मैं निर्मल बाबा के साथ हूं... कम से कम अब तो साथ हूं.... मेरे इस कथन पर आक्रोशित होने की ज़रूरत नहीं है और अगर आप होते हैं तो मैं तो हूं ही आक्रोशित। आज आप जब निर्मल बाबा उर्फ निर्मल नरूला के खिलाफ ज़हर उगलते हैं तो मेरा मन करता है कि मैं आपके खिलाफ मोर्चा खोलूं, आप जो भी हों। मुझे आपत्ति है निर्मल नौटंकी बाबा के खिलाफ आपके सारे अभियान से, मुझे नफरत है आप सबके दोगले व्यवहार से, मुझे घृणा है इस एकतरफा नौटंकी से। मेरे पास आप सबके लिए कई सवाल हैं, ऐसे सवाल जिनके जवाब देने तक मैं निर्मल बाबा के साथ खड़ा हूं क्योंकि बिना इन जवाबों के आप सब के साथ तो नहीं ही खड़ा हुआ जा सकता जिनके मन में चोर है। बेहतर है कि एक सार्वजनिक ठग के पक्ष में खड़ा हो जाऊं, आदर्श का ढोंग, बेईमानी के सच से ज़्यादा बुरा है और ज़्यादा घृणित...हर हाल में।
निर्मल नाम के इस बाबा के खिलाफ पिछले कुछ वक्त से एक अभियान जारी हो गया, खासकर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और मीडिया वेबसाइट्स पर। टीवी न्यूज़ चैनलों समेत करीब 35 चैनलों पर चलने वाले इस तथाकथित बाबा के खिलाफ लिखने वाले ज़्यादातर लोग प्रिंट या वेब से जुड़े हुए हैं और उन सब को ये आपत्ति है कि पैसे कमाने के लिए इस बाबा का विज्ञापन बुलेटिन चला कर चैनल अंधविश्वास फैला रहे हैं और ठगी को बढ़ावा दे रहे हैं। मैं इससे भी सहमत हूं कि हां इससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है और ठगी हो रही है लेकिन मैं फिर भी निर्मल बाबा के साथ हूं।
आपको क्या याद है कि पहली बार टीवी पर बाबागीरी कब शुरू हुई थी, शायद आसाराम बापू के साथ, आसाराम क्या हैं और उनकी असलियत क्या है, कम से कम पत्रकार साथियों को बताने की ज़रूरत नहीं है, उसके बाद सुधांशु जी से लेकर किरीट जी तक न जाने कितने बाबा और उपदेशक टीवी चैनलों ने पैदा कर डाले। न्यूज़ चैनलों की वजह से ही आज तमाम अराजक तरीकों से बिज़नेस एम्पायर खड़ा करने वाले योगगुरु देश की सत्ता तक हासिल कर लेने के दिवास्वप्न देख रहे हैं। उसके बाद आया दाती युग, दाती को तो जानते ही होंगे आप वही अपना साक्षात शनिदेव...
