TOC NEWS
हर देश में जिस्मफरोशी को लेकर अलग अलग कानून होते हैं। लेकिन दूसरे देशों के मुकाबले भारत में जिस्मफरोशी के धंधे को लेकर ज्यादा सख्ती बर्ती जाती है। सख्त कानून होने के बावजूद भी यहां चोरी छिपे यह धंधा होता रहता है। हमारे देश में एक ऐसी जगह है, जहां मां के बाद बेटी को जिस्मफरोशी का धंधा संभालना पड़ता है।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के 'चतुर्भुज स्थान' नामक जगह पर स्थित वेश्यालय का इतिहास मुगलकालीन है। यह जगह भारत-नेपाल सीमा के करीब है और यहां की आबादी लगभग 10 हजार है। पुराने समय में यहां पर ढोलक, घुंघरुओं और हारमोनियम की आवाज ही पहचान हुआ करती थी। हालांकि पहले यह कला, संगीत और नृत्य का केंद्र हुआ करता था, लेकिन अब यहां जिस्म का बाजार लगता है।
सबसे अलग बात यह है कि वेश्यावृत्ति यहां पर पारिवारिक व पारंपरिक पेशा मानी जाती है। मां के बाद उसकी बेटी को यहां अपने जिस्म का धंधा करना पड़ता है।इतिहास पर नजर डालें तो पन्नाबाई, भ्रमर, गौहरखान और चंदाबाई जैसे नगीने मुजफ्फरपुर के इस बाजार में आकर लोगों को नृत्य दिखाकर मनोरंजन किया करते थे। लेकिन अब यहां मुजरा बीते कल की बात हो गई और नए गानों की धुन पर नाचने वाली वो तवायफ अब प्रॉस्टीट्यूट बन गई।
इसे भी पढियें :- ओवैसी के नेता बोले- कमजोर पड़ गया है आपका धर्म, इसलिए लोगों को हिन्दू बनाने की फ़िक्र
इस आधुनिकता ने जीने और कला-प्रदर्शन के तरीकों को ही बदल दिया। इस बाजार में कला, कला न रह कर एक बाजारू वस्तु बन गई।यह जगह काफी ऐतिहासिक भी है। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की पारो के रूप में सरस्वती से भी यहीं मुलाकात हुई थी। यहां से लौटने के बाद ही उन्होंने 'देवदास' की रचना की थी।
यूं तो चतुर्भुज स्थान का नामकरण चतुर्भुज भगवान के मंदिर के कारण हुआ था, लेकिन लोकमानस में इसकी पहचान वहां की तंग, बंद और बदनाम गलियों के कारण है। जानकारी के मुताबिक बिहार के 38 जिलों में 50 रेड लाइट एरियाज़ हैं, जहां दो लाख से अधिक आबादी बसती है। ऐसे में यहां पर वेश्यावृत्ति का धंधा काफी बड़े पैमाने पर पैर पसारे हुए है।
No comments:
Post a Comment