रामकिशोर
पंवार रिर्पोट
मेरा जन्म बैतूल जिले में हुआ
है इसलिए मैं जिले की माटी और
यहां के लोगो के भाव एवं स्वभाव
को अच्छी तरह से जानता हूं।
बैतूल जिले में मैंने अनुराग
मोदी एवं डॉ सुनील मिश्रा ऊर्फ
सुीनलम् दोनो की नस -नस से मैं
वाकीफ हूं। आज का करोड़पति
सुनीलम् कभी पाथाखेड़ा के वीर
कुंवर सिंह और आजाद नगर में
मेरे ही हम नाम कामरेड रामू
पंवार की बैसाखी के सहारे चला
करता था। उस समय डॉ सुनील मिश्रा
को सुनीलम् बनाने वाले जार्ज
फर्णाडीज थे। जार्ज साहब की
समाजवाद की एक डोर के सहारे
कोयला मजूदरो की राजनीति के
लिए रघु ठाकुर की ऊंगलियां
पकड़ कर कामरेड रामू पंवार
को कठपुतली बना कर अपनी राजनीति
की दुकान शुरू की। उस समय मैंने
और वीरेन्द्र झा एवं सज्जू
भाई जान ने उस सुनीलम् को खड़ा
करने में कथित मदद की जिसके
पास फुटाने खाने के भी पैसे
नहीं थे।
रामू पंवार और सज्जू
खान के घरो तथा आन्दोलन से जुड़े
लोगो की रोटी खाकर कथित जनसंघर्ष
करने वाले डॉ सुनीलम् ने रामू
पंवार को मोहरा बना कर उसे सडक़
से सडक़छाप तक बनाने में कोई
कसर नहीं छोड़ी। भाकपा के युथ
फेडरेशन का कामरेड रामू पंवार
समाजवाद के चक्कर में ऐसा फंसा
की उसे बाबा बनने के पूर्व में
दर्जनो मुकदमों और महिनो तक
जेल की हवा खानी पड़ी। इस दौर
में पंखा फैक्टरी कांड और न
जाने कितने कांडो से जुड़े
रहे डॉ सुनीलम् ने रामू पंवार
को अपनी महत्वाकांक्षा के चक्कर
में दर किनार कर पाथाखेड़ा
से परमंडल में अपनी राजनैतिक
महत्वाकांक्षा लम्बी छलंाग
लगा ली। समाजवाद के आन्दोलन
के चक्कर में उन बेकसूर आन्दोलन
कारी किसानो को पुलिस की गोलियों
से मरवा डालने वाले सुनीलम्
स्वंय सियार बन कर किसी कोने
में छुप गया। जब बाहर निकला
तो उसने स्वंय को किसानो का
सच्चा हितैषी बनाने के लिए
महेन्द्र सिंह टिकैत से लेकर
देश भर के किसानो के नेता ओं
की मदद से स्वंय किसानो का रहनुमा
बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
डॉ सुनील मिश्रा ने किसान नेता
के रूप में स्वंय को प्रस्तुत
करके मेघा पाटकर जैसे समाजवादियों
की मदद से मुलताई विधानसभा
क्षेत्र की भोली - भाली जनता
को दस साल तक ठगने का काम किया।
इस बीच समाजवाद का दुसरा चेहरा
समाजवादी जन परिषद के रूप में
आया। अस बीच गांव के किसानो
की आग ने समाजवाद के दुसरे वीभत्स
चेहरे के रूप में गांवो से सटे
जंगलो में शरण ले ली। अब बैतूल
जिला मुख्यालय पर हाथो में
तख्ती लेकर बैनरो एवं पोस्टरो
के साथ समाजवाद का नारा जल -
जमीन जंगल , अनुराग शमीम मंगल
के रूप में सडक़ो पर शोर करने
लगी। टाटा सामाजिक विज्ञान
संस्थान मुम्बई में सहायक प्रोफेसर
के रूप में कार्यरत गुजराती
परिवार में जन्मे अनुराग मोदी
ने गुजरात से लेकर मध्यप्रदेश
