पी. चिदम्बरम को बदनाम करने का मुआवजा क्या?
अब इस न्यायिक परिदृश्य में सबसे बड़ा और न्यायसंगत सवाल ये है कि पी. चिदम्बरम जो देश के एक सम्मानित मंत्री हैं और देश के वरिष्ठ राजनेता भी हैं, उनके ऊपर लगातार व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले राजनैतिक दलों, व्यक्तियों और संगठनों की ओर से लम्बे समय तक जो सुनियोजित अभियान चलाया गया और उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया, संसद का समय और धन बर्बाद किया गया, उसकी भरपाई किस प्रकार से होगी?
अनेक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार की याचिकाओं को निरस्त करते समय याची पर जुर्माना लगाते रहे हैं। जिसका मकसद निराधार और प्रचार के मकसद से दायर याचिकाओं को हतोत्साहित करना बताया जाता रहा है। इस मामले में स्वामी और एक संगठन की ओर से दायर याचिका को निरस्त करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं के विरद्ध कठोर रुख नहीं अपनाया जाना, फिर से ऐसे ही लोगों को अन्य किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिये उकसाने के समान ही है।
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को कठघरे में खड़ा करने के लिये राजस्थान के सरकार ने एक आयोग का गठन किया गया। जिसका मकसद कथित रूप से पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान किये गये भ्रष्टाचार और घोटालों की जॉंच करना था। आयोग पर जनता का करोड़ों रुपया खर्च किया गया। आयोग द्वारा अनेक विभागों की फाइलों को जब्त किया गया। जिससे आम लोगों को भी भारी परेशानी का समाना करना पड़ा। अन्त में कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को इस प्रकार का आयोग गठित करने का कानूनी अधिकार ही नहीं था और आयोग के गठन को अवैधानिक करार दे दिया गया।
विवादास्पद 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन प्रकरण में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका की जॉंच को लेकर दायर याचिका को यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया कि पी. चिदम्बरम के खिलाफ कोई आपराधिका मामला नहीं बनता है। इसीलिये इस बारे में किसी भी प्रकार की जॉंच की कोई जरूरत नहीं है।
पी. चिदम्बर की वित्तमंत्री की हैसियत से संदिग्ध भूमिका की जॉंच के लिये जनता पार्टी के स्वयंभू अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी और एक गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। यह मामला पूर्व में निचली अदालत द्वारा भी निरस्त किया जा चुका था। जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया था कि चिदम्बरम की भूमिका की निष्पक्ष जॉंच होनी चाहिये। इसके अतिरिक्त संसद में प्रतिपक्ष की ओर से भी इस मामले को लम्बे समय से लगातार उठाया जाता रहा है। चिदम्बरम को फिर से वित्तमंत्री बनाये जाने को भी इसी कारण से सवालों के कटघरे में रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति के एस. राधाद्भष्णन की खंडपीठ ने जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी और गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की याचिकाओं की स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए साफ शब्दों में निर्णीत किया है कि पी. चिदम्बरम की वित्तमंत्री के रूप में भूमिका को लेकर किसी प्रकार की जॉंच की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके ऊपर किसी प्रकार का कोई मामला बन ही नहीं रहा है। इसके विपरीत सुब्रहमण्यम स्वामी ने इस याचिका में पी. चिदम्बरम के मामले में निचली अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी। जिसमें निचली अदालत ने 2जी स्पेक्ट्रम प्रकरण में चिदम्बरम को अभियुक्त बनाने से इंकार करते हुए कहा था कि चिदम्बरम किसी प्रकार की आपराधिक साजिश में शामिल नहीं थे।
अब इस न्यायिक परिदृश्य में सबसे बड़ा और न्यायसंगत सवाल ये है कि पी. चिदम्बरम जो देश के एक सम्मानित मंत्री हैं और देश के वरिष्ठ राजनेता भी हैं, उनके ऊपर लगातार व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले राजनैतिक दलों, व्यक्तियों और संगठनों की ओर से लम्बे समय तक जो सुनियोजित अभियान चलाया गया और उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया, संसद का समय और धन बर्बाद किया गया, उसकी भरपाई किस प्रकार से होगी?
अनेक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार की याचिकाओं को निरस्त करते समय याची पर जुर्माना लगाते रहे हैं। जिसका मकसद निराधार और प्रचार के मकसद से दायर याचिकाओं को हतोत्साहित करना बताया जाता रहा है। इस मामले में स्वामी और एक संगठन की ओर से दायर याचिका को निरस्त करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं के विरद्ध कठोर रुख नहीं अपनाया जाना, फिर से ऐसे ही लोगों को अन्य किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिये उकसाने के समान ही है। किसी भी व्यक्ति को राजनैतिक कारणों से कानून के शिकंजे में फंसाना या उसे बदनाम करने का प्रयास करना, एक प्रकार से न्यायपालिका और कानून का दुरुपयोग ही है, जिसकी सजा होनी ही चाहिये। इसके साथ-साथ आहत व्यक्ति तथा देश के खजाने को हुए नुकसान की भरपायी के लिये इसके बदले में मुआवजा भी दिया जाना निहायत जरूरी है। जो उन लोगों, संगठनों और राजनैतिक दलों से वसूला जाना चाहिये, जिनकी ओर से आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि इस प्रकार के निराधार अभियान सुनियोजित षड़यन्त्र और दुराशय के तहत ही चलाये जाते हैं।
पाठकों को याद होगा कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को कठघरे में खड़ा करने के लिये राजस्थान के सरकार ने एक आयोग का गठन किया गया। जिसका मकसद कथित रूप से पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान किये गये भ्रष्टाचार और घोटालों की जॉंच करना था। आयोग पर जनता का करोड़ों रुपया खर्च किया गया। आयोग द्वारा अनेक विभागों की फाइलों को जब्त किया गया। जिससे आम लोगों को भी भारी परेशानी का समाना करना पड़ा। अन्त में कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को इस प्रकार का आयोग गठित करने का कानूनी अधिकार ही नहीं था और आयोग के गठन को अवैधानिक करार दे दिया गया। इस अवैधानिक आयोग के गैर-कानूनी रूप से अस्तित्व में रहने तक वसुन्धरा राजे और पिछली भाजपा सरकार के ऊपर जमकर कीचड़ उछाला गया और आयोग के समाप्त होने के बाद सारे आरोप और कथित भ्रष्टाचार के आरोप तथा आरोप लगाने वाले आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध गये।
ऐसे मामलों में आहम व्यक्ति तथा देश को मुआवजा नहीं दिये जाने तक इस प्रकार के दुराशयपूर्ण षड़यन्त्र चलते ही रहेंगे। ऐसे मामलों में परम्परागत मीडिया तो बिक जाता है। ऐसे में सोशियल मीडिया को इस प्रकार के मामलों में पुरजोर आवाज उठानी चाहिये। जिससे जतना को मूर्ख बनाने वालों, अपने राजनैतिक लक्ष्यों को हासिल करने वालों और देश के लोगों से एकत्रित राजस्व को नुकसान पहुँचाने वालों को सबक सिखाया जा सके।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
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अब इस न्यायिक परिदृश्य में सबसे बड़ा और न्यायसंगत सवाल ये है कि पी. चिदम्बरम जो देश के एक सम्मानित मंत्री हैं और देश के वरिष्ठ राजनेता भी हैं, उनके ऊपर लगातार व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले राजनैतिक दलों, व्यक्तियों और संगठनों की ओर से लम्बे समय तक जो सुनियोजित अभियान चलाया गया और उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया, संसद का समय और धन बर्बाद किया गया, उसकी भरपाई किस प्रकार से होगी?
अनेक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार की याचिकाओं को निरस्त करते समय याची पर जुर्माना लगाते रहे हैं। जिसका मकसद निराधार और प्रचार के मकसद से दायर याचिकाओं को हतोत्साहित करना बताया जाता रहा है। इस मामले में स्वामी और एक संगठन की ओर से दायर याचिका को निरस्त करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं के विरद्ध कठोर रुख नहीं अपनाया जाना, फिर से ऐसे ही लोगों को अन्य किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिये उकसाने के समान ही है।
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को कठघरे में खड़ा करने के लिये राजस्थान के सरकार ने एक आयोग का गठन किया गया। जिसका मकसद कथित रूप से पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान किये गये भ्रष्टाचार और घोटालों की जॉंच करना था। आयोग पर जनता का करोड़ों रुपया खर्च किया गया। आयोग द्वारा अनेक विभागों की फाइलों को जब्त किया गया। जिससे आम लोगों को भी भारी परेशानी का समाना करना पड़ा। अन्त में कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को इस प्रकार का आयोग गठित करने का कानूनी अधिकार ही नहीं था और आयोग के गठन को अवैधानिक करार दे दिया गया।
विवादास्पद 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन प्रकरण में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका की जॉंच को लेकर दायर याचिका को यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया कि पी. चिदम्बरम के खिलाफ कोई आपराधिका मामला नहीं बनता है। इसीलिये इस बारे में किसी भी प्रकार की जॉंच की कोई जरूरत नहीं है।
