सावलमेंढ़ा , चिल्लौर और अब झल्लार छात्रावास में किया ता रहा हादसे का इंतजार
ब्यूरो प्रमुख // संतोष प्रजापति (बैतूल// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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Present by : toc news internet channal
बैतूल.लोग कहते है कि घटनाओं , हादसो से इंसान को सीख मिलती है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। बैतूल जिले में इन दिनो आदिवासी बालिकाओं एवं महिलाओं के साथ दुराचार एवं अपहरण की घटनाओं के बाद भी इन घटनाओं को रोकने में प्रशासन - पुलिस और स्वंय छात्रावास प्रबंधन नकारा साबित हुआ है। बैतूल जिले में सावलमेंढ़ा की छात्रावास अधिक्षक श्रीमति प्रमिला धाड़से की सहायक वार्डन के साथ प्रेम कहानी ने पूरे गांव में अल्पसख्ंयक समुदाय को गांव से खदेड़ डाला। प्रमिला की लान चली गई लेकिन बहुंत बड़े धार्मिक उन्माद की भेट चढ़ते - चढ़ते पूरा गांव और जिला किसी तरह से बच गया। इस बीच भैसदेही तहसील के भीमुपर विकासखण्ड एवं मोहदा थाना क्षेत्र के चिल्लौर कस्तुरबा गांधी बालिका छात्रावास की ग्राम पंचायत बांसिदा क्षेत्र की एक छात्रा अपने गांव के एक ही अन्य समाज के युवक के साथ नौ दो गयारह हो गई।
दोनो प्रेमियो के पकड़ा जाने के बाद पूरा मामला बालिका के नाबालिग होने की स्थिति में दुराचार में बदल गया। इन सबसे हट कर तीसरी सबसे बड़ी घटना का इंतजार किया जा रहा है वह झल्लार थाना क्षेत्र में आती है। महाराष्ट्र को जाने वाले बैतूल परतवाड़ा रोड़ पर स्थित झल्लार ग्राम की कमला नेहरू बालिका छात्रावास की कक्षा 7 वीं से लेकर 12 वीं की एक दर्जन छात्राएं इस समय छात्रावास से कथित रूप से गायब है। छात्रावास की अधिक्षक सुश्री किरणमाला कानेकर पहले तो कहती है कि बालिकाएं पूर्णा मेले के लिए छुटट्ी लेकर गई हुई है तथा कुछ तो अभी भी जाने के लिए तैयार है। लेकिन जब उनसे अनुमति पत्रक मांगा गया तो वे अपने पूर्व के ब्यान से पलट कर कहने लगी कि पालको के साथ गई है...? इस समय अभी तक एक दर्जन छात्राएं छात्रावास में नहीं है।
सवालो का गोलमाल जवाब देने वाली सुश्री किरणमाला कानेकर कहती है कि उन्होने अपने पिता / पालक से हस्ताक्षर करवा कर आवेदन दिया है लेकिन जब उनसे पुछा गया तो नियम में तो यह साफ लिखा गया है कि आवेदन में छात्रा एवं पालक के संयुक्त हस्ताक्षर आंगुतक पंजी पर होने के बाद ही पालक की उपस्थिति में ही बालिका को सौपा जाए तो इस प्रश्र का उत्तर देने में वे बगले झांकती रही। बैतूल जिले में खासकर मेलो में आदिवासी समाज की सहभागिता सबसे अधिक होती है। कार्तिक मास की पुर्णिमा को लगने वाले पूर्णा माई मेले , फागुन एवं चैतमास के मेलो को झाबुआ के भगोरिया मेले की तरह प्रेम - प्रणय मास मेला भी कहा जाता है। इन मेलो के बाद सबसे अधिक आदिवासी बालिकाओं ,युवतियों , महिलाओं के तथाकथित गायब , दुराचार ,हत्या , अपहरण , तथा प्रेम प्रसंग के मामलो सबंधित थानो में आते है जिसमें एक तिहाई मामलो में प्रकरण दर्ज तक नहीं हो पाते है तथा पुलिस दे देकर या डरा धमका कर उन्हे भगा देती है।
