खबर / वरिष्ठ पत्रकार-लेखक रंजन कुमार सिंह को उनकी पुस्तक सरहद ज़ीरो मील के लिए रक्षा मंत्रालय ने तृतीय पुरस्कार से सम्मानित किया है। उन्हें यह पुरस्कार वर्ष 2005-07 के लिए हिन्दी में रक्षा संबंधी मौलिक पुस्तक लेखन पर दिया है। हाल ही में दिल्ली के साउथ ब्लाक में आयोजित एक सादे समारोह में रक्षा राज्यमंत्री श्री पल्लम राजू ने उन्हें पुरस्कार स्वरूप बीस हजार रुपये और प्रशस्ति-पत्र भेंट किया।
श्री सिंह नवभारत टाइम्स, पटना और फिर दिल्ली से जुड़े रहे। 1999 में वरिष्ठ संवाददाता के पद से त्यागपत्र देकर वह टीवी माध्यम से जुड़ गए। इसी वर्ष उन्होने सेना के लिए नागा रेजिमेंट पर और दूरदर्शन के लिए नियंत्रण रेखा के आसपास की जिन्दगी पर टीवी धारावाहिकं का निर्माण एवं निर्देशन किया। इस क्रम में उन्होने नियंत्रण रेखा (लाईन आफ कंट्रोल) के साथ-साथ सफर किया। सरहद ज़ीरो मील नियंत्रण रेखा के आसपास की जिन्दगी का आंखों देखा वृत्तांत है। वैसे तो यह नियंत्रण रेखा सिर्फ 740 किल¨मीटर लम्बी है, पर इसके लिए दो हजार से अधिक किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। उनकी टीम नियंत्रण रेखा पूर्वोतर से आगे में चुशूल तक तथा पश्चिमतर में परतापुर तक गई। चुशूल भारत-चीन सीमा पर है, जबकि परतापुर सियाचिन का आधार शिविर है।
1999 में जब श्री सिंह फिल्में बना ही रहे थे, तभी करगिल में युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध से जुड़े अनेक स्थानों यथा करगिल, द्रास, मशकोह, याल्डोर आदि का भ्रमण करके उन्होने हालात का जायजा लिया और करगिल युद्ध के अनेक नायकों से मिले। बटालिक सेक्टर में झंडा गाड़ने वाली बिहार रेजिमेंट के फोजियों से मिलने वह उनके कैम्प तक भी पहुंचे। उनकी फिल्म तथा पुस्तक में करगिल युद्ध का प्रामाणिक वर्णन है। उनकी यह पुस्तक हिन्दी में युद्धपरक लेखन की कमी पूरी करती है। लेखक का दावा है कि युद्ध भूमि तथा सैन्य गतिविधियों को इतने पास से देखने का अवसर हिन्दी के किसी अन्य लेखक को अभी नहीं ही मिला, अंग्रेजी के भी कम ही लेखक ऐसे अनुभव से गुजरे हैं। चूंकि वह पदाती सेना (इंफेंट्री) के साथ रहे, उन्हें सरहद पर फैजियों की जिन्दगी को बेहद करीब से देखने-समझने का मौका मिला। कई बार तो उन्हें सरहद की आखिरी छोर पर रात गुजारनी पड़ी। इस मायने में पुस्तक का शीर्षक सरहद ज़ीरो मील बिलकुल सटीक है। पुस्तक पटना के ही पारिजात प्रकाशन ने छापी है।
इसके पहले श्री सिंह को प्रभात खबर के इंदिरा गांधी ग्रामीण पत्रकारिता पुरस्कार, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के लघुकथा पुरस्कार और इंटरनेशनल लाइब्रेरी आफ पोएट्री, अमेरिका के एडिटर च्वाइस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वह स्व. शंकरदयाल सिंह के पुत्र तथा स्व. कामता प्रसाद सिंह काम के पौत्र हैं। इस रूप में वह एक ऐसे परिवार की तीसरी पीढ़ि का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो राजनीत तथा साहित्य के बीच सामन्जस्य बनाए रही।
रंजन कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment