस कुपोषण की जद्दोजहद के बीच घिरी सरकार के मुखिया कुपोषण पर श्वेत पत्र जारी करने की घोषणा करता है लेकिन उनकी इस घोषणा से यह साफ नजर आता है कि उनके चहेते अधिकारी जिन पर प्रदेश में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के कुपोषण आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी है उन्हीं चहेते अधिकारी के कार्यकाल के दौरान आठ करोड़ रुपये का जो घोटाला उजागर हुआ है उसे शायद दबाने का प्रयास इस श्वेत पत्र के माध्यम से किये जाने की सरकारी कोशिश है, राज्य में यूँ तो जबसे शिवराज सरकार बनी है
तबसे कुपोषण के मामले में नये-नये प्रयोग किये गये कभी इस सरकार के द्वारा पंजीरी तो कभी मुरमुरे अब वर्तमान महिला बाल विकास मंत्री कुपोषण को सोजना की फली से समाप्त कर रही हैं, उनका यह दावा उस सत्तू की कहानी से कम नहीं है, जिसमें एक भिखारी भीख मांगकर शादी करने और अपने परिवार का पालन पोषण करने जैसे सपने संजोता है और उन्हीं सपने देखते-देखते सत्तू से भरे घड़े में लात मार देता है और वह सपना टूट जाता है, ठीक इसी तरह से महिला बाल विकास मंत्री इस तरह का दावा करती नजर आ रही हैं हालांकि यह इस विभाग के लिये नई नहीं हैं पहले भी उनके पास इस विभाग का प्रभार रहा है, अब वह पूरे प्रदेश में सोजना के पेड़ लगवाएंगी और जब वह बड़े होंगे तब उनकी फलियां कुपोषित बच्चों को बांटी जाएंगी, तब कुपोषण खत्म होगा, महिला बाल विकास मंत्री के इस तरह के दावे से यह बात साफ होती है कि सरकार कुपोषण के मामले में कितनी गंभीर है। मजे की बात यह है कि जिस झाबुआ और श्योपुर के कुपोषण को लेकर पहले भी भोपाल से लेकर दिल्ली तक हंगामा खड़ा हो चुका है लेकिन उसके बावजूद भी यह सरकार नहीं चेती और आज भी उन्हीं क्षेत्रों में कुपोषण की तादाद ज्यादा है।
यूँ तो कुपोषण से पूरे प्रदेश में बच्चे पीडि़त हैं लेकिन राज्य में जहां अधिक कुपोषण हैं उनमें प्रथम स्थान पर धार जिला जहां ७८ हजार ३७३ बच्चे कुपोषित हैं तो वहीं बड़वानी ५८ हजार ७८१ बच्चे, खरगोन ५८ हजार ५१२, रीवा में ४३ हजार ८४८, सतना में ४७ हजार ७६७, शिवपुरी में ४६ हजार ०३५, अली राजपुर में ४० हजार १०७, झाबुआ में ३६ हजार ९२२, छतरपुर में ३८ हजार २८७, रतलाम में ३० हजार ७०७ बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं। मजे की बात यह है कि कुपोषण को लेकर यह सरकार कितनी गंभीर है। सरकारी दावों से यह साफ होता है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और रसरकार द्वारा कुपोषण खात्म किये जाने के दावों से यह पता चलता है कि कुपोषण के नाम पर भी यह सरकार राजनीति का खेल खेल रही है तो वहीं विपक्ष अपने राजधर्म का निर्वाहन सरकार को घेरकर करने में लगा हुआ है।
कुपोषण के मामलम में यह सरकार कितनी गंभीर है इसका एक नमूना इस बात से उजागर होता है कि हाल ही में श्योपुर जिले में कुपोषण की स्थिति का जायजा लेने प्रदेश के दो जिम्मेदार विभाग के अधिकारी जेएन कंसोटिया प्रमुख सचिव महिला एंव बाल विकास और गौरी सिंह गईं तो उन्होंने कुपोषित बच्चों के संबंध जमीनी स्थिति का जायजा तो लिया लेकिन उान्होंने सरकार और महिला बाल विकास की मंत्री की तर्ज पर कुपोषण से मुक्ति दिलाने का एक नया तरीका खोज निकाला, उनकी इस अद्वितीय खोज के अनुसार अपने बच्चों के कुपोषण गमगीन महिलाओं से उन्होंने रामदेव बाबा का भजन गोन का फरमान जारी किया और वह उन गमगीन महिलपओं द्वारा गाये गये भजन से इतने प्रसन्न हो गए कि लोकतंत्र के आध्ुानिक इन राजाओं ने अपने विभाग के जेई से उन महिलाओं को ढोल, मजीरा और पेटी दिलाने का फरमान जारी कर दिया।
