दिल का दर्द-
भारत देश में अनेक जाति व धर्म सम्प्रदाय के लोग है , सभी जाति व धर्म को भारतीय संबिधान में समानता का अधिकार प्रदान किया गया है । भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति कब हुई, क्यौ हुई , कैसे हुई कहॉ से हुई इस संस्कृति के रचियता कौन है ? अपने अपने मत व अपने अपने तर्क है, इतिहासकार मानव सभ्यता का अपने तरह से विवरण प्रस्तुत करते है । बेद पुराण, शास्त्र, कुरान, बाईबिल, सिख ग्रन्थ, काब्व्य सहित्य ,भक्तिमार्ग पुस्तको का अपने अपने पंथ का अपना इतिहास है । सभी जाति - धर्म के संस्थापक या रचियताओं के पीछे कोई न कोई प्रकृति की ऐसी शक्ति रही है , जो लाखों जीव व जन्तुओं में मानव काया के महत्व को समझ, इस मानव काया को ही संसार के संचालन का दायित्व सौपा गया है । संसार के सभी धर्म, मानव जींव पर अंकुश लगाने केलिए बनाये गये है । जो भी धर्म के मौखिख या लिखित शव्द हैं सभी ने अपने अपने तरह से व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाने का प्रयास किया गया है । मानव सभ्यता के बाद से परिवार, संस्कार, समाज, सभ्यता ,शासन, प्रशासन, परम्परायें, रूढ़ियॉ, रीतियॉ-नीतियॉ बड़े ही सोच समझ कर स्थापित किये गये होगें । करोड़ो बर्षो की चली आ रही परम्पराओं के बाद भी सत्य व असत्य को आज तक कोई समाप्त नही कर सका । जब तक सृष्टि रहेगी , सत्य की बिजइ होती ही रहेगी । अहिंसा का मार्ग लगभग सभी धर्मो ने अपनाया है ।
भारतीय संस्कृति में असत्य पर सत्य की बिजयी केलिए सतयुग में भगवान श्री विष्णू ने राजा हरिश्चन्द्र की सत्य की परीक्षा ली , इस परीक्षा में सत्य की बिजई हुई , त्रेता युग में अन्याय व अत्याचार को समाप्त करने केलिए भगवान ने दशरथ नंदन के रूप में श्री राम ने अवतार लेकर समाज विरोधी राजा के एकतंत्र सत्ता, अन्याय अत्याचार को समाप्त करने केलिए स्व्यं 14 बर्षो तक कष्ट उठाते हुये असत्य पर सत्य की बिजय प्राप्त की । इसी प्रकार व्दापर में जब पुनः अत्याचार, अन्याय बढ़ा तो पुनः प्रभु को भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतरित होकर पुनः असत्य पर सत्य की बिजई दिलाई । ं महाराज पारीक्षत के सोने मुकुट से कलयुग का प्रवेश बताया जाता है । कलयुग के प्रवेश के बाद भारतीय संस्कृति में राजा -महाराजाओं की नीतिओं में परिवर्तन हुआ, शासन प्रशासन में छल, बदले की भावना एवं शोषण की नीति का उदय हुआ । कलयुग के प्रवेश के समय सैकड़ों ऐसे महापुरूष हुये । संसार ं के इतिहास में अनेक जाति धर्म की स्थापना करने बाले वह कौन थें ? जिन्होने हिन्दू , मुस्लिम, सिख , ईसाई आदि आदि जातियों की स्थापना करना पड़ी । उन महापुरूषों की क्या मंशा रही यह तो प्रकृति ही समझ सकती है । लेकिन जैसे जैसे संसार में विकाश हुआ , प्रगति हुई , अनेक खोज हुई , उनका परिणाम मानव समाज केलिए अति आवश्यक है । मानव की खोज के कारण ही संसार को समझने का अवसर मिला है । लेकिन जब हम सभी एक परमपिता की संतान है , हम सभी के जाति व धर्म मानव सेवा की प्रेरणा देते है , दुःखी, पीड़ित, असहायों की मदद करने का मार्ग प्रदर्शित करते है । आज विश्व में जितना विकाश हुुआ, वैज्ञानिक खोज हो चुकी है । इन खोजों से यह साबित हो चुका है कि चौरासी लाख यौनियों में मानव यौनी सर्वोपरि है । फिर मानव मानव का क्यो दुश्मन हो गया है । आज विश्व पटल पर क्षण-क्षण बदलने बाली राजनीति हमें क्या प्रेरणा देती है , हम अपिने सत्य पर कहॉ तक रह सकते है ? आज जाति -धर्म, मजहव के नाम समूचे विश्व में एक क्रॉति आ चुकी है । भारत में ही हजारों जातियों का उदय हो चुका है भारतीय संस्कृति का हास्य हो रहा है ।
तीन दशक से राजनीति में धर्म के प्रवेश को लेकर एक मॉ के लालड़े भाई -भाई आपस में दुश्मनी कर बैठै परिवार विखर रहे है । सत्ता पर किसी एक राजनैतिकदल की सरकार नही बन सकती है । सरकार बचाने केलिए प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रीओं को अनेतिक समझौता भी करना जनता के मौलिक अधिकारों से साथ खिलवाड़ है । आज जनता को न्याय प्रदान करना उसकी सुरक्षा की जुम्मेदारी तथ भरण पोषण, उपचार , निवास, शिक्षा का दायित्व सरकारों का है । लेकिन जो सरकारे बनाने के बाद वह अपने निजी स्वार्थ के पीछे आम जनता के साथ छलावा करती है वह बिफल हो जाती है । जहांा राजनीति में जाति व धर्म जुड़ जाता है वहां अलगावाद पनप उठता है ।