जी हां मदन महाराज राजस्थानी उर्फ दाती महाराज के सफर को जिन्होंने करीब से देखा है, (खासकर इंडिया टीवी वाले दोस्त) वो जानते हैं कि ये शख्स क्या से क्या हो गया। क्या शनि के नाम पर डर फैलाना और उसके बाद उसके निराकरण के नाम पर कमाई करना अंधविश्वास नहीं था। बिल्कुल था पर ये होता रहा और दाती महाराज पैसा खर्च कर एक अखाड़े के महामंडलेश्वर तक का ओहदा पा गया। बाकी शनिधाम की सच्चाई हमारे कई प्रोड्यूसर और रिपोर्टर अच्छी तरह से जानते हैं और उनके ऐसे कई किस्से और कारनामे मशहूर हैं पर वो टीवी पर स्टारडम के साथ विराजमान हैं और आप में से कोई चूं नहीं करता।
मैं निर्मल बाबा के साथ दृढ़ता से खड़ा हूं और तब तक खड़ा रहूंगा जब तक कि हम केवल निर्मल बाबा का विरोध करते रहते हैं। कहां थे हम सब जब तमाम ढोंगी बाबा, जो मंचों से गालियां देते हैं, महिलाओं का शोषण करते हैं और ब्लैक मनी को व्हाइट करने के धंधे में लगे रहते हैं, अखबारों से टीवी तक प्रवचन दे रहे थे? क्यों हम ने उनका विरोध नहीं किया? हम देखते रहे, हम चुप रहे...कहां थे आप सब और हम सब जब एक ढोंगी शख्स खुद को शनि का अवतार बताता रहा और लोगों को शनि के नाम पर सारे चैनल्स पर बैठ कर लूटता रहा, क्या आप नहीं जानते थे कि शनि की वक्र दृष्टि महज एक अंधविश्वास भर है? आप में से ज़्यादातर पत्रकार जानते थे पर आप चुप रहे...कहां थे हम सब पिछले कई सालों से टैरो कार्ड से लेकर के न जाने किस किस तरह से कभी सुंदर औरतों तो कभी अजीब से पंडितों और नजूमियों का इस्तेमाल हो रहा था, हमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
देश के दो बड़े चैनल्स ने बाबाओं और धर्मगुरुओं का स्टिंग ऑपरेशन किया, आजतक और आईबीएन 7 ने और इन दोनों ही स्टिंग्स में इन बाबाओं का चरित्र साफतौर पर सामने आ गया। लेकिन विडम्बना देखिए कि इसके बाद भी ये न्यूज़ चैनल्स पर चलते रहे और आपमें से किसी को हिचकी भी नहीं आई। निर्मल बाबा के खिलाफ फिलहाल कोई पुलिस केस नहीं है, लेकिन आसारम जैसे के खिलाफ तो न जाने ज़मीन घोटाले से लेकर हत्या और अपहरण तक के कैसे कैसे केस दर्ज हैं पर वो आपके चैनलों पर आराम से प्रवचन देते दिखते रहे। और हमारे अभी के सारे झंडाबरदार चुप थे। बाबा रामदेव से पहले और उनके अलावा भी योग के न जाने कितने महागुरु मौजूद थे पर पैसा लेकर रामदेव को आज चैनल तक का मालिक बनने का रास्ता किसने दिया, इन्ही न्यूज़ चैनलों ने लेकिन तब कहां थे आप?
निर्मल बाबा के बहाने टीवी समाचार चैनलों पर हमारे कई प्रिंट के साथी निशाना साधने में जुटे हुए हैं और मीडिया को उसके नैतिक दायित्व याद दिला रहे हैं। आप कैसे ये हक रखते हैं, जब पिछले कम से कम 50 साल से ज़्यादातर अखबार फ़र्ज़ी राशिफल छाप कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। क्या ये वही अखबार नहीं हैं, जिन्होंने तमाम फ़र्ज़ी बाबाओं के प्रवचन छापे, हफ्ते के किस दिन कौन सा टोटका करें, ये प्रकाशित किया? क्या अखबारों में बंगाली बाबाओं और तांत्रिकों के विज्ञापन आने बंद हो गए हैं? क्या ये सब अंधविश्वास नहीं? और तो और अखबार तो इस मामले में टीवी से कहीं आगे हैं, हिंदी के तमाम नामी अखबार अपने क्लासीफाइड पन्नों पर लगातार मसाज पार्लरों के फ़र्ज़ी विज्ञापन छापते आ रहे हैं, जिसमें युवाओं को एक दिन में 3 हज़ार से 5 हज़ार रुपए की कमाई का लालच दिया जाता है, इन्ही अखबारों में अश्लील बातों वाली अंतर्राष्ट्रीय कॉल्स का विज्ञापन भी छपता है और झूठ बोलकर ठगने वाले सेक्स क्लीनिकों का भी।
क्या हमारे अखबार के साथी इसके खिलाफ अपने ही अखबार के अंदर आज तक विरोध जता पाए? और अगर नहीं तो टीवी चैनल्स को उपदेश देने का हक उनको कैसे मिल गया? मैं जानता हूं वो तर्क देते हैं कि ये महज विज्ञापन है...तो साहब निर्मल बाबा भी तो विज्ञापन है...वही एथिक्स जो टीवी के लिए हैं, प्रिंट के लिए कैसे मर जाते हैं? और छोड़िए सब कुछ ज़रा बताइए तो किसने शुरू की थी पेड न्यूड़ की रवायत और किस तरह से सिर्फ कस्बों और ग्रामीण इलाकों में अखबार बेचने के लिए उसमें अश्लीलता की हद तक तस्वीरें छापी जाती रहीं, ये भी झूठ है क्या?
लेकिन मैं यहां व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप की बात नहीं कर रहा हूं और न ही में निर्मल नरूला को अच्छा या सही आदमी बताना चाहता हूं। मेरी व्यक्तिगत राय में निर्मल नरूला अव्वल दर्जे का मक्कार है, चोर है और झूठा है...वो आंखों से ही धूर्त लगता है लेकिन क्या वो अकेला है जो ऐसा है...ऐसे कितने बाबाओं के खिलाफ आप जैसों की आवाज़ें नहीं उठी तो ये शक करना मेरा धर्म है कि आखिर एक ही शख्स क्यों? मेरी फेसबुक प्रोफाइल उठाकर देख लीजिएगा, खूब मज़ाक उड़ाया है निर-मल बाबा का लेकिन पक्षपात पूर्ण रवैये पर सवाल क्यों नहीं उठना चाहिए?
सोचिए कि क्यों आखिर केवल निर्मल नरूला का विरोध होना चाहिए, बाकियों का नहीं? क्यों नहीं इस तरह के किसी भी गोरखधंधे की खिलाफत हो, क्या ज़रूरत है अखबार और समाचार चैनल में धर्म की? क्यों नहीं इतने साल हम ने इन सब के खिलाफ प्रचार किया...हम क्यों चुप रहे? और अब जगे भी हैं, तो केवल एक के खिलाफ क्या ये ही हमारी चेतना है...मैं निर्मल बाबा के खिलाफ हूं पर आप सब के साथ नहीं...मैं सबसे तटस्थ होकर एक का विरोध नहीं कर सकता, ये सारे ढोंगी समाज के दुश्मन हैं...या तो इन सबका विरोध इसी अंदाज़ में करने का साहस जुटाइए या फिर निर्मल बाबा को भी माफ़ कर दीजिए। कम से कम वो पैसा लीगल तरीके से लूट रहा है, धर्म की अफीम खिलाकर नहीं। क्यों नहीं बाकी के खिलाफ हम खड़े होते, निर्मल जिनमें से एक हो...क्योंकि आज जितना पैसा निर्मल खर्च रहा है, उतना ही कभी और बाबा भी खर्च देते थे।
निर्मल बाबा मैं तुमसे घृणा करता हूं पर आज तुम अकेले निशाने पर हो, ऐसे में मैं बाबाओं में अल्पसंख्यक मान तुम्हारे साथ हूं। निर्मल नरूला तुम ढोंगी हो पर वो ज़्यादा ढोंगी हैं, जो दाती के खिलाफ चुप रहे और तुम्हारे खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं। निर्मल नरूला, तुम समाज के लिए खतरा हो, लेकिन वो दोगले लोग ज़्यादा हैं, जो गुड़ खाते हैं और गुगुले से परहेज करते हैं। निर्मल बाबा उनके दोगलेपन की वजह से मैं तुम्हारे समर्थन में हूं, पर मैं तुम्हारा समर्थक या अनुयायी नहीं हो।
मैं तुम पर विश्वास नहीं करता पर तथाकथित पत्रकारों पर से विश्वास भी उठ ही चुका है। एक और वजह निर्म नरूला, तुमने और तमाम धर्मगुरुओं का धंधा ठप करा दिया, इसके लिए तुमको सलाम। इसीलिए जब तक ये बाकी बाबाओं के खिलाफ भी ऐसा ही अभियान नहीं चलाते, मैं तुम्हारे साथ हूं और जिस दिन ये एकतरफा न होकर पूरी ढोंगी कौम के खिलाफ हो जाएंगे, जिसका तुम भी हिस्सा हो, उसी दिन मैं इनके साथ खड़ा हो जाऊंगा। निर्मल बाबा तुम गलत कर रहे हो, लोगों को बेवकूफ बना रहे हो पर ये तो हज़ारों सालों से धर्मगुरु कर रहे हैं, मुझे तुमसे शिकायत नहीं है, मुझे उनको देख कै आती है, जो जनता और सरोकारों की बात कर के लोगों को धोखा देते हैं और तुम्हारे बजाय मैं उनके खिलाफ लड़ना पसंद करूंगा, मरते दम तक, हर हाल में।
लेखक मयंक सक्सेना टीवी जर्नलिस्ट हैं. कई चैनलों में काम करने के बाद इन दिनों न्यूज24 को सेवाएं दे रहे हैं.