तक के ग्रामिणो अंचलो से लेकर
जंगलो में आन्दोलन की आग लगाई।
हरदा से बैतूल जिले की सीमा
में घुसपैठ बनाने वाले अनुराग
मोदी एवं शमीम मोदी का नाम भंडारपानी
के जंगल कांड के बाद अचानक सुर्खियों
में आया। उच्च शिक्षा प्राप्त
मोदी दम्पति ने समाजवाद - माक्र्सवाद
की नई परिभाषा नक्सलवाद के
रूप में दी। बैतूल जिला प्रशासन
एवं हरदा जिला प्रशासन की गृहमंत्रालय
एवं राज्य शासन को भेजी गई अनेको
बार की गुप्तचर रिर्पोट में
इस बात के संकेत दिए गए कि अनुराग
मोदी के श्रमिक आदिवासी संगठन
एवं समाजवादी परिषद की आड़
में बैतूल एवं हरदा जिले के
जंगलो में नक्सलवाद घुसपैठ
कर रहा है। विचारणीय तथ्य यह
है कि भंडारपानी कांड के बाद
से बैतूल जिले के आदिवासी एक
बैनर तले गांवो से शहर की ओर
हाथो में कुल्हाड़ी और बैनरो
के साथ क्यों आ रहे है। जल - जमीन
- जंगल की आड़ में आदिवासी श्रमिक
संगठन के रूप में अचानक शमीम
मोदी और अनुराग मोदी आ धमकने
के बाद डॉ सुनीलम् एक दुसरे
के पूरक बन गए। जहां एक ओर डॉ
सनीलम् ने जिला प्रशासन को
अपने निशाने पर साधने के लिए
ग्रामिणो एवं किसानो को मोहरा
बना कर उन पारधियों को अपना
शिकार बनाया जो अपराधी प्रवृति
के घुमन्तु जनजाति के लोग कहे
जाते है। गांवो के आसपास के
खेतो - खलिहानो एवं जंगलो से
तीतर - बटेर पकड़ कर उन्हे बेचने
वाली पारधी जाति के प्रति ग्रामिणो
में फैले जन आक्रोष की आड़ में
अपनी कुर्सी सलामत रखने के
लिए डॉ सुनीलम् ने नफरत की आग
में अपनी पूर्णाहुति डाली जरूर
लेकिन सीमा परिर्वतन के चक्कर
मासोद एवं मुलताई एक विधानसभा
बन गई और डॉ सुनीलम् अपनी कुर्सी
बचा नहीं सके और विधानसभा चुनाव
बुरी तरह से हार गए। मुलताई
से अपना बोरिया बिस्तर बंधने
के बाद डॉ सुनीलम् अपनी समाजवाद
की बैसाखी को छोड़ कर अन्ना
टीम के साथ देश जगाने चले गए
लेकिन बैतूल से उनका पीछा नहीं
छुटा। इस बार डॉ सुनीलम् के
गले की फांस बने पारधी और उन्हे
समाजवाद के दुसरे चेहरे ने
एक बार फिर जेल की चौखट पर ला
खड़ा किया। आज डॉ सुनीलम् जिस
पारधी जाति के खिलाफ ज़हर ऊगल
रहे है दर असल में उसी पारधी
जाति ने बीते डॉ सुनीलम् के
दस वर्षो के विधायक कार्यकाल
में सबसे अधिक अपराधिक गतिविधियों
को अंजाम दिया। अपराधिक प्रवृति
की धुमुन्तु जनजातियों में
शामिल पारधियों के कथित आचरण
को लेकर फैले जन आक्रोष की अपने
विधायक कार्यकाल में डॉ सनीलम्
को कोई चिंता नहीं हुई। विधानसभा
चुनाव के आसपास घटी चौथिया
कांड की घटना ने नया इतिहास
रच डाला। जहां एक ओर डॉ सुनीलम्
का परमंडल गोली कांड चौथिया
अग्रिकांड में बदल डाला वहीं
दुसरी ओर पिपलबर्रा के आदिवासियों
को मोहरा बना कर जनहित याचिका
के बहाने वन विभाग को अपना निशाना
बना कर अनुराग मोदी ने एक पूरे
