बाबा बनाम बलात्कार: कुकुरमुत्तों के तरह पनप रहे हैं भारत में ‘स्वयंभू गुरुजन और स्वामी”
धरा जब जब विकल होती, मुसीबत का समय आता;
कोई किसी रूप में आकर, मानवता की रक्षा करता.”
-शिवनाथ झा।।
आज के परिप्रेक्ष्य में मानवता के रक्षक के रूप में नहीं वरन “भक्षक” के रूप में लोग अवतरित हों रहे हैं विभिन्न नामों से – बाबाओं, विचारकों, प्रचारकों, आध्यात्म गुरुओं, योगियों के रूप में – इतिहास साक्षी है.
स्वतंत्र भारत के जन-मानस के “अंध-विश्वासों” को, विशेषकर महिलाओं को, अपना कवच बनाकर पिछले पांच दशको से भी अधिक से, उनका मानसिक, आर्थिक, शारीरिक और धार्मिक रूप से बलात्कार कर रहे ये “गुरूवर”.
सुर्ख़ियों में रहना इन “तथाकथित महात्माओं” का जन्म सिंद्ध अधिकार हों गया है. धन्यवाद के पात्र हैं भारत के लोग, जो मानसिक बिपन्नता के कारण कभी ‘गदगद होकर’ इस बाबाओं और महात्माओं के लिए एक ही समय में ताली भी बजाते हैं और दूसरे ही क्षण अपने गुरुदेव को विभिन्न भारतीय “गालियों” से अलंकृत भी करते हैं.
भारत के विभिन्न जाँच एजेंसियों के आंकड़ों को यदि समग्र रूप में देखा जाये तो स्वतंत्र भारत में स्वयं-भू अवतरित हुए महान ‘ऋषि’ महर्षि महेश योगी से लेकर जनता के आँखों को रंगीन बनाये रखने के लिए गेडुआ वस्त्र धारण करने वाले स्वयं-भू “स्वामी” अग्निवेश तक, सभी तथाकथित बाबाओं ने, महात्माओं ने, आध्यात्म गुरुओं ने, योग गुरुओं ने जो कभी राजनेताओं के दरवाजे पर उनकी ‘परछाई मात्र’ की प्रतीक्षा में सालों-साल गुजार दिए, कई चाय वालों के पैसे आज तक उधार खाते में दर्ज हैं, आज तक़रीबन 29,000 करोड़ से अधिक के संपत्ति और नकद के मालिक हैं.
भारत के विभिन्न कार्पोरेट घरानों के व्यवसायों में हिस्सेदार हैं, समाचार पात्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनलों में अपना पैसा निवेश किये हुए हैं, कईयों ने अपने प्रचार-प्रसार की समुचित व्यवस्था हेतु अपना ही टीवी चैनल देश विदेशों में खोल रखा है, कुछ खोल रहें है. आज अप्रक्ष रूप से देश चलाने का दावा भी ठोकते हैं, बड़े-बड़े उद्योग घराने के बहु-बेटियों को “संतान प्राप्ति” के लिए “जल और भभूत” भी देते हैं.
कुल मिलाकर दुकान तो “ताज महल” की तरह चल रही है – समानता एक है: ताज की नीव भी कब्र पर है इनकी दुकाने भी भारतीय जन-मानस के शोषित रक्त पर. अंतर सिर्फ इतना है की ‘ताज’ निर्जीव होने के कारण अपने दर्द को कराह नहीं सकता, भारत के लोगों को ‘कराहने की आदत ही नहीं है’, सभी सजीव होते हुए भी निर्जीव के तरह जीना पसंद करते हैं. बाह रे बाबा, बाह रे तेरा वशीकरण मंत्र का प्रभाव.