निर्मल नाम के इस बाबा के खिलाफ पिछले कुछ वक्त से एक अभियान जारी हो गया, खासकर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और मीडिया वेबसाइट्स पर। टीवी न्यूज़ चैनलों समेत करीब 35 चैनलों पर चलने वाले इस तथाकथित बाबा के खिलाफ लिखने वाले ज़्यादातर लोग प्रिंट या वेब से जुड़े हुए हैं और उन सब को ये आपत्ति है कि पैसे कमाने के लिए इस बाबा का विज्ञापन बुलेटिन चला कर चैनल अंधविश्वास फैला रहे हैं और ठगी को बढ़ावा दे रहे हैं। मैं इससे भी सहमत हूं कि हां इससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है और ठगी हो रही है लेकिन मैं फिर भी निर्मल बाबा के साथ हूं।
आपको क्या याद है कि पहली बार टीवी पर बाबागीरी कब शुरू हुई थी, शायद आसाराम बापू के साथ, आसाराम क्या हैं और उनकी असलियत क्या है, कम से कम पत्रकार साथियों को बताने की ज़रूरत नहीं है, उसके बाद सुधांशु जी से लेकर किरीट जी तक न जाने कितने बाबा और उपदेशक टीवी चैनलों ने पैदा कर डाले। न्यूज़ चैनलों की वजह से ही आज तमाम अराजक तरीकों से बिज़नेस एम्पायर खड़ा करने वाले योगगुरु देश की सत्ता तक हासिल कर लेने के दिवास्वप्न देख रहे हैं। उसके बाद आया दाती युग, दाती को तो जानते ही होंगे आप वही अपना साक्षात शनिदेव...
जी हां मदन महाराज राजस्थानी उर्फ दाती महाराज के सफर को जिन्होंने करीब से देखा है, (खासकर इंडिया टीवी वाले दोस्त) वो जानते हैं कि ये शख्स क्या से क्या हो गया। क्या शनि के नाम पर डर फैलाना और उसके बाद उसके निराकरण के नाम पर कमाई करना अंधविश्वास नहीं था। बिल्कुल था पर ये होता रहा और दाती महाराज पैसा खर्च कर एक अखाड़े के महामंडलेश्वर तक का ओहदा पा गया। बाकी शनिधाम की सच्चाई हमारे कई प्रोड्यूसर और रिपोर्टर अच्छी तरह से जानते हैं और उनके ऐसे कई किस्से और कारनामे मशहूर हैं पर वो टीवी पर स्टारडम के साथ विराजमान हैं और आप में से कोई चूं नहीं करता।
मैं निर्मल बाबा के साथ दृढ़ता से खड़ा हूं और तब तक खड़ा रहूंगा जब तक कि हम केवल निर्मल बाबा का विरोध करते रहते हैं। कहां थे हम सब जब तमाम ढोंगी बाबा, जो मंचों से गालियां देते हैं, महिलाओं का शोषण करते हैं और ब्लैक मनी को व्हाइट करने के धंधे में लगे रहते हैं, अखबारों से टीवी तक प्रवचन दे रहे थे? क्यों हम ने उनका विरोध नहीं किया? हम देखते रहे, हम चुप रहे...कहां थे आप सब और हम सब जब एक ढोंगी शख्स खुद को शनि का अवतार बताता रहा और लोगों को शनि के नाम पर सारे चैनल्स पर बैठ कर लूटता रहा, क्या आप नहीं जानते थे कि शनि की वक्र दृष्टि महज एक अंधविश्वास भर है? आप में से ज़्यादातर पत्रकार जानते थे पर आप चुप रहे...कहां थे हम सब पिछले कई सालों से टैरो कार्ड से लेकर के न जाने किस किस तरह से कभी सुंदर औरतों तो कभी अजीब से पंडितों और नजूमियों का इस्तेमाल हो रहा था, हमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