गांव और गांव के लोगो को राष्ट्रीय
ही नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर
पर ख्याति दिला दी।
सबसे मजेदार
एवं विचारणीय बात यह है कि दोनो
कथित समाजवाद का चोला पहने
अनुराग मोदी एवं डॉ सुनीलम्
ने अपने - अपने नाम पर स्वंयसेवी
संगठन बना रखे है जिन्हे देश
ही नहीं विदेशो से भी अनुदान
मिलता है। डॉ सुनील मिश्रा
ने अपने आन्दोलन के लिए कथित
देश भर के समाजवादियों एवं
समाजसेवियों के बीच में घुसपैठ
की वहीं दुसरी ओर अनुराग एवं
शमीम मोदी ने अपने क्लासमेट
साथियों के इलेक्ट्रानिक मीडिया
एवं प्रिंट मीडिया के क्षेत्र
में पकड़ का भरपूर फायदा अपने
जन आन्दोलनो को दिलवाया। अनुराग
ने बकायदा अपने श्रमिक आदिवासी
संगठन एवं समाजवादी जन परिषद
के आन्दोलनो के लिए टीवी चैनल
एवं प्रिंट मीडिया में स्थानीय
स्तर अपने चहेतो की घुसपैठ
करवाई और उन्हे मोहरा बना कर
बैतूल में अपने छोटे से आन्दोलन
को स्टं्रीग आपरेशनो के माध्यम
से प्रायोजित खबर के रूप में
परोसना शुरू किया।
बैतूल के
पूर्व कलैक्टर विजय आनंद कुरील
ने बकायदा राज्य सरकार एवं
केन्द्र सरकार को प्रेषित शासकीय
एवं गैर शासकीय रिर्पोट में
बैतूल जिले के तीन टीवी चैनलो
के पत्रकारों को नक्सलवादी
बताते हुए उनकी पूरी कारस्तानी
की रिर्पोट तक भेजी थी। जिले
के पूर्व सासंद स्वर्गीय विजय
कुमार खण्डेलवाल स्वंय कई बार
प्रदेश सरकार को आगह कर चुके
थे कि बैतूल जिले में नक्सलवा
का बीज अंकुरीत हो रहा है। सबसे
हास्याप्रद बात तो यह है कि
बैतूल जिले के एक गांव पीपलबर्रा
के अनुबंधित आदिवासी मासिक
मजदूरी पर श्रमिक आन्दोलन से
जुड़े हुए है। इन एक जैसे नाम
और चेहरे वाले आदिवासियों की
जागरूकता का यह आलम है कि बिना
रेडियों एवं टीवी के अमेरिका
से लेकर बैतूल तक की चिंता की
चिता लेकर बैतूल आ धमकते है।
हालात तो यह है कि बैतूल जिले
के आदिवासी अंचल में बसे पीपलबर्रा
में अब धीरे - धीरे नक्सलवाद
पांव पसरने लगा है। अमेरिका
में यदि ओबामा को दस्त लग जाए
अमेरिका के व्हाइट हाऊस को
चिंता नहीं होगी लेकिन पीपलबर्रा
के आदिवासी उक्त दस्तकांड को
लेकर हाथो में बैनर और पोस्टर
लिए बैतूल की सडक़ो पर उतर जाते
है। प्रायोजित खबरो के लिए
अनुराग मोदी की पूरी टीम कभी
इन आदिवासियों से कलैक्टर को
राखी बंधवाती है तो कभी कुछ
भी करवाती रहती है। जबसे सीबीआई
ने चौथिया के पारधीकांड की
अंतिम जांच रिर्पोट एवं 82 लोगो
के खिलाफ न्यायालय में चालान
पेश किया है तबसे दो समाजवादी
के दो कोणो के बीच जबरदस्त युद्ध
छिड़ गया है। डॉ सुनीलम् के
चौथिया के पारधी कांड को लेकर
प्रेषित लेख को अनुराग मोदी
ने तथ्यों की गलत बयानी बताया
है। अनुराग मोदी कहते है कि
पारधी समुदाय के खिलाफ नफरत
