डॉ. शशि तिवारी
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जिस देश में भ्रष्टाचार को ले ऐतिहासिक आन्दोलन चल रहा हो, केन्द्र सरकार की भद्द पिट रही हो, केन्द्र के मंत्री जनता से हठयोग, अभिमानयोग कर रहे हों, इसी बीच खेल मंत्री अजय माकन द्वारा प्रस्तुत ‘‘राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक’’ का अपने ही कबीने के वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा औंधे मुँह बिल को पटकनी देने से केन्द्र की बची-खुची साख को भी धूल में मिला दिया है।
चूँकि बात खेल की थी सो किसी ने गुगली फैंकी तो किसी ने फुटबाल समझ किक जमा खेल मैदान से ही बिल को ही कुछ दिनों के लिये बाहर धकेल दिया है। आन्दोलन से बौराई सरकार ने ‘‘पारदर्शिता एवं जवाबदेही’’ का कड़वा काढ़ा जब मालदार खेल संगठनों को पिलाने का प्रयास किया तो दबंगों ने तत्काल थूंक दिया । खेल संगठनों में सबसे मालदार संगठन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) जिसके मुखिया केन्द्र के कृषि मंत्री शरद पंवार, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के उपाध्यक्ष एवं केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री राजीव शुक्ला, मुंबई क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष विलासराव देशमुख, राजस्थान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष सी.पी. जोशी, भारतीय फुटबाल संघ के अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल एवं अन्य खिलाड़ी संघों के अध्यक्ष, इन राजनीति के खिलाडिय़ों ने खेल में विरोध का खेल, खेल ‘‘खेल विधेयक को आऊट कर दिया, इसीके साथ भारतीय ओलंपिक संघ ने भी जमकर विरोध लगे हाथ कर डाला। वहीं देश के ईमानदार निष्कपट हृदय वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं देश के केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने इस विधेयक का पूरा-पूरा समर्थन किया है।
अजय माकन की भी नेक नियत पर शक नहीं किया जा सकता उनका सरकार की छवि सुधारने का यह एक ईमानदार प्रयास है। चूँकि यू.पी.ए. अध्यक्ष सोनिया गांधी स्वास्थ्य लाभ ले अब भारत आ ही रही हैं तो पहले अपने कबीने के नाफरमान मंत्रियों एवं माननीयों की क्लास ले ले जिसने सूचना के अधिकार का विरोध किया, साथ ही ब्लेकमेलिंग करने वाले सौदागरों से बिना नफे-नुकसान के कठोरता से निपटे, आखिर पार्टी की साख सर्वोच्च है। राजनेताओं के बिल विरोध के पीछे केवल अपने स्वार्थ को पुष्ट करने एवं एक छत्र राज जीवन पर्यन्त तक चलता रहे, सांसद या मंत्री तो आज है कल ना भी हो, तो भी जलवा बरकरार रहे। केन्द्र सरकार सीधे तौर से तो इन बाहुबली मंत्रियों से पंगे नहीं ले सकती है।
उसने इसका काट कुछ बंधन मसलन उम्र का बंधन, कार्यकाल की निश्चित अवधि, लगातार दो बार पदों पर नहीं रह सकते, सभी संघ ‘‘सूचना का अधिकार’’ के दायरे में रहेंगे आदि आदि के पाश में बांधना चाहा। अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आई.सी.सी.), भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्षों का अपना स्वार्थ का तर्क यह है कि जब हम सरकार से किसी भी तरह की वित्तीय मदद लेते ही नहीं हैं तो फिर सरकार का हमारे ऊपर नियंत्रण कैसा? शरद पंवार जैसा अनुभवी मंत्री ऐसी बात कहे तो समझो खिलाड़ी खेल के लिये अनफिट? शरद पवार ये क्यों भूल गए कि वे भी केन्द्र सरकार में मंत्री हैं और सरकार की पॉवर क्या होती है? भली भांति जानते हैं। ऐसा लगता है कि सभी खेल अध्यक्ष शायद आगे आने वाले खतरों विशेषत: ‘‘सूचना का अधिकार’’ को ले काफी डरे-सहमें से हैं और हो भी क्यों न दबंग कलमाड़ी का हश्र जो उन्होंने देख लिया, डर वाजि़ब है। कल जनता एक-एक पाई का हिसाब मांगेगी, फिर अभी की तरह मनमर्जी, मनमानी पैसों की फिजूल खर्ची, खिलाडिय़ों की फिटनेस, खिलाड़ी चुनाव के मापदण्ड, आय-व्यय जैसी ढेरों जानकारियां जब जनता लेगी, आई.सी.सी., बी.सी.सी.आई. जैसी अकूत सम्पत्ति जिनको उनके अध्यक्ष अपनी मिल्कियत समझ रहे हैं या ब़ेजा उपयोग कर रहे हैं सभी के पोल की कलई खुल जायेगी। यदि खेल संघों के अध्यक्ष भ्रष्ट नहीं हैं तो अजय माकन और केन्द्र सरकार के ईमानदार प्रयास से क्यों घबराए हुए हैं?