इन सब हालातों के बाद भी कमला नेहरू शासकीय आदिवासी बालिका छात्रावास से कक्षा सातवीं से लेकर बारहवीं की छात्रावास में रहले वाली छात्राओंं का तथा झल्लार शासकीय हाईस्कूल एवं माध्यमिक स्कूलो से दो दर्जन से अधिक छात्राओं की अनुउपस्थिति चिंता जनक बात है। मुख्य मार्ग पर स्थित ग्राम झल्लार के बालिका छात्रावास में 50 सीट का बालिका छात्रावास है लेकिन वहां पर चारों ओर भर्राशाही का बाजार लगा हुआ है। अविवाहित छात्रावास अधिक्षक सुश्री किरणमाला कानेकर अपनी छोटी बहन जो कि हाई स्कूल की छात्रा है उसे तथा अपने एक मात्र छोटे भाई के छात्रावासा परिसर में रखी हुई है। ऐसा क्यों है इस सवाल का जवाब छात्रावास अधिक्षक सुश्री किरणमाला कानेकर के ग्राम केरपानी में रहने वाले शासकीय स्कूल में पदस्थ शिक्षक पिता श्री कानेकर गुरूजी देते हुए कहते है कि मेरे आधा दर्जन बच्चे है। इसलिए तीन यहां (केरपानी) और वहां (झल्लार)पर है। उल्लेखनीय है कि छात्रावास में रहने वाली प्रति छात्रा 750 रूपए के हिसाब से छात्रावास को राशी शासन द्वारा दी जाती है लेकिन अधिक्षक के रूतबे के आगे पूरा विभाग नतमस्तक है। अपनी पदस्थापना के समय से ही शासकीय रूपयों से दोनो भाई बहनो एवं अधिक्षक को भोजन एवं अन्य सामग्री जिसमें साबुन , तेल, मंजन व अन्य सामान नि:शुल्क मिल रहे है। सबुह से लेकर देर शाम तक बालिका छात्रावास का मुख्य द्वारा खुला रहता है जिसके कारण कहे या अनुशासन के अभाव में छात्रावास की छात्राएं सडक़ो के किनारे किसी भी छात्र , युवक , व्यक्ति एवं कथित परिजन से गप्पे लड़ाती देखी जा सकती है। वैसे देखा जाए तो इस छात्रावास में अनुशासन नाम की कोई चीज इस है जिसके चलते पूरा छात्रावास एक प्रकार से मौज मस्ती का केन्द्र बन गया है।
आश्चर्य जनक बात तो यह है कि इस बालिका छात्रावास में तीन पुरूष कर्मचारी भी है लेकिन वे अधिकांश समय चडड्ी बनियान पर घुमते रहते है। नाबालिग से बालिग होने जा रही छात्राओं के सामने इस प्रकार के प्रदर्शन पर उनका और अधिक्षक का भी रटा - रटाया जवाब रहता है कि खाना बनाते एवं काम करते समय पसीना बहुंत आता है इसलिए नतमस्तक इस हालत में रहना पड़ता है। सहायक वार्डन युक्त इस छात्रावास में पुरूषो की पदस्थाना तथा मौजूदगी प्रश्र वाचक चिन्ह है। बैतूल जिले में भैसदेही तहसील के अधिकांश बालिका छात्रावास की लगभग यही स्थिति है। मौजूदा समय में पूर्णा मेला सबसे ऊफान पर है। प्रतिदिन 20 से 30 हजार लोग मेले में आते है। इस मेले में भैसदेही तहसील क्षेत्र का कोई भी गांव या कस्बा का अमीर - गरीब व्यक्ति आता ही है। अब मेले मे सकर्स और झूले आ जाने से मेले में काफी रौनक आ गई है। तहसीलदार श्री एक्का स्वंय कहते है कि मेला एक प्रकार से आदिवासी समाज की मान्यताओं एवं परम्पराओं तथा प्रेम प्रसंग से जुड़ा होता है। यहां पर आने वाले युवक - युवतियां प्रेमी है या भाई बहन कहां नहीं जा सकता लेकिन मेले के बाद गुमशुदायगी तथा दुराचार की शिकवा - शिकायतों को भैसदेही थाना में पदस्थ कर्मचारी एवं अधिकारी भी स्वीकार करते है। उल्लास एवं उमंग के इस मेले के चलते तहसील क्षेत्र के प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्कूल एवं कालेजो की भी उपस्थिति कम हो जाती है। आज यह स्थिति है कि स्कूल खाली हो चुके है जबकि सभी स्कूली छात्र छात्राओं को दीपावली का अवकाश दिया जा चुका है।
दीपावली के एक पखवाड़े बाद आने वाले इस पूर्णा माई के मेले में लोग हालाकि अपनी मन्नत लेकर आते है लेकिन कुछ तो ऐसे है जिन्हे सिर्फ मौज मस्ती से लेना - देना होता है। बैतूल जिले में इस समय 45 बालक एवं बालिका छात्रावास है। जिसमें चार कस्तुरबा गांधी, उत्कृष्ट तथा आदिम जाति कल्याण विभाग के है। जिले की भैसदेही तहसील के अधिकंाश छात्रावासों के छात्रा एवं छात्राएं इस समय पूर्णा मेला में मौज मस्ती में तो लगे हुए है लेकिन अगर ऐसा ही रहा है तो नवजात बेटियों को बचाने की मुहीम चलाने वाले शिवराज मामा की जवां होती भांजियों की जान एवं अस्मत पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे है।
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