के ज़हर से भरा है। इधर चौथिया
कांड पर पूर्व विधायक एवं टीम
अन्ना से जुड़े डॉ सनीलम् कहते
है कि इन दिनों म.प्र. के बैतूल
जिले की मुलताई तहसील का पारधी
कांड फिर चर्चा में है। जबलपुर
स्थित सीबीआई न्यायालय द्वारा
82 ग्रामीणों के खिलाफ गैर जमानती
वारंट 11 सितम्बर, 2007 की घटना के
5 साल बाद सीबीआई द्वारा चलान
प्रस्तुत करने के बाद जारी
किया गया है।
जिमसें वर्तमान
विधायक पूर्व विधायक तथा वर्तमान
बेतूल जिला पंचायत के उपाध्यक्ष
मुलताई नगरपालिका अक्ष्यक्ष
पति भी शामिल हैं। चैनालों
को देखकर वह अखबारों को पढक़र
दर्शक और पाठक यह समझ रहे होंगे
कि सभी पार्टी के नेताओं तथा
बहुसंख्यक जातियों के लोगों
ने मिलकर गरीब पारधीयों के
घर जलाने का जघन्य अपराध किया
है। मुलताई का 10 वर्ष तक विधायक
रहने के कारण उक्त घटना को लेकर
मेरी जानकारी में जो तथ्य आए
हैं उसके अनुसार मुलताई के
सांडिया नामक ग्राम में 9 सितम्बर
2007 को पारधियों ने सामूहिक बलात्कार
के बाद गांवडे परिवार की एक
महिला की हत्या कर दी थी। गुस्साये
ग्रामीणों ने आन्दोलन किया,
तब अधिकारियों ने 1995 में चौथिया
ग्राम में कांग्रेस द्वारा
इन्दिरा आवास योजना के तहत
पट्टे देकर बसाये गये 11 पारधी
परिवारों को चौथिया से हटाकर
अनयत्र बसाने का आश्वासन दिया
था। आश्वासान पूरा न किये जाने
पर ग्रामवासियों ने जिलाधीश
को चेतावनी पत्र लिखकर 12 सितम्बर
को महापंचायत कर 13 तारीख से
पारधियों के पट्टे निरस्त करने
अपराधी पारधियों का जिलाबदर
करने तथा पीडि़त महिला को मुआवजा
देने की मांग की थी। पुलिस के
एसडीओपी साकल्ले द्वारा कहा
गया कि 12 तारीख के पहले प्रशासनिक
पुलिस कार्यवाही के माध्यम
से पाराधियों को हटाया जायेगा।
लेकिन कार्यवाही करने की बजाय
अधिकारियों ने ग्रामीणों को
उकसा कर 11 तारीख के सुबह 7 बजे
से कार्यवाही करने को कहा था।
डॉ सुनीलम् कहते है कि घटना
स्थल पर वे ही नहीं सभी वरिष्ठ
अधिकारी मौके पर मौजूद थे।
उनके द्वारा किसानों को यह
समझाने की कोशिश की कि अधिकारी
स्वंय कार्यवाही न कर लोगों
को उकसा रहे हैं। डॉ सुनीलम्
के अनुसार उन्हे स्थानीय नेताओं
द्वारा बोलने से रोका गया लेकिन
चित्र में डॉ सुनीलम् और
राजा पंवार दोनो साथ - साथ खड़े
भीड़ को उकसा रहे है। डॉ सुनीलम्
कहते है कि वे अपराधियों पर
कार्यवाही के निर्देश देकर
वहां से चले गए। डॉ सुनीलम्
का यह आरोप है कि चौथिया कांड
के बाद पारधियों को तब से लेकर
अब तक प्रशासन द्वारा पाला-पोसा
जा रहा है, जहां कहीं भी प्रशासन
की ओर से पाराधियों के पुर्नवास
की बात सामने आती है उस इलाके
के किसान विरोध प्रदर्शन के
लिये सामूहिक तौर पर मैदान
में उतर जाते हैं। इसका कारण
यह है कि पारधियों ने 1995 के बाद
न केवल बड़े पैमाने पर स्थानीय