उनके इस तरह के लोकशाही वाले अंदाज में जारी किये गये फरमान से यह पता चलता है कि अब रामदेव बाबा के भजन गाने से कुपोषित बच्चों का उपचार किया जा सकता है, कुल मिलाकर राज्य में कुपोषण को लेकर नये-नये तरीके खोजे जा रहे हैं, जिससे इस कलंक से प्रदेश सरकार को मुक्ति मिले। तो वहीं कुपोषण के नाम पर जारी होने वाले श्वेत पत्र के माध्यम से आठ करोड़ रुपये का मुख्यमंत्री के नजदीक और चहेते अधिकारियों द्वारा किये गये घोटालों को भी दबाने का प्रयास किया जा रहा है, पता नहीं यह सरकार बच्चों के प्रति कितनी गंभीर है या फिर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को वितरण किये जा रहे निवाले पर यह सरकार में बैठे अधिकारी डाका डालकर प्रदेश के बच्चों का कुपोषण दूर करना तो नहीं लेकिन अपना पोषण करने की ओर उनका ज्यादा ध्यान है
तभी तो राज्यभर के महिला बाल विकास के वह अधिकारी जो कुपोषण के नाम पर जो खेल खेल रहे हैं और अरबों रुपये इसके नाम पर बहाकर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं यदि ईमानदारी से इस दिशा में जरा भी काम किया जाता तो शायद राज्य में कुपोषण के आंकड़े कुछ कम नजर आते लेकिन रंगोली की तरह फर्जी आंकड़े की जो सजावट इन अधिकारियों द्वारा की जाती है उसे देखकर हर कोई अचंभित है शायद यही वजह है कि इसी तरह की अधिकारियों की चलते हर कोई प्रदेश में बच्चों की हालत बेहतर मानकर चल रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह नहीं है यदि प्रदेश में महिला बाल विकास के अधिकारियों के अनुसार १३ लाख कुपोषित बच्चे हैं तो गैर सरकारी आंकड़े क्या होंगे इसकी तो कल्पना की जा सकती है कुपोषण के मामले की स्थिति को देखते हुए तो यह संख्या लगभग ५० लाख के करीब भी हो सकती है।
फिलहाल आंकड़ेबाजी का खेल कुपोषण के नाम पर वर्षों से जारी है और इसी के चलते अभी तक २२ अरब रुपये कुपोषण के नाम पर कर्जदार खजाने से खर्च कर दिये जाने के बावजूद भी कुपोषित बच्चों की स्थिति में कोई सुधार आता दिखाई नहीं दे रहा है, यह स्थिति तो बच्चों की है जहां तक पचपनप का सवाल है तो इस प्रदेश में संविधान में प्रदत्त नागरिकों को मिलने वाली मूलभूत सुविधा जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और नि:शुल्क पानी उपलब्ध कराये जाने की संविधान में दिये गये अधिकारों पर भी यह कटौती करने में लगी हुई है तभी तो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में निजी हाथों को सौंपने की तैयारी में यह स वरकार लगी हुई है और जहां तक शिक्षा का सवाल है तो इस प्रदेश में शिक्षा की स्थिति यह है कि बच्चों को ज्ञान इतना है कि वह अपने सांसद का नाम भी नहीं जानते हैं और न छ: का पहाड़ा ठीक से पड़ पाते हैं। कुल मिलाकर इस प्रदेश में बचपन ही सुरक्षित नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्वमिर्णम स्थिति को मध्यप्रदेश के दावे आखिर किसके लिये किये जा रहे हैं।
भोपाल । इन दिनों प्रदेश में कुपोषण को लेकर जहां पक्ष-विपक्ष में कुपोषण के आंकड़ों को लेकर राजनैतिक द्वंद्व मचा हुआ है तो इसी बीच प्रदेश के मंत्रियों के दावों को सरकार के ही दस्तावेज झुठलाने में लगे हुए हैं। मजे की बात यह है कि जिस प्रदेश के सत्ता के मुखिया मध्यप्रदेश को स्वर्णिम मध्यप्रदेश में ले जाने का ढिंढोरा पीट रहे हैं
उस प्रदेश में किसी भी प्रकार से बचपन पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है, स्थिति यह है कि सरकार के गलत रवैये और नीतियों के चलते जहां एक ओर बच्चों की कुपोषण से लगातार मृत्यु होने का सिलसिला जारी है तो वहीं दूसरी ओर राज्य में स्थापित भारी उद्योगों की चिमनियों से उगल रहे जहर के कारण प्रदूषण की वजह से मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के स्वर्णिम मध्यप्रदेश की धरा में आने के पहले ही तमाम बीमारियां लेकर आ रहे हैं, लेकिन इस ओर आज तक किसी भी राजनेता या सरकार की निगाह नहीं गई और आखिर निगाह जाए ही क्यों जब कुपोषण पर शिवराज सरकार अपने कार्यकाल के दौरान २२ अरब खर्च करने के बावजूद भी इस प्रदेश पर लगा कुपोषण का कलंक नहीं मिटा पाई तो फिर एक नया सिरदर्द प्रदूषण को लेकर क्यों पैदा करे? शायद यही वजह है कि आज प्रदेश में बच्चे किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं हैं, कुपोषण को लेकर जहां राजनेताओं में आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है तो वहीं सरकारी दावों को एक दूसरे विभाग के ही दस्तावेज झुठलाने में लगे हुए हैं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने पिछले दिनों दावा किया कि राज्य में ७० हजार बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं
लेकिन उनके इस दावे को झुठलाने का काम शिवराज सरकार के महिला बाल विकास द्वारा पूरे प्रदेश में कुपोषण को लेकर कराये गये सर्वे से ही आईना दिखाने का काम करने में लगा हुआ है, जहां स्वास्थ्य मंत्री दावा करते हैं कि प्रदेश में ७० हजार बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं तो उन्हें के इस दावे को महिला बाल विकास के आंकड़े झुठलाते हुए उन्हें आईना दिखाते हैं और उन आंकड़ों के अनुसार अकेले धार जिले में ७८ हजार ७७३ बच्चे होने का खुलासा कर इस सरकार को आईना दिखाने का काम करते हैं, मजे की बात यह है कि इस कुपोषण की जद्दोजहद के बीच घिरी सरकार के मुखिया कुपोषण पर श्वेत पत्र जारी करने की घोषणा करता है लेकिन उनकी इस घोषणा से यह साफ नजर आता है कि उनके चहेते अधिकारी जिन पर प्रदेश में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के कुपोषण आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी है उन्हीं चहेते अधिकारी के कार्यकाल के दौरान आठ करोड़ रुपये का जो घोटाला उजागर हुआ है उसे शायद दबाने का प्रयास इस श्वेत पत्र के माध्यम से किये जाने की सरकारी कोशिश है, राज्य में यूँ तो जबसे शिवराज सरकार बनी है
तबसे कुपोषण के मामले में नये-नये प्रयोग किये गये कभी इस सरकार के द्वारा पंजीरी तो कभी मुरमुरे अब वर्तमान महिला बाल विकास मंत्री कुपोषण को सोजना की फली से समाप्त कर रही हैं, उनका यह दावा उस सत्तू की कहानी से कम नहीं है, जिसमें एक भिखारी भीख मांगकर शादी करने और अपने परिवार का पालन पोषण करने जैसे सपने संजोता है और उन्हीं सपने देखते-देखते सत्तू से भरे घड़े में लात मार देता है और वह सपना टूट जाता है, ठीक इसी तरह से महिला बाल विकास मंत्री इस तरह का दावा करती नजर आ रही हैं हालांकि यह इस विभाग के लिये नई नहीं हैं पहले भी उनके पास इस विभाग का प्रभार रहा है, अब वह पूरे प्रदेश में सोजना के पेड़ लगवाएंगी और जब वह बड़े होंगे तब उनकी फलियां कुपोषित बच्चों को बांटी जाएंगी, तब कुपोषण खत्म होगा, महिला बाल विकास मंत्री के इस तरह के दावे से यह बात साफ होती है कि सरकार कुपोषण के मामले में कितनी गंभीर है। मजे की बात यह है कि जिस झाबुआ और श्योपुर के कुपोषण को लेकर पहले भी भोपाल से लेकर दिल्ली तक हंगामा खड़ा हो चुका है लेकिन उसके बावजूद भी यह सरकार नहीं चेती और आज भी उन्हीं क्षेत्रों में कुपोषण की तादाद ज्यादा है।
यूँ तो कुपोषण से पूरे प्रदेश में बच्चे पीडि़त हैं लेकिन राज्य में जहां अधिक कुपोषण हैं उनमें प्रथम स्थान पर धार जिला जहां ७८ हजार ३७३ बच्चे कुपोषित हैं तो वहीं बड़वानी ५८ हजार ७८१ बच्चे, खरगोन ५८ हजार ५१२, रीवा में ४३ हजार ८४८, सतना में ४७ हजार ७६७, शिवपुरी में ४६ हजार ०३५, अली राजपुर में ४० हजार १०७, झाबुआ में ३६ हजार ९२२, छतरपुर में ३८ हजार २८७, रतलाम में ३० हजार ७०७ बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं। मजे की बात यह है कि कुपोषण को लेकर यह सरकार कितनी गंभीर है। सरकारी दावों से यह साफ होता है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और रसरकार द्वारा कुपोषण खात्म किये जाने के दावों से यह पता चलता है कि कुपोषण के नाम पर भी यह सरकार राजनीति का खेल खेल रही है तो वहीं विपक्ष अपने राजधर्म का निर्वाहन सरकार को घेरकर करने में लगा हुआ है।