पी. चिदम्बर की वित्तमंत्री की हैसियत से संदिग्ध भूमिका की जॉंच के लिये जनता पार्टी के स्वयंभू अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी और एक गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। यह मामला पूर्व में निचली अदालत द्वारा भी निरस्त किया जा चुका था। जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया था कि चिदम्बरम की भूमिका की निष्पक्ष जॉंच होनी चाहिये। इसके अतिरिक्त संसद में प्रतिपक्ष की ओर से भी इस मामले को लम्बे समय से लगातार उठाया जाता रहा है। चिदम्बरम को फिर से वित्तमंत्री बनाये जाने को भी इसी कारण से सवालों के कटघरे में रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति के एस. राधाद्भष्णन की खंडपीठ ने जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी और गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की याचिकाओं की स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए साफ शब्दों में निर्णीत किया है कि पी. चिदम्बरम की वित्तमंत्री के रूप में भूमिका को लेकर किसी प्रकार की जॉंच की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके ऊपर किसी प्रकार का कोई मामला बन ही नहीं रहा है। इसके विपरीत सुब्रहमण्यम स्वामी ने इस याचिका में पी. चिदम्बरम के मामले में निचली अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी। जिसमें निचली अदालत ने 2जी स्पेक्ट्रम प्रकरण में चिदम्बरम को अभियुक्त बनाने से इंकार करते हुए कहा था कि चिदम्बरम किसी प्रकार की आपराधिक साजिश में शामिल नहीं थे।
अब इस न्यायिक परिदृश्य में सबसे बड़ा और न्यायसंगत सवाल ये है कि पी. चिदम्बरम जो देश के एक सम्मानित मंत्री हैं और देश के वरिष्ठ राजनेता भी हैं, उनके ऊपर लगातार व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले राजनैतिक दलों, व्यक्तियों और संगठनों की ओर से लम्बे समय तक जो सुनियोजित अभियान चलाया गया और उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया, संसद का समय और धन बर्बाद किया गया, उसकी भरपाई किस प्रकार से होगी?
अनेक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार की याचिकाओं को निरस्त करते समय याची पर जुर्माना लगाते रहे हैं। जिसका मकसद निराधार और प्रचार के मकसद से दायर याचिकाओं को हतोत्साहित करना बताया जाता रहा है। इस मामले में स्वामी और एक संगठन की ओर से दायर याचिका को निरस्त करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं के विरद्ध कठोर रुख नहीं अपनाया जाना, फिर से ऐसे ही लोगों को अन्य किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिये उकसाने के समान ही है। किसी भी व्यक्ति को राजनैतिक कारणों से कानून के शिकंजे में फंसाना या उसे बदनाम करने का प्रयास करना, एक प्रकार से न्यायपालिका और कानून का दुरुपयोग ही है, जिसकी सजा होनी ही चाहिये। इसके साथ-साथ आहत व्यक्ति तथा देश के खजाने को हुए नुकसान की भरपायी के लिये इसके बदले में मुआवजा भी दिया जाना निहायत जरूरी है। जो उन लोगों, संगठनों और राजनैतिक दलों से वसूला जाना चाहिये, जिनकी ओर से आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि इस प्रकार के निराधार अभियान सुनियोजित षड़यन्त्र और दुराशय के तहत ही चलाये जाते हैं।
पाठकों को याद होगा कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को कठघरे में खड़ा करने के लिये राजस्थान के सरकार ने एक आयोग का गठन किया गया। जिसका मकसद कथित रूप से पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान किये गये भ्रष्टाचार और घोटालों की जॉंच करना था। आयोग पर जनता का करोड़ों रुपया खर्च किया गया। आयोग द्वारा अनेक विभागों की फाइलों को जब्त किया गया। जिससे आम लोगों को भी भारी परेशानी का समाना करना पड़ा। अन्त में कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को इस प्रकार का आयोग गठित करने का कानूनी अधिकार ही नहीं था और आयोग के गठन को अवैधानिक करार दे दिया गया। इस अवैधानिक आयोग के गैर-कानूनी रूप से अस्तित्व में रहने तक वसुन्धरा राजे और पिछली भाजपा सरकार के ऊपर जमकर कीचड़ उछाला गया और आयोग के समाप्त होने के बाद सारे आरोप और कथित भ्रष्टाचार के आरोप तथा आरोप लगाने वाले आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध गये।
ऐसे मामलों में आहम व्यक्ति तथा देश को मुआवजा नहीं दिये जाने तक इस प्रकार के दुराशयपूर्ण षड़यन्त्र चलते ही रहेंगे। ऐसे मामलों में परम्परागत मीडिया तो बिक जाता है। ऐसे में सोशियल मीडिया को इस प्रकार के मामलों में पुरजोर आवाज उठानी चाहिये। जिससे जतना को मूर्ख बनाने वालों, अपने राजनैतिक लक्ष्यों को हासिल करने वालों और देश के लोगों से एकत्रित राजस्व को नुकसान पहुँचाने वालों को सबक सिखाया जा सके।
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