कांग्रेस के नेताओं तथा पुलिस
के संरक्षण में अपराध किये
बल्कि कई हत्याओं, चोरी, हमले,
की घटनाओं में शामिल होते हुए
अशांति की जड़ रहे। मोटे तौर
पर 1500 से अधिक अपराधिक घटनाओं
को उन्होंने अंजाम दिया, डॉ
सुनीलम् कहते है कि पारधियों
ने ही कांग्रेस के इशारे पर
षडय़ंत्र पूर्वक 12 जनवरी 1998 के
किसन आंदोलन के दौरान पथराव
कर गोली चालन करवाने के षडय़ंत्र
किया थाद्ध सरकार के संरक्षण
के चलते उनमें से एक पर भी पुलिस
द्वारा सभी 67 में से एक भी प्रकरण
दर्ज नहीं किया गई। पारधियों
का मनोबल इतना बढ़ गया था कि
वे सरेआम किसानों के खेत की
खड़ी फसल या जानवर ले जाते थे,
क्षेत्र में चोरी करना तथा
अन्य अपराध इनके द्वारा किये
जाते थे कई बार उन्होंने पुलिस
के थाना प्रभारी तक पर हमला
कि_जीवन कारावास की सजा भी सुनाई
गई। अब सवाल यह उठता है कि डॉ
सुनीलम् कांग्रेस को दोष
दे रहे है लेकिन पूरे दस साल
तक तो वे विधायक रहे है और उन्होने
कितनी बार बैतूल जिला मुख्यालय
पर पारधियों के कथित अपराधिक
स्वभाव के कारण आन्दोलन या
प्रर्दशन किया था। अब डॉ सुनीलम्
चौथिया के पारधी कांड में आरोपी
बनने के बाद कहते है कि उच्च
न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई
द्वारा जांच की गई। डॉ सुनीलम्
का आरोप है कि सीबीआई ने ग्राम
के किसानों को बुरी तरह प्रताडि़त
कर फर्जी तौर पर हत्या के प्रकरणों
में 40-50 किसानों को फंसा दिया।
दस-दस दिन तक किसानों को मुलताई
रेस्ट हाऊस में कमरे में बंद
करने फर्जी तौर पर अपराध स्वीकार
(कबूल) करने तक कई-कई घंटों तक
पीटा गया लेकिन डॉ सुनीलम्
यह बता नहीं सके कि किसी भी किसान
या ग्रामिण ने सीबीआई के द्वारा
बंधक बना कर रखने या उन्हे बुरी
तरह से पीटने की रिर्पोट किसी
थाने में या राज्य सरकार को
क्यों नहीं की....? डॉ सुनीलम्
कहते है कि मुलताई क्षेत्र
में केवल अधिकारियों द्वारा
समय से अपराधियों पर कार्यवाही
करने की बजाय उन्हें संरक्षण
देने तथा हालात बेकाबू होने
पर स्वयं कार्यवाही करने की
बजाय ग्रामीणों को सीधी कार्यवाही
के लिये उकसाने के चलते 150 से
अधिक ग्रामीण जिनका कभी कोई
अपराधिक रिकाडऱ् नहीं रहा
है उन्हे फंसाया गया है। डॉ
सुनीलम् कहते है कि जन आक्रोष
की एक घटना मुलताई के पास खापाखतेड़ा
ग्राम में लोहारों की तीन महिलाओं
को जिंदा जला दिया गया था। इस
नफरत की आग में जली तीन निर्दोरूा
महिलाओं की हत्या के आरोप में
150 से अधिक ग्रामीणों पर मुकदमे
चले तथा 40 से अधिक ग्रामीणों
को आजीवन कारावास भी हुआ।
इसी
तरह की घटना मुलातई तहसील में
घटाअमरावती में हुई थी जिसमें
कई सालों तक जेल काटने के बाद
ग्रामीण छूट सके। मजेदार बरत
तो यह है कि डॉ सुनीलम् कहते
है कि कानून हाथ में लेना गलत
