हिंदी माध्यम के आदिवासी छात्रो के लिए खरीदी गई
ब्यूरो प्रमुख // संतोष प्रजापति (बैतूल// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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Present by : toc news internet channal
बैतूल. आदिवासी छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की बुक बैंक योजना में जिले को पहली बार राशि मिली है। इस राशि का उपयोग जिस तरह से किया गया, उससे पूरा मामला ही संदेह के घेरे में आ रहा है। बैतूल जिला मुख्यालय स्थित जयवंती हक्सर महाविद्यालय में जिस ढंग से किताबें खरीदी गई हैं उससे ऐसा लगता है कि सरकार के 17 लाख रूपए पानी में चले जाएगें। महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा आदिवासी छात्रों के लिए अंग्रेजी में लिखी विदेशी लेखकों की किताबें खरीदी गई हंै जिनकी कीमत डॉलर और पाउंड में होने से कुछ किताबों का मूल्य तो 25 से 30 हजार रूपए तक है। सत्रह लाख रूपए की राशि में बॉटनी, जूलॉजी, रसायन, कॉमर्स, माइक्रोबॉयोलाजी और बायोटेक विभाग के लिए किताबें खरीदी गई, जिसमें जेएच कॉलेज को 25 मई 2011 को सहायक आयुक्त आदिवासी विकास से 17 लाख 16 हजार 600 रूपए का चेक जारी हुआ था। खरीदी के लिए सभी विभाग प्रमुखों की बैठक प्राचार्य द्वारा 31 मई को ली गई थी और उसके बाद सप्लायर अग्रवाल बुक सेंटर होशंगाबाद ने 17 लाख रूपए की किताबें सप्लाई की। इतनी महंगी यह किताबें जिन आदिवासी छात्रों के नाम पर खरीदी गई हैं वास्तव में वे इसका उपयोग ही नहीं कर पाएंगे, क्योंकि आदिवासी छात्रो को अग्रेंजी ठीक ढंग से आती नहीं और वे हिंदी माध्यम वाले हैं और उनके लिए इस तरह की किताबें किसी मतलब की नहीं हंै।
कालेज प्रबंधन का इस संदर्भ में जवाब यह है कि किताबों की सप्लाई के बाद जो स्थिति सामने आई उसमें बायोटेक और माइक्रोबॉयोलाजी विभाग द्वारा अभी तक किताबें ही नहीं ली गई हैं। जहां माइक्रोबॉयोलाजी में विभाग प्रमुख अलका पांडे का कहना है कि ये किताबें अंग्रेजी में हैं और वे छात्रों को देखते हुए हिंदी में किताबें चाहती हैं। वहीं बायोटेक के विभाग प्रमुख पीके मिश्रा का कहना है कि न तो उन्होंने किताबों की कोई सूची दी थी और न ही उन्होंने अभी तक किताबों को देखा है, लेकिन उनके पास जो जानकारी है उसके अनुसार ये किताबें छात्रों के उपयोग के लायक नहीं हंै। यह भी सामने आ रहा है कि यह प्राध्यापकों के उपयोग के लायक भी नहीं हैं। होशंगाबाद के सप्लायर द्वारा दी गई इन किताबों की कीमत डॉलर और पाउंड में है।
मालीक्यूलर माइक्रोबॉलाजी की एक किताब की कीमत 29 हजार 477 रूपए, जेनेटिक्स की किताब 20 हजार 977 रूपए, मालीक्यूलर बॉयोलाजी ऑफ सेल किताब की कीमत 22 हजार 375 रूपए है। यह तो कुछ ही किताबों की कीमतें है जो यह बताती हैं कि डॉलर और पाउंड में आई ये किताबें वास्तव में कितनी महंगी हैं। स्थिति यह है कि 17 लाख रूपए की यह किताबें विभागों की अलमारी के एक खाने में ही जमा हो गई हैं। इन महंगी किताबों का उपयोग क्या और कैसे होगा? यह बड़ा हैरत का प्रश्न हो गया है। इधर प्राचार्य जयवंती हक्सर महाविद्यालय श्री डॉ. सुभाष लव्हाले का कहना है कि ये किताबें कॉलेज ने पूरी नियम और प्रक्रिया का पालन करके खरीदी है। कॉलेज की क्रय समिति और विभाग प्रमुखों की बैठक के बाद विभाग प्रमुखों द्वारा दी गई सूची के आधार पर खरीदी की गई है। जो किताबें उपयोग की नहीं हंै उन्हें वापस किया जा रहा है और उनका भुगतान भी नहीं किया जाएगा।
पुस्तकालय अधिक्षक विराज पांडे का कहना है कि जो किताबें उपयोगी थीं, उन्हीं का भुगतान किया जा रहा है। करीब 6 लाख 64 हजार रूपए का भुगतान किया गया है। विभाग प्रमुखों ने जिन किताबों को अनुपयोगी बताया है उन्हें वापस किया जा रहा है। शेष बची राशि लौट जाएगी, लेकिन बाद में वापस मिल सकती है। वैसे थोड़ा नुकसान तो होगा ही। पूरे मामले को लेकर छात्र संगठनो एवं छात्रो का कहना है कि छात्रों के पैसे का यह जमकर दुरूपयोग है और सीधे-सीधे कहें तो आदिवासी छात्रों के नाम पर मिली सेंट्रल की राशि में भ्रष्टाचार है। पूरे मामले की जांच होनी चाहिए और दोषी व्यक्तियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। जो इनकी गलती के कारण नौ लाख रूपए लेप्स होंगे उसके लिए जिम्मेदार से राशि वसूल की जाना चाहिए।
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