महेश योगी से लेकर रवि शंकर तक पिछले तीन दशक में ये “तथाकथित बाबाओं और गुरुदेवों” ने जो जो कारनामे किये वह भारतीय नागरिकों, या यूँ कहें, विश्व भर में “कुख्यात” है. आसमान की ऊंचाई में लोगों ने उन्हें उड़ते भी देखा और समय के अवसान के साथ जमीन पर लोटते हुए भी. आज तक एक बात समझ में नहीं आई और वह यह की अगर इन “बाबाओं और गुरुदेवों” में कोई “दिब्य शक्ति” है तो सभी रामचंद्र परमहंश क्यों ना बने जिन्हें माँ काली स्वयं दर्शन देती थी?
दरअसल, ये सभी तथाकथित बाबा, गुरु या इन्हें जो भी नाम से पुकारा जाये, मूलरूप से शाम-दंड-भेद सभी का एक मिश्रित रूप है जो चाटुकारिता, अवसरवादिता या अन्य उपायों के द्वारा भारतीय जन-मानस की सबसे बड़ी कमजोरियों – चाहे वह आध्यात्म से जुड़ा हों, धर्मं से जुड़ा हों, संप्रदाय से जुड़ा हों, स्वास्थ से जुड़ा हों, का अन्य – को अपनी शक्ति बनाकर उनका मानसिक, आर्थिक, शारीरिक, धार्मिक रूप से बलात्कार करते हैं और प्रक्रिया अनवरत है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारत के लोग अंधविश्वास में इतने गोंते लगा चुके हैं कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. वे मात्र अब “ताली बजाने वाला” ही रह गए हैं – चाहे नौटंकी में बजाएं या खुद नौटंकी करें.
सत्तर के दशक में जब श्रीमती इंदिरा गाँधी पर “शनि की दशा” मर्रा रहा था, इस अवसर का फायदा उठाया महेश योगी ने. आध्यात्म गुरु के रूप में श्रीमती गाँधी से सानिग्धता बढ़ी. भारत सहित विश्व के अन्य देशो में “शांति दूत वाहक” के रूप में अवतरित हुए. विश्व के देशों का भ्रमण किया और पूरे विश्व में हजारों-हजार “तथाकथित” शांति वाहक बनाये. बाद में महेश जोगी “महर्षि महेश योगी” बन गए. कहा जाता है की मृत्यु के समय उनके और उनके द्वारा स्थापित संस्थान को ४०० मिलियन डोल्लर से अधिक की संपत्ति थी. आज उनके परिवार और उनके लोग “शांति बहक” तो नहीं रहे, अलबत्ता, भारत सहित विश्व के अन्य देशों में विद्यालय, अन्य शैक्षणिक संस्थाने, और विभिन्नप्रकार के व्यावसायिक उद्योगों की स्थापना किये, जिसने स्वास्थ, दवाई, ओर्गानिक फार्म आदि सम्मिल्लित हैं, माला-माल हों गए.
सत्तर के दशक में ही एक और योगराज का आभिर्भाव हुआ. इन्होने भारतीय जन-मानस को आध्यात्म नहीं योग सिखाने का ठेका लिया. चुकि उस वक्त रामदेव की उत्पत्ति नहीं हुई थी, इसलिए उन्होंने सीधा निशाना साधा श्रीमती इंदिरा गाँधी को, माध्यम थे आध्यात्म गुरु महेश योगी और उस योग गुरु का नाम था धीरेन्द्र चौधरी, जो बाद में धीरेन्द्र ब्रम्हचारी के नाम से विख्यात हुए. गीता के ज्ञान से प्रभावित चौधरी कार्तिकेय के शिष्य बने और बनारस के समीप ज्ञान प्राप्त किया. सोवियत रूस से वापस आते ही पंडित जवाहरलाल नेहरु ने इन्हें इंदिरा गाँधी को योग सिखाने का भार सौंपा था. गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वाह करते जन सन १९७५-७७ में श्रीमती गाँधी पर फिर से शनि-राहु-केतु ग्रहों का प्रभाव उमर पड़ा, धीरेन्द्र चौधरी, जो अब तक धीरेन्द्र ब्रम्हचारी बन गए थे, इंदिरा जी के समीप आते गए और तत्कालीन सत्ता के गलियारे में बहुत ही शसक्त व्यक्ति के रूप में अवतरित हुए. तीस वर्षों के “तथाकथित योग साधना के दौरान, धीरेन्द्र ब्रम्हचारी ना केवल जम्मू में आर्म्स निर्माण करने के उद्योग लगाये (अब सरकार का है) बरन हजारों-हजार एकड़ क्षेत्र में अपना फार्म हाउस बनाया, निजी हेलिकोप्टर रखा, हेली-पैड बनाया, वन-प्राणी का निवास स्थान बनाया, जम्मू में सात-मंजिला मकान बनाया.