है किसी की मकान जलाना जघन्य
अपराध है, लेकिन डॉ सुनीलम्
पर बैतूल जिले के विभिन्न थानो
में दर्ज अपराधो को देखा जाए
तो वे पारधियों से बड़े अपराधी
है लेकिन उनका जिला बदर नहीं
हुआ और विधायक बनने के बाद उन
पर दर्ज सभी अपराधिक मामले
स्वत: राज्य सरकार द्वारा जनहित
में वापस ले लिए गए। कभी पुलिस
रिकार्ड में राजनैतिक गुण्डे
के रूप में दर्ज रहे डॉ सुनीलम्
कहते है कि जन आक्रोष के चलते
इस तरह के अपराध क्यों घटित
हुये, इस पर सोचा जाना जरूरी
है। यदि अपराधियों पर पुलिस
एवं प्रशासनिक अधिकारियों
ने समय पर जिला बदर की कार्यवाही
कर दी होती तथा 5 घंटे तक आगजनी
के दौरान संरक्षण देने की बजाय
आगजनी रोकी गई होती, तब भी यह
घटना टाली जा सकती थी। माननीय
उच्च न्यायालय के निर्देशो
पर पारधियों की बसाहट का विरोध
करने वाले डॉ सुनीलम् कोर्ट
की अवमानना करने से भी नहीं
चुक रहे है वे कहते है कि अभी
भी प्रशासन व पुलिस के जिलाअधिकारी
जन भावनाओं का आदर करने की बजाय
पारधियों को वापस, उसी स्थान
पर चौथिया में बसाने की जिद
पर अड़े हैं। एक तरफ डॉ सुनीलम्
कहते है कि देश के नागरिक को
किसी भी स्थान पर रहने का अधिकार
है, तथा गरीबों को बसाना सरकार
की जिम्मेदारी व जवाबदेही है,
लेकिन अपराधियों और सामान्य
व्यक्तियों में भेद करना भी
आवश्यक है लेकिन डॉ सुनीलम्
को कौन समझाए कि उच्च न्यायालय
की मंशा क्या है..? दोहरे चरित्र
एवं मानसिकता वाले समाजवाद
का चोला उतार कर समाजसेवी बने
टीम अन्ना के सदस्य डॉ सुनीलम्
स्वंय किसी के अपने नहीं रहे
उन्होने सांपो की तरह अपनी
त्वचा रूपी सोच एवं मानसिकता
को बार - बार बदला है। अब डॉ सुनीलम्
कहते है कि सामान्य लोगों के
पुर्नवास का सभी नागरिक स्वागत
करेंगे लेकिन अपराधियों का
स्थान जेल के अलावा कोई दूसरा
नहीं होना चाहिये । अब स्वंय
के चौथिया कांड में अपराधी
के रूप में जेल जाने की बारी
आई तो डॉ सुनीलम् कहते है
कि जो लोग यह बतलाने की कोशिश
करते हैं पाराधियों के साथ
जातीय पूर्वाग्रह के चलते इस
तरह का बर्ताव किया जा रहा है
वे बैतूल जिले की लाखों जनता
की भावना का अपमान करते हैं।
तथा 10-10 लाख रुपये की साहूकारी
करने वाले तथा लगातार अपराध
करने वाले कुछ पारधी अपराधियों
को संरक्षण देकर उनका मनोबल
बढ़ाने का काम करते हैं। आज
मौजूदा समय में चौथिया कांड
के शिकार बने पारधियों के सबसे
बड़े समर्थक एवं हितैषी के
रूप में अनुराग मोदी ही सामने
आए है ऐसे में दोनो समाजवादियों
की अपनी - अपनी महत्वराकांक्षा
के चलते चौथिया का पारधी कांड
निर्णायक मोड़ पर आ गया है।
इस कंाड के चलते दो दर्जन नामजद
तथा दो हजार अज्ञात आरोपियों
की शिनाख्त होने के बाद उनका
उत्पीडऩ एवं जीवन जेल में काटना
