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भोपाल . मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मध्यप्रदेश शासन पर कानून का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लोकायुक्त एवं आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्लू) को सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) से बाहर किए जाने पर उच्च न्यायालय में चुनौती देने वाली एक याचिका में कहा गया है कि इस अधिनियम की धारा 24-4 के प्रावधानों का दुरुपयोग कर राज्य शासन ने उक्त निर्णय लिया है।
याचिका की कल यहां सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एस हरकोली एवं न्यायाधीश आलोक अराधे की युगलपीठ ने राज्य शासन को कल नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।
आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे की तरफ से दायर की गयी इस याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ लोकायुक्त ने डम्पर घोटाले में एफआईआर दर्ज की थी, जिसकी खात्मा रिपोर्ट भी लोकायुक्त ने न्यायालय में प्रस्तुत कर दी है।
सूचना के अधिकार के तहत याचिकाकर्ता ने डम्पर घोटाले से संबंधित दस्तावेज मांगे थे। लोकायुक्त ने दस्तावेज देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि राज्य शासन द्वारा 24 अगस्त को लिए गये निर्णय के अनुसार लोकायुक्त एवं ईओडब्ल्यू आरटीआई अधिनियम से बाहर हैं। राज्य शासन ने आरटीआई की धारा 24-4 में प्राप्त अधिकारों के तहत उक्त निर्णय लिया है, जिसकी अधिसूचना भी
याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी करते हुए अधिवक्ता राजेश चंद्र ने युगलपीठ को बताया कि लोकायुक्त एवं ईओडब्ल्यू भी जांचकर्ता एजेंसियां हैं। दोनों का संबंध खुफिया तंत्र एवं देश की सुरक्षा से नहीं है। इसके अलावा आरटीआई की धारा 24-5 में स्पष्ट प्रावधान है कि भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों की जानकारी देने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
आरटीआई अधिनियम की धारा 8-एच के तहत विवेचना एवं जांच के दौरान जानकारी नहीं दिए जाने का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने जिस मामले के दस्तावेज आरटीआई के तहत मांगे थे उसकी विवेचना पूरी हो चुकी है तथा लोकायुक्त ने खात्मा रिपोर्ट भी न्यायालय में पेश कर दी है।
राजेश चंद्र ने अपनी दलील में कहा कि डम्पर घोटाले के दस्तावेज आम व्यक्ति के हाथों तक नहीं पहुंचे, इसलिए राज्य सरकार ने धारा 24-4 के तहत प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग कर उक्त निर्णय लिया है।
याचिका की सुनवाई के बाद युगलपीठ ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।
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