ब्यूरो प्रमुख // राजेन्द्र कुमार जैन (अम्बिकापुर//टाइम्स ऑफ क्राइम)
ब्यूरों प्रमुख से सम्पर्क : 98265 40182
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अम्बिकापुर। लगभग छह माह पहले सूरजपुर उपवन मंडल के अंतर्गत सूरजपूर, कुदरगढ़, प्रेमनगर वन परिक्षेत्रों में साल वनों की अंधाधुंध कटाई जारी है। बेशकीमती लकडिय़ों को आरा मिलों, फर्नीचर्स, दुकानों और बड़े व्यापारियों के पास बेचा जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार उप वनमंडल सूरजपुर के अंतर्गत आने वाले सूरजपुर कुदरगढ़ एवं प्रेमनगर वन परिक्षेत्रों में साल वनों की अंधाधुंध कटाई विगत 5-6 माह से अनवरत जारी है। इन क्षेत्रों वनो की कटाई तो ग्रामीणों द्वारा की जाती है, लेकिन अवैध वनो की खपत शहरी क्षेत्र में की जाती है। ग्रामीणों से औन-पौने भाव में लकडिय़ा खरीदकर सक्रिय तस्करों द्वारा उक्त लकडिय़ां मिल मालिकों, फर्नीचर्स निर्माताओं एवं बड़े व्यापारियों को भारी मुनाफा कमाकर बेच दिया जाता है। कुदरगढ़ एवं बिहारपुर क्षेत्र चंूकि नक्सली प्रभावित क्षेत्र हैं, इसलिए वहां नक्सलियों का खौफ दिखाकर वनकर्मियों व वन माफिया संयुक्त रूप से वनों का सफाया करने में जुटे हैं। बिहारपुर परिक्षेत्र के जंगलों को राष्ट्रीय उद्यान व सेन्चुरी वन का दर्जा प्राप्त होने के बावजूद यहाँ की बेशकीमती साल लकडिय़ों को सीमापार मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश में आसानी से खपाया जा रहा है। वही प्रेमनगर वनपरिक्षेत्र में अनियंत्रित जंगलों को कोआपरेशन (वन विकास निगम) को सौंपकर वन सुरक्षा के दायित्वों से हाथ झाड़ लिया गया है।
प्रेमनगर वन परिक्षेत्र में अवैध वन कटाई का धंधा सर्वाधिक जोरों पर है। अवैध कटाई से परेशान वन विभाग ने असुरक्षित वन क्षेत्र का एक बहुत बड़ा भाग वन विकास निगम को सौंपकर सुरक्षा से हाथ झाड़ लिया है। वन विकास निगम को सौंपे गये जंगलों पर अब किसी का नियंत्रण नहीं रहा। निगम को सौपे गये जंगलों में सागौन और साल के वृक्षों की भरमार थी, लेकिन 2 माह में हजारों की संख्या में सागौन और साल वृक्ष वन माफियाओं द्वारा काटकर पार कर दिये गये। वनाच्छादित प्रेमनगर परिक्षेत्र निम्हा, लैंगा, गेतरा, मानी, पोड़ी, महगई, कालीपुर, परशुरामपुर, कुमेली, सूरता इत्यादि ग्राम से लगे जंगलों में सागौन व साल के वृक्षों की भरमार थी। जो वन माफियाओं एवं लकड़ी चोरों की नजरों से बच नहीं सके। इस क्षेत्र में लकड़ी का यह आलम है कि वन सुरक्षा के लिए तैनात 2 वनकर्मियों को मौत के घाट उतार चुके हैं। इस परिक्षेत्र में वन विभाग के हिस्से के जंगलों में मदनपुर,जगतपुर, पिकरी, बरबसपुर, तारा, चन्दनपुर, रघुनाथ नगर, सल्ही समेत अन्य भाग शामिल हैं, जो वन विभाग की निष्क्रियता के कारण वृक्षों को काटते जा रहे हैं।