देश के दो बड़े चैनल्स ने बाबाओं और धर्मगुरुओं का स्टिंग ऑपरेशन किया, आजतक और आईबीएन 7 ने और इन दोनों ही स्टिंग्स में इन बाबाओं का चरित्र साफतौर पर सामने आ गया। लेकिन विडम्बना देखिए कि इसके बाद भी ये न्यूज़ चैनल्स पर चलते रहे और आपमें से किसी को हिचकी भी नहीं आई। निर्मल बाबा के खिलाफ फिलहाल कोई पुलिस केस नहीं है, लेकिन आसारम जैसे के खिलाफ तो न जाने ज़मीन घोटाले से लेकर हत्या और अपहरण तक के कैसे कैसे केस दर्ज हैं पर वो आपके चैनलों पर आराम से प्रवचन देते दिखते रहे। और हमारे अभी के सारे झंडाबरदार चुप थे। बाबा रामदेव से पहले और उनके अलावा भी योग के न जाने कितने महागुरु मौजूद थे पर पैसा लेकर रामदेव को आज चैनल तक का मालिक बनने का रास्ता किसने दिया, इन्ही न्यूज़ चैनलों ने लेकिन तब कहां थे आप?
निर्मल बाबा के बहाने टीवी समाचार चैनलों पर हमारे कई प्रिंट के साथी निशाना साधने में जुटे हुए हैं और मीडिया को उसके नैतिक दायित्व याद दिला रहे हैं। आप कैसे ये हक रखते हैं, जब पिछले कम से कम 50 साल से ज़्यादातर अखबार फ़र्ज़ी राशिफल छाप कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। क्या ये वही अखबार नहीं हैं, जिन्होंने तमाम फ़र्ज़ी बाबाओं के प्रवचन छापे, हफ्ते के किस दिन कौन सा टोटका करें, ये प्रकाशित किया? क्या अखबारों में बंगाली बाबाओं और तांत्रिकों के विज्ञापन आने बंद हो गए हैं? क्या ये सब अंधविश्वास नहीं? और तो और अखबार तो इस मामले में टीवी से कहीं आगे हैं, हिंदी के तमाम नामी अखबार अपने क्लासीफाइड पन्नों पर लगातार मसाज पार्लरों के फ़र्ज़ी विज्ञापन छापते आ रहे हैं, जिसमें युवाओं को एक दिन में 3 हज़ार से 5 हज़ार रुपए की कमाई का लालच दिया जाता है, इन्ही अखबारों में अश्लील बातों वाली अंतर्राष्ट्रीय कॉल्स का विज्ञापन भी छपता है और झूठ बोलकर ठगने वाले सेक्स क्लीनिकों का भी।
क्या हमारे अखबार के साथी इसके खिलाफ अपने ही अखबार के अंदर आज तक विरोध जता पाए? और अगर नहीं तो टीवी चैनल्स को उपदेश देने का हक उनको कैसे मिल गया? मैं जानता हूं वो तर्क देते हैं कि ये महज विज्ञापन है...तो साहब निर्मल बाबा भी तो विज्ञापन है...वही एथिक्स जो टीवी के लिए हैं, प्रिंट के लिए कैसे मर जाते हैं? और छोड़िए सब कुछ ज़रा बताइए तो किसने शुरू की थी पेड न्यूड़ की रवायत और किस तरह से सिर्फ कस्बों और ग्रामीण इलाकों में अखबार बेचने के लिए उसमें अश्लीलता की हद तक तस्वीरें छापी जाती रहीं, ये भी झूठ है क्या?