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को लोग “फ्लाईंग स्वामी” के नाम से भी जानते थे. अन्वेषण विभाग के लोगों का कहना है की धीरेन्द्र ब्रह्मचारी अवैध आर्म्स डील के अरितिक्त, कई ऐसे गैर-क़ानूनी क्रिया कलापों में लिप्त थे जो “गुरु” शब्द को कलंकित करता है. बहरहाल, अगर सूर्योदय हुआ तो सूर्यास्त भी होगा. यही प्रकृति का नियम है. धीरेन्द्र चौधरी या धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जीवन एक “विचित्र परिस्थिति” में एक निजी विमान दुर्घटना में हुआ. आज तक भारत के लोग उस गुत्थी को सुलझा नहीं पाए.
इंदिरा गाँधी के प्रधान मत्री काल में ही एक और स्वामी अवतरित हुए जिनका वास्तविक विकास तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वि. नरसिम्हा राव के समय हुआ और वे हैं स्वयं-भू स्वामी चंद्रास्वामी. तंत्र विद्या में महारथ प्राप्त चंद्रास्वामी भारतीय राजनैतिक पट पर एक “लालिमा” के तरहव्तरित हुए, लेकिन मंत्रो का प्रभाव कुछ विपरीत पड़ा उनपर. वैसे कामाख्या, जहाँ लोग तंत्र-मंत्र सिद्ध करते हैं, की यह प्रथा भी है कि “अगर तंत्र-मन्त्रों का प्रयोग जन-हित में ना हों, तो उसका विपरीत प्रभाव तांत्रिक पर पड़ता है”, और कुछ ऐसा ही हुआ चंद्रास्वामी पर. राजीव गाँधी हत्या कांड सहित कई कुख्यात और गैर क़ानूनी धंधों में इनका नाम आया. लन्दन से लेकर विश्व के अनेकों देशों में ठगी – ठगाने के कार्यों में भी पाए गए. वैसे, भारत के कई जाँच पड़ताल करने वाले एजेंसियों के फायलों में इनका नाम अभी भी दर्ज है, लेकिन कुछ दिन पूर्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ मुकदमों में इन्हें मुक्त कर दिया है और इन्हें विदेश जाने पर लगी पावंदी को भी उठा लिया है.
अस्सी के दशक के पूर्वार्ध एक और स्यंभू स्वामी अवतरित हुए – हिन्दू सामाजिक सेवक के रूप में, आर्य समाज के ज्ञान को बढ़ाबा देने. सामाजिक सेवक होना और नाम के आगे ‘स्वामी’, बात्वाही हुई हैसे ‘सोना में सुहागा’. हरियाणा में पहला प्रवेश मारा राजनीति में – नाम है अग्निवेश. सन १९७९-१९८२ तक हरियाणा राज्य में शिक्षा मंत्री रहे. राजनीति में भविष्य को ‘अधर में लटके’ देख एक संस्था खोला और बंधुआ मजदुर पर काम करने लगे, उनके मुक्ति के लिए. यह अलग बात है कि उनके कार्यालय में आज भी १४ साल से काम उम्र के बच्चे कार्य करते हैं अपने पेट कि भूख को मिटाने.
