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• श्वेत रंग प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में लिया गया।
• हरा रंग प्रकृति से संबंध और संपन्नता दर्शाता है
• केंद्र में स्थित अशोक चक्र धर्म के 24 नियमों की याद दिलाता है।
प्रथम ध्वज 1906 में भारतीय ध्वज : 1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्वज फ़हराया गया था। 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त, 1906 को बंगाल के विभाजन के विरोध में पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में इसे कांग्रेस के अधिवेशन ने फहराया था। प्रथम ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में 8 आधे खिले हुए कमल के फूल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे व बीच की पीली पट्टी पर वन्दे मातरम् लिखा गया था।वह तिरंगा झंडा, जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आज से 60 साल पहले संसद के केंद्रीय कक्ष में फहराया था, गायब बताया जा रहा है।
हमारा राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से बना है इसलिए हम इसे तिरंगा भी कहते हैं। तिरंगे में सबसे ऊपर गहरा केसरिया, बीच में सफ़ेद और सबसे नीचे गहरा हरा रंग बराबर अनुपात में है। ध्वज को साधारण भाषा में झंडा भी कहा जाता है।
झंडे की चौड़ाई और लम्बाई का
अनुपात 2:3 है। सफ़ेद पट्टी के केंद्र में गहरा नीले रंग का चक्र है, जिसका
प्रारूप अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थापित सिंह के शीर्षफलक के चक्र में
दिखने वाले चक्र की भांति है। चक्र की परिधि
लगभग सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है। चक्र में 24 तीलियाँ हैं।
राष्ट्रीय ध्वज की रचना 22 जुलाई, 1947 को भारत के संविधान द्वारा अपनाया
गया था।
रंगों का महत्त्व : तिरंगे में इन रंगो की क्या महत्त्व है यह जानना बहुत ज़रूरी है ।
• केसरिया यानी भगवा रंग वैराग्य का रंग है। हमारे आज़ादी के दीवानों ने इस रंग को सबसे पहले अपने ध्वज में
इसलिए सम्मिलित किया जिससे आने वाले दिनों में देश के नेता अपना लाभ छोड़
कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें। जैसे भक्ति में साधु वैराग ले
मोह माया से हट भक्ति का मार्ग अपनाते हैं।• श्वेत रंग प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में लिया गया।
• हरा रंग प्रकृति से संबंध और संपन्नता दर्शाता है
• केंद्र में स्थित अशोक चक्र धर्म के 24 नियमों की याद दिलाता है।
प्रथम ध्वज 1906 में भारतीय ध्वज : 1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्वज फ़हराया गया था। 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त, 1906 को बंगाल के विभाजन के विरोध में पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में इसे कांग्रेस के अधिवेशन ने फहराया था। प्रथम ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में 8 आधे खिले हुए कमल के फूल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे व बीच की पीली पट्टी पर वन्दे मातरम् लिखा गया था।वह तिरंगा झंडा, जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आज से 60 साल पहले संसद के केंद्रीय कक्ष में फहराया था, गायब बताया जा रहा है।
द्वितीय ध्वज 1907 में भारतीय ध्वज : द्वितीय ध्वज को
पेरिस में भीकाजी कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ
क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह
1905 में हुआ था। ध्वजारोहण के बाद सुबह साढ़े आठ बजे इंडिया गेट पर लोगों
के हुजूम की करतल ध्वनि के बीच यूनियन जैक को उतारकर भारतीय राष्ट्रीय
झंडे को फहराया गया था। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें
सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तृतीय ध्वज 1917 में भारतीय ध्वज : 1917 में भारतीय राजनीतिक
संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने
घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी
क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफ़ेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
तिरंगे का विकास : सन 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की
कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बाँध दे। उनकी इस पहल को
एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल
फ़्लैग मिशन का गठन किया। वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के
बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में
बाँधने का संकेत बने। पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन 1924 में ध्वज में
केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह
हिंदुओं का प्रतीक है। फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार
इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दू, मुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त
करता है। काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को
क्या रूप दिया जाए इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक
कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय
कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की। 15 अगस्त 1947 को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।
आज़ादी की 60वीं सालगिरह और 1857 के विद्रोह के 150 साल के अवसर पर समारोहों
का समन्वय कर रहे संस्कृति मंत्रालय को भी आज़ाद भारत में फहराए गए पहले
झंडों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। केन्द्रीय संस्कृति मंत्री अंबिका
सोनी ने कहा, स्वतंत्रता दिवस समारोह रक्षा मंत्रालय आयोजित करता है। उसे
इसका पता लगाना चाहिए। अगर पता लग जाए तो उन्हें हमारे संग्रहालय में रखा जा सकता है।
संस्कृति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 1997 में आज़ादी की 50वीं सालगिरह के अवसर पर इन झंडों का पता लगाने की कोशिश हुई थी। मंत्रालय ने झंडों का पता लगाने के लिए रक्षा मंत्रालय को लिखा था। लेकिन कोई रेकॉर्ड नहीं होने से उनके बारे में कुछ पता नहीं लगा।
संसद अभिलेखागार के निदेशक फ्रैंक क्रिस्टोफर ने बताया, हमारे पास संसद से जुड़े कई स्मृतिचिह्न हैं, लेकिन 14 अगस्त की रात को फहराया गया झंडा नहीं है। अगर उसका पता लग जाए तो हम उसे अपने अभिलेखागार में रखना चाहेंगे। लोकसभा के महासचिव पी. डी. टी. आचार्य का कहना है, कोई नहीं जानता कि सेंट्रल हॉल में पंडित नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा कहाँ है, क्योंकि उसका कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
संस्कृति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 1997 में आज़ादी की 50वीं सालगिरह के अवसर पर इन झंडों का पता लगाने की कोशिश हुई थी। मंत्रालय ने झंडों का पता लगाने के लिए रक्षा मंत्रालय को लिखा था। लेकिन कोई रेकॉर्ड नहीं होने से उनके बारे में कुछ पता नहीं लगा।
संसद अभिलेखागार के निदेशक फ्रैंक क्रिस्टोफर ने बताया, हमारे पास संसद से जुड़े कई स्मृतिचिह्न हैं, लेकिन 14 अगस्त की रात को फहराया गया झंडा नहीं है। अगर उसका पता लग जाए तो हम उसे अपने अभिलेखागार में रखना चाहेंगे। लोकसभा के महासचिव पी. डी. टी. आचार्य का कहना है, कोई नहीं जानता कि सेंट्रल हॉल में पंडित नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा कहाँ है, क्योंकि उसका कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
तिरंगे का उचित प्रयोग : राष्ट्रीय ध्वज हमारे
देश की पहचान है। इसलिए हर भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह भारतीय तिरंगे
को पूरा सम्मान दे। कोई भी व्यक्ति तिरंगे की गरिमा को धूमिल ना करे, इसके
लिए भारतीय क़ानून में कुछ धाराएँ बनाई गई है। फ्लैग कोड इंडिया- 2002 में
राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी कुछ ख़ास बातों का ज़िक्र किया गया है जिसे हम भारतीयों को जानना ज़रूरी है। सन 2002 के पहले आम जनता राष्ट्रीय दिवस को छोड़ किसी और दिन इसे किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं
लगा सकती थी। सिर्फ़ सरकारी कार्यालयों में ही इसे लगाया जा सकता था। सन
2002 में भारत के जाने माने उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज लगाया था जिसके लिए उन्हें सूचित किया गया कि उन्हें ऐसा करने पर क़ानूनी कार्रवाई से गुज़राना होगा। इसके विरोध में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका इस बाबत दायर की कि भारत की आम जनता को सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज लहराने
और उसे प्यार देने का नागरिक अधिकार है। यह मामला उच्च न्यायालय से उच्चतम
न्यायालय में गया और न्यायालय ने भारत सरकार को इस मामले पर विचार
करने के लिए एक कमेटी बिठाने की सलाह दी। अंत में भारतीय मंत्रालय ने एक
संवैधानिक संशोधन कर सभी भारतवासियों को साल के 365 दिन राष्ट्रध्वज सम्मान के साथ लगाने का अधिकार दिया।
तिरंगे का सम्मान : ध्वज के सम्मान की बात भी स्पष्ट कर दी गई कि ध्वज फहराने के समय किस आचरण संहिता का ध्यान रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी भूमि पर नहीं गिरना चाहिए और ना ही धरातल के संपर्क में आना चाहिए। सन 2005 के पहले तक इसे वर्दियों और परिधानों
में उपयोग में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन सन 2005 में फिर एक संशोधन के
साथ भारतीय नागरिकों को इसका अधिकार दिया गया लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली
बात ये है ये किसी भी वस्त्र पर कमर के नीचे नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी अधोवस्त्र के रूप में नहीं पहना जा सकता है।
ध्वज अनिवार्य : सभी राष्ट्रों के लिए एक ध्वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी
जान न्यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्ट करना पाप होगा।
ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यूनियन जैक अंग्रेज़ों के मन
में भावनाएँ जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के
लिए ध्वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है।
“हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय
मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक
ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें” – महात्मा गाँधी
(साभार – भारत कोष )
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