हमारे महापुरूषों की धरोधर उनके बताये मार्ग से हम बिचलित हो रहे हैं । यदि हम अपने महापुरूषों के बताये मार्ग से विचलित हो रहे है तो हमें उनकी जयन्ती, उनके बलिदान दिवस मनाने का कोई हक नही रह जाता है ? हम चाहे हिन्दू हो मुसलमान हो, सिख ईसाई या अन्य कोई भी जााित व धर्म के हो किसी भी पंथ को मानने बालें है । यदि हमारे अंदर छल, कपट, धोका, बदनियति, दंभ, विश्वासघात पनप रहा है तो मानवता की श्रेणी में नही गिने जा सकते हैं । इससे अच्छे तो वह प्शु -पक्षी जींव- जन्तु है जो सुबह से शॉय काल तक कहीं रहे लेकिन रात्रि के समय संयुक्त रूप से बसेरा साथ-साथ करते है । वह भी भोजन के समय क्रोध से ग्रसित क्षणित होते है लेकिन मिल बॉट कर खाते है उनमें एकता संगठन समन्वय समाज है । मानव कितना बिचलित हो रहा है । जिसकी कल्पना कभी भी किसी महापुरूष नही की होगी । आज देश के अन्दर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों, गुरूव्दारों को लेकर जगह जगह दंगा हो रहे है । जाति व धर्म के नाम पर युवाओं को आंतकवादी , आत्मघाती बनाया जा रहा है । जो भी त्यौहार मनाये जाते है उन सभी त्यौहारों में भय व आंतक छुपा है । मानवीयता समाप्त हो चुकी है । मानवता नही है । चाहे महाबीर जयन्ती हो, नव दुर्गा उत्सव, ईद, दशहरा, दीवाली, गुडफ्राईडे, होली आदि त्यौहार अपने तक सीमित हो चुके है । राजनीति के लेकर राजनेताओं व्दारा रमजान के महिना में मुसलमानों को रोजाफ्तार कराना, मस्जिद पर जाकर ईद मिलना, रामलीला, धार्मिक यज्ञ, मंचों दशहरा मैदान में नेताओं का जमघट, गुरूव्दारों में मत्था टैंकना नेताओं का उसी तरह है जिस तरह हाथी के दॉत खाने के और व दिखने बाले और । हम साल भर तरह तरह की शपथ लेते है लेकिन अपने मन के राक्षस - पाप को त्यागने का संकल्प नही ले पा रहे है ं । जिस समय आम व्यक्ति मानव में मानवता आ जावेगी, उसी दिन हिन्दूओं के घर ईद के दिन मीठी सिमईयॉ बनने लगेगी , मुसलमान के घर दीवाली का प्रकाश हो जावेगा । आज हमारा जो भी राम -रहीम हो रही है वह मात्र अन्तर आत्मा से नही है वह दिखावटी व मुॅह देंखी पंचायत हो रही है । पीठ फैरते ही गले मिलने बाली की बुराई करना आम - साधारण बात हो रही है । यह भारत के लिए नही बल्कि संसार केलिए अच्छे संकेत नही है । आने बाला समय प्रत्येक नागरिक केलिए संकट व कष्ट मय रहेगा ।
सरकार की नीति व नियम समाज सुधारने केलिए बनाये जाते लेकिन पालने कराने बालों के मन में इन आदेशों के प्रति बिल्कुल आस्था नही रहती है यदि आस्था रहे तो काूनन के दायरे में एक असहाय मजदूर से लेकर कानून तोड़ने बाले को भारतीय संबिधान को बनाने बालों को समान दंड की व्यवस्था की गई है । आज समाज विखर रहे हैं , परिवारों में कलह , मान मर्यादाओं एवं प्रतिष्ठा समाप्त हो रही है इसकेलिए एक ही सम्पूर्ण जाति व धर्म के संचालन करने एवं कराने बाले जुम्मेदार है । हमें चाहये कि जब मुसलमान भाई के घर ईद हो तो सभी जाति के धर्म के लोग रमजान के महिना मे कम से कम एक दो रोजे (उपवास) रखें , ईद केदिन अन्य धर्म के पुरूष-महिलायें त्यौहारों में शरीक हो , नव दुर्गा उत्सव में हिन्दू के अलावा अन्य धर्म के लोग दुर्गा पूजा में सहभागीदारी निर्वाहन करें , महावीर जयन्ती पर जैन धर्म के साथ, प्रभु ईशा मसीह के जन्मोतव का सभी मिलकर 25 दिसम्बर को मनाये । एक दूसरे को अपने अपने धर्म की आस्था व नियमों से अवगत कराकर मानवता की अलख जगाने से ही इस भारतीय संस्कृति को पतन से रोका जा सकता है ,अन्यथा भारतीय इतिहास को पलने केलिए बिदेश शक्तियों ने अपने जाल में जकड़ लिया है , एक दिन भारतीय संस्कृति किसी कहावत का हिस्सा बन कर रहे जायेगी ।
लंेखक - संतोष कुमार गंगेले (पत्रकार)
सुमित्रा-निवास हरिहर भवन नौगॉव म0प्र0
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