जैसे-जैसे मजदूरों के लिए सरकार कि नीतियाँ बदलती गयी और मजदूरों को उचित मजदूरी के साथ साथ ज्ञान भी मिलने लगा, अग्निवेश साहेब, भष्टाचार के खिलाफ छिड़े जंग में कूद पड़े. कुल मिलाकर अखबार के पन्नों पर, टीवी चैनलों पर आना इन्हें अच्छा लगता है. इतना ही नहीं, स्वामी जी अभी अभी बिग-बॉस में भी मोहतरमाओं के सानिग्धता में तीन दिन बिताये हैं. वैसे देश के विभिन्न जांच एजेंसियों कि नजर इनकी हरकतों पर है, देखते हैं आगे क्या होता है?
इस दशक के पूर्वार्ध एक और योग गुरु अवतरित हुए भारतवासियों को ज्ञान दें. राम कृष्ण यादव. पहले तो रामदेव बने, फिर स्वामी रामदेव और अब बाबा रामदेव. इसमें कोई संदेह नहीं है कि रामदेव जी ने भारतीय योग ज्ञान को एक नई दिशा दी है, लेकिन अनवरत दिशा-भ्रष्ट होना, आने वाले दिनों के लिए शुभ-संकेत नहीं है. वैसे देश के विभिन्न जांच एजेंसियों कि नजर इनकी हरकतों पर आ टिकी है. दस वर्षों से भी काम कि अवधि में विश्व भ्रमण करने के अतिरिक भारतीय राज नेताओं, शाशकों, उद्योगपतियों, विशेषकर भारतीय मूल के विदेशों में रह रहे लोगों में इनकी पहुँच प्रशांत महासागर से भी अधिक गहरा है. कहा जाता है कि इनके पास किता धन है या इन्होने कहाँ कहाँ अपने धनों का निवेश किया है, किसी को पता नहीं. आगे समय बताएगा.
अंत में एक और स्वयंभू आध्यात्म गुरु से मिलिए. भारतीय गुरुओं के इतिहास में शायद यह पहले “गुरु” होने जीने नाम के आगे दो बार “श्री” लगता है. नाम है रवि शंकर. आध्यात्म गुरु और भारत के अतिरिक विश्व के लोगों को “जीने का तरीका” बताते हैं और संस्थापक है “आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ौंडेशन” के. महेश योगी के शिष्य हैं, विश्व का कोई ही हिस्सा होगा जहाँ इनका पदार्पण नहीं हुआ हों. चाहे नंदी ग्राम (पश्चिम बंगाल) में निर्मम हत्या हों या दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन, सभी जगह मिलेंगे आपको. लोगों के दिलों-दिमाग पर पड़ने वाले कुश्प्रभावों को अपने “जीने के रहष्य” के माध्यम से सुलझाते है. विश्वभर में कई संस्थाओं के स्वामी हैं. “सफ़ेद वस्त्र” इनका सबसे प्रिय है. बहुत मृदु-भाषी है. लोगों का मानना है कि “इनकी यही मीठी बोली लोगों के लिए प्राण घाती होते हैं”.
“संदेहास्पद” प्रारंभ से रहे हैं इसलिए देश के विभिन्न जांच एजेंसियों कि नजर इनकी हरकतों पर होना लाजिमी है.
सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि आज के ये सभी स्यंभू-गुरु, स्वामी “गुरु-शिष्य” परंपरा में विश्वास नहीं रखते. कोई भी ऐसे गुरु नहीं दीखते जो अपने ज्ञान, साधना को अपने किसी उत्तराधिकारी को सौंपने का प्रयास कर रहे हों. “संस्थाएं” इनके “विरासत” के रूप में पनप रही हैं. अब तय तो भारत के आवाम को करना है कि वह खुद को इस काबिल स्वयं बनाये तो अपना जीवन अपने तरीके से जिए, अपने आध्यात्म के साथ, या फिर समर्पित कर दे स्वयंभू गुरुओं, स्वामियों के समक्ष शोषित होने.
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