नेताओं मंत्रियों को छोड़ दें तो अधिकांश खिलाड़ी इस बिल से सहमत ही नजर आए फिर चाहे वह कपिलदेव हो या कीर्ति आजाद या चेतन चौहान हो। सभी का केवल यही कहना है कि सरकार द्वारा बनाए जा रहे कानून को तोडऩे या बनने से रोकने का हमारा कोई भी हक नहीं है। जब हम सरकार से अन्य सुविधाएँ मांगते हैं तो फिर सरकार के नियमों को ना मानने की हिमाकत भी कैसे कर सकते हैं? माननीयों को पता होना चाहिए कि ‘‘सूचना का अधिकार’’ से बचने के लिये सरकार से फंड ना लेना ही कोई बचाव नहीं हो सकता बल्कि, सरकार से प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, बिना मूल्य की सहायता लेना, शासकीय प्रावधानों में खेल के नाम पर रियायत लेना, सुविधा लेना सभी सूचना के अधिकार में आता है। इसके अतिरिक्त किसी भी संघ/संगठन जिसकी स्थापना संविधान के द्वारा या अधीन हुआ हो, संसद द्वारा बनाये गए किसी अन्य विधि द्वारा, राज्य विधान मंडल द्वारा बनाये गये किसी अन्य विधि के द्वारा, समुचित सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना या दिये गए आदेश द्वारा स्थापित या गठित कोई प्राधिकारी या निकाय या स्वायत्त सरकारी संस्था से अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत कोई ऐसा निकाय है जो केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन, नियंत्राधीन या उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा वित्त पोषित है सभी सूचना का अधिकार के दायरे में आ ही जायेंगे।
क्रिकेट खेल में चलने वाला सट्टा और उससे बना काला धन किसी के नजरों से छिपा नहीं है आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी कांड को अभी खेल प्रेमी भूले नहीं है। वैसे भी देखा जाए तो क्रिकेट खेल अंग्रेजों का ही है यही कहीं न कहीं आज भी गुलाम मानसिकता को ही दर्शाता है। हकीकत में क्रिकेट का खेल अब खेल रहा ही नहीं? एक व्यापारों की तरह इसमें खिलाडिय़ों की खरीद-फरोख्त गाय-बेल, गधे-घोड़े के मेले की तरह हो रही है तो फिर ये खेल ही कहाँ रहा? खरीदा गया खिलाड़ी सिर्फ एक गुलाम की ही भाँति होता है जिसे रेस कोर्स के मैदान में सिर्फ दौडऩा ही पड़ता है फिर उसे चाहे कोई तकलीफ ही क्यों न हो, खिलाडिय़ों ने भी इसे धंधा बना लिया है। खिलाडिय़ों का खरीददाता अर्थात मालिक इनके मार्फत काफी मोटा मुनाफा जो कमाता है।
इस तरह यह सिर्फ और सिर्फ व्यापार बन कर रह गया है। भारत सरकार को नियमानुसार इस परिस्थिति में इन व्यापारियों से वे सभी कर लेना चाहिए जो एक आम भारतीय व्यापारी को शासन को देना होता है। सभी नियम इन पर सख्ती से लागू करना चाहिए। खेल अध्यक्षों ने जाल में फंसता देख विधेयक का विरोध साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपनाकर शुरू कर दिया। माननीय विरोध करते समय यह भी भूल गए कि जिस सरकार ने वर्षो से इन्हें मंत्री पद नवाज़ा है उसी अपनी सरकार को इस कदर बेआबरू कर देंगे? भारतीय सिने जगत में इसी विश्वास को ले दो फिल्म बनी पहली नमक हराम, दूसरी नमक हलाल अब देखना यह है कि किसके समर्थन में माननीय होंगे ?
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