कुपोषण के मामलम में यह सरकार कितनी गंभीर है इसका एक नमूना इस बात से उजागर होता है कि हाल ही में श्योपुर जिले में कुपोषण की स्थिति का जायजा लेने प्रदेश के दो जिम्मेदार विभाग के अधिकारी जेएन कंसोटिया प्रमुख सचिव महिला एंव बाल विकास और गौरी सिंह गईं तो उन्होंने कुपोषित बच्चों के संबंध जमीनी स्थिति का जायजा तो लिया लेकिन उान्होंने सरकार और महिला बाल विकास की मंत्री की तर्ज पर कुपोषण से मुक्ति दिलाने का एक नया तरीका खोज निकाला, उनकी इस अद्वितीय खोज के अनुसार अपने बच्चों के कुपोषण गमगीन महिलाओं से उन्होंने रामदेव बाबा का भजन गोन का फरमान जारी किया और वह उन गमगीन महिलपओं द्वारा गाये गये भजन से इतने प्रसन्न हो गए कि लोकतंत्र के आध्ुानिक इन राजाओं ने अपने विभाग के जेई से उन महिलाओं को ढोल, मजीरा और पेटी दिलाने का फरमान जारी कर दिया।
उनके इस तरह के लोकशाही वाले अंदाज में जारी किये गये फरमान से यह पता चलता है कि अब रामदेव बाबा के भजन गाने से कुपोषित बच्चों का उपचार किया जा सकता है, कुल मिलाकर राज्य में कुपोषण को लेकर नये-नये तरीके खोजे जा रहे हैं, जिससे इस कलंक से प्रदेश सरकार को मुक्ति मिले। तो वहीं कुपोषण के नाम पर जारी होने वाले श्वेत पत्र के माध्यम से आठ करोड़ रुपये का मुख्यमंत्री के नजदीक और चहेते अधिकारियों द्वारा किये गये घोटालों को भी दबाने का प्रयास किया जा रहा है, पता नहीं यह सरकार बच्चों के प्रति कितनी गंभीर है या फिर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को वितरण किये जा रहे निवाले पर यह सरकार में बैठे अधिकारी डाका डालकर प्रदेश के बच्चों का कुपोषण दूर करना तो नहीं लेकिन अपना पोषण करने की ओर उनका ज्यादा ध्यान है
तभी तो राज्यभर के महिला बाल विकास के वह अधिकारी जो कुपोषण के नाम पर जो खेल खेल रहे हैं और अरबों रुपये इसके नाम पर बहाकर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं यदि ईमानदारी से इस दिशा में जरा भी काम किया जाता तो शायद राज्य में कुपोषण के आंकड़े कुछ कम नजर आते लेकिन रंगोली की तरह फर्जी आंकड़े की जो सजावट इन अधिकारियों द्वारा की जाती है उसे देखकर हर कोई अचंभित है शायद यही वजह है कि इसी तरह की अधिकारियों की चलते हर कोई प्रदेश में बच्चों की हालत बेहतर मानकर चल रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह नहीं है यदि प्रदेश में महिला बाल विकास के अधिकारियों के अनुसार १३ लाख कुपोषित बच्चे हैं तो गैर सरकारी आंकड़े क्या होंगे इसकी तो कल्पना की जा सकती है कुपोषण के मामले की स्थिति को देखते हुए तो यह संख्या लगभग ५० लाख के करीब भी हो सकती है।
फिलहाल आंकड़ेबाजी का खेल कुपोषण के नाम पर वर्षों से जारी है और इसी के चलते अभी तक २२ अरब रुपये कुपोषण के नाम पर कर्जदार खजाने से खर्च कर दिये जाने के बावजूद भी कुपोषित बच्चों की स्थिति में कोई सुधार आता दिखाई नहीं दे रहा है, यह स्थिति तो बच्चों की है जहां तक पचपनप का सवाल है तो इस प्रदेश में संविधान में प्रदत्त नागरिकों को मिलने वाली मूलभूत सुविधा जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और नि:शुल्क पानी उपलब्ध कराये जाने की संविधान में दिये गये अधिकारों पर भी यह कटौती करने में लगी हुई है तभी तो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में निजी हाथों को सौंपने की तैयारी में यह स वरकार लगी हुई है और जहां तक शिक्षा का सवाल है तो इस प्रदेश में शिक्षा की स्थिति यह है कि बच्चों को ज्ञान इतना है कि वह अपने सांसद का नाम भी नहीं जानते हैं और न छ: का पहाड़ा ठीक से पड़ पाते हैं। कुल मिलाकर इस प्रदेश में बचपन ही सुरक्षित नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्वमिर्णम स्थिति को मध्यप्रदेश के दावे आखिर किसके लिये किये जा रहे हैं।
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