कुदरगढ़ वन परिक्षेत्र नक्सली प्रभावित वन क्षेत्र होने के बावजूद लकड़ी तस्करों व चोरों का हौसला बुलंद है यहाँ कार्यरत वन अधिकारी व कर्मचारी नक्सलियों के भय के कारण वनाच्छादित क्षेत्रों मे जाने से कतराते हैं। परिक्षेत्रान्र्गत ग्राम कुदरगढ़, भवरकोट, माण्डर, भकूरा, असूरा, बसनारा, खर्रा, बिलासपुर, चपदा, कुप्पा, दनौली, व भलूमाड़ा से लगे जंगलों की बेशकीमती साल पेड़ों की लकड़ी मिट्टी के मोल बेची जा रही है। इन क्षेत्रों में वन विभाग के कर्मचारियों, वन तस्करों व लकड़ी चोरों की संयुक्त सांठगाठ से जंगलों की सूरत नित्य बिगड़ती जा रही है। कुदरगढ़ क्षेत्र वैसे तो पहुंच विहीन क्षेत्र कहलाता है, लेकिन तस्करों के समक्ष पहुंचविहीन भी कोई चुनौती नहीं है। सक्रिय तस्कर पिकअप, 407, मिनीट्रक व ट्रेक्टर से उसे शहरों तक पहुंचाता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बाजार भाव के अनुसार 2 हजार रूपये मूल्य की व सिल्ली वे 300 रूपये ग्रामीणों से खरीदते हैं। क्षेत्र में लगे वन जांच नाका का कोई औचित्य नही है।
उत्तर सरगुजा वन मण्डल के बिहारपुर वन परिक्षेत्र अंतर्गत उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश, की सीमा पर स्थित गा्रम महुली, कोलूवा, व पेण्डारी, संजय राष्ट्रीय उद्यान से सागौन व साल की बेशकीमती इमारती लकड़ी से अंर्तप्रदेशीय चोर गिरोह सक्रिय हैं। यहाँ भोले-भाले वनवासी ग्रामीणों से रोजी, मेहताना देकर हरे-भरे जंगल कटवाते हैं और मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश में तस्करी करते हैं। बताया जाता है कि महुली में सहायक वन परिक्षेत्राधिकारी व वन कर्मियों की लकड़ी तस्करों से सांठ-गांठ है और वे जंगलों के सफाये में तस्करों की मदद कमीशन लेकर करते हैं। सूरजपुर वनपरिक्षेत्र वृहद वनाच्छादित क्षेत्र होने के साथ-साथ उपवन मण्डल अधिकारी का मुख्यालय भी है। यहां के केतका, जोबगासलका, सोनगरा, गेतरा, हरकटाडांड, जयनगर, कन्दरई, बेलटिकरी, बैजनाथपुर, सुहागपुर, भटगांव, धरतीपारा,लक्ष्मीपुर, बस्कर, सुन्दरपुर सहित अन्य ग्राम के निकट स्थित जंगलों से साल वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी है। जंगल की कटाई में वन कर्मचारियों एवं सफेदपोश नेताओं की आपसी सांठगांठ है। यहां से चोरी की गई इमारती लकडिय़ाँ सूरजपुर, विश्रामपुर, अम्बिकापुर, जयनगर, में फर्नीचर्स, निर्माताओं को आपूर्ति होती है। बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा साल वृक्षों की कटाई कर उससे पटरा, कण्डी, मयार, व सिल्ली तैयार की जाती है। हथियारों से लैस होते हैं वन तस्कर क्षेत्र में सक्रिय वन तस्करों व लकड़ी चोरों को रोकने वन अमला इसलिए भी सफल नहीं हो पाता है, क्योंकि वन तस्कर व चोर हथियारों से लैस होते हैं। जबकि वनों की सुरक्षा के लिए तैनात वन कर्मियों के पास सिर्फ डण्डा होता है और डण्डों से चोरों का मुकाबला नहीं कर सकते। वन अमले के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती संचार साधन है। वनों का सफाया करने वाले दुपहिया या चार पहिया वाहनों से होते हैं जो भागने में सफल हो जाते हैं। यहीं वन सुरक्षा में लगे कर्मी या तो पैदल होते हैं या फिर सायकल में जो सूचना देने में सहायक नहीं है। वन अमले को चाहिये कि वे अपने सूचना व संचार तंत्र को आधुनिक रूप से विकसित करें।
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