लेकिन मैं यहां व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप की बात नहीं कर रहा हूं और न ही में निर्मल नरूला को अच्छा या सही आदमी बताना चाहता हूं। मेरी व्यक्तिगत राय में निर्मल नरूला अव्वल दर्जे का मक्कार है, चोर है और झूठा है...वो आंखों से ही धूर्त लगता है लेकिन क्या वो अकेला है जो ऐसा है...ऐसे कितने बाबाओं के खिलाफ आप जैसों की आवाज़ें नहीं उठी तो ये शक करना मेरा धर्म है कि आखिर एक ही शख्स क्यों? मेरी फेसबुक प्रोफाइल उठाकर देख लीजिएगा, खूब मज़ाक उड़ाया है निर-मल बाबा का लेकिन पक्षपात पूर्ण रवैये पर सवाल क्यों नहीं उठना चाहिए?
सोचिए कि क्यों आखिर केवल निर्मल नरूला का विरोध होना चाहिए, बाकियों का नहीं? क्यों नहीं इस तरह के किसी भी गोरखधंधे की खिलाफत हो, क्या ज़रूरत है अखबार और समाचार चैनल में धर्म की? क्यों नहीं इतने साल हम ने इन सब के खिलाफ प्रचार किया...हम क्यों चुप रहे? और अब जगे भी हैं, तो केवल एक के खिलाफ क्या ये ही हमारी चेतना है...मैं निर्मल बाबा के खिलाफ हूं पर आप सब के साथ नहीं...मैं सबसे तटस्थ होकर एक का विरोध नहीं कर सकता, ये सारे ढोंगी समाज के दुश्मन हैं...या तो इन सबका विरोध इसी अंदाज़ में करने का साहस जुटाइए या फिर निर्मल बाबा को भी माफ़ कर दीजिए। कम से कम वो पैसा लीगल तरीके से लूट रहा है, धर्म की अफीम खिलाकर नहीं। क्यों नहीं बाकी के खिलाफ हम खड़े होते, निर्मल जिनमें से एक हो...क्योंकि आज जितना पैसा निर्मल खर्च रहा है, उतना ही कभी और बाबा भी खर्च देते थे।
निर्मल बाबा मैं तुमसे घृणा करता हूं पर आज तुम अकेले निशाने पर हो, ऐसे में मैं बाबाओं में अल्पसंख्यक मान तुम्हारे साथ हूं। निर्मल नरूला तुम ढोंगी हो पर वो ज़्यादा ढोंगी हैं, जो दाती के खिलाफ चुप रहे और तुम्हारे खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं। निर्मल नरूला, तुम समाज के लिए खतरा हो, लेकिन वो दोगले लोग ज़्यादा हैं, जो गुड़ खाते हैं और गुगुले से परहेज करते हैं। निर्मल बाबा उनके दोगलेपन की वजह से मैं तुम्हारे समर्थन में हूं, पर मैं तुम्हारा समर्थक या अनुयायी नहीं हो।
मैं तुम पर विश्वास नहीं करता पर तथाकथित पत्रकारों पर से विश्वास भी उठ ही चुका है। एक और वजह निर्म नरूला, तुमने और तमाम धर्मगुरुओं का धंधा ठप करा दिया, इसके लिए तुमको सलाम। इसीलिए जब तक ये बाकी बाबाओं के खिलाफ भी ऐसा ही अभियान नहीं चलाते, मैं तुम्हारे साथ हूं और जिस दिन ये एकतरफा न होकर पूरी ढोंगी कौम के खिलाफ हो जाएंगे, जिसका तुम भी हिस्सा हो, उसी दिन मैं इनके साथ खड़ा हो जाऊंगा। निर्मल बाबा तुम गलत कर रहे हो, लोगों को बेवकूफ बना रहे हो पर ये तो हज़ारों सालों से धर्मगुरु कर रहे हैं, मुझे तुमसे शिकायत नहीं है, मुझे उनको देख कै आती है, जो जनता और सरोकारों की बात कर के लोगों को धोखा देते हैं और तुम्हारे बजाय मैं उनके खिलाफ लड़ना पसंद करूंगा, मरते दम तक, हर हाल में।
लेखक मयंक सक्सेना टीवी जर्नलिस्ट हैं. कई चैनलों में काम करने के बाद इन दिनों न्यूज24 को सेवाएं दे रहे हैं.
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