है। डॉ सुनीलम् अपने बचाव में
पलटवार करते है कि 11 पारधी परिवारों
में से अपराधिक तत्वों पर कानूनी
कार्यवाही कर न केवल पारधी
परिवार उजडऩे से बच सकते थे
बल्कि 1995 के बाद से लेकर अब तक
जिस प्रताडऩा से 25 गांव के 50
हजार से अधिक किसानो एवं ग्रामिणो
को शांति से जीवन गुजारने का
अवसर मिल सकता था। अब डॉ सुनीलम्
को अपने साथ उन किसान परिवार
की भी चिंता सताने लगी है जिनके
परिवार जनों के जेल में जाने
से उनके कथित उजड़ जाएगें।
अपने जेल जाने की बारी आई तो
डॉ सुनीलम् कहते है कि उच्च
न्यायालय तथा तमाम आयोगों के
निर्देशों के बावजूद सरकार
पुर्नवास करने में असक्षम साबित
हुई है। सरकार 17 वर्षों में
11 पारधी परिवारों नहीं बसा पायी
है। डॉ सुनीलम् कहते है कि देश
के तमाम मानवाधिकार संगठनों
नागरिक संगठनों तथा राजनैतिक
दलों की अगुवाई करने वाले किसानों
के बीच जाकर स्वतंत्र रूप से
जनसुनवाई करें ताकि दूध का
दूध और पानी का पानी हो सके,
सच्चाई सामने आ सके। केवल कानून
व्यवस्था के नजरिये से समस्या
का समाधान नहीं होगा। डॉ सुनीलम्
का यह कहना कि प्रशासनिक एवं
पुलिस के उच्चाधिकारी सब कुछ
करा-कर सीबीआई से लेन-देन कर
कानून की गिरफ्त के बाहर हो
गये हैं, लेकिन आम किसानों ग्रामीणों
और स्वंय उनको कौन बचायेगा?
कौन न्याय दिलाएगा? इधर पूरे
घटनाक्रम के पीछे की कहानी
कुछ और ही बयां करती है। बैतूल
जिले में जनहित याचिका के माध्यमों
से जिला प्रशासन एवं राज्य
सरकार के बाद राजनैतिक दलो
के लिए सरदर्द बने अनुराग मोदी
पारधियों के सरगना अलस्या की
आड़ में सौदेबाजी करने में
लगे हुए है लेकिन अलस्या पारधी
और रत्ना पारधी दोनो ही उच्च
न्यायालय तक मामले के पहुंच
जाने के बाद अपने मामले को लेकर
स्वंय जितने सक्रिय है उतने
स्वंय अनुराग मोदी नहीं है।
सीबीआई कब आती है और कब जाती
है जिला प्रशासन को भले ही पता
न हो लेकिन सीबीआई की नस - नस
से वाकीफ अलस्या सीबीआई की
भी उच्च न्यायालय में शिकव
- शिकायत करने से नहीं चुकते
है।
बैतूल जिले का पारधी कांड
बैतूल जिले की राजनीति को जबरदस्त
प्रभावित करने जा रहा है। सपा
, कांग्रेस , भाजपा तीनो ही राजनैतिक
पार्टी के अति महत्वाकांक्षी
नेताओं से लेकर जनप्रतिनिधि
तक का आने वाला भविष्य तय करने
जा रहा चौथिया का पारधी कांड
जिले के कई नेताओं की खामोशी
और गायब होने की कहानियों को
जन्म देने वाला है। लोग कहते
है कि अलस्या पारधी का अनुराग
मोदी का मुखौटा ओढ़े अपने राजनैतिक
प्रतिद्वंदियों को करारी शिकस्त
देने में लगे हुए है। समाजवाद
का चोला उतारने वाले और कथित
नक्सलवाद का चोला ओढऩे वाले
के बीच चलने वाली इस जल - जमीन
और जंगल की लड़ाई का हश्र क्या
होगा यह आने वाला समय ही बता
पाएगा।
No comments:
Post a Comment