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वसुंधरा सरकार की ईमानदारी ध्वस्त।
राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने गत विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान बार-बार दावा किया कि राजस्थान को कांग्रेस और भ्रष्टाचार से मुक्त बनाएंगे। 200 में से 163 सीटे जीत कर प्रदेश को कांग्रेस मुक्त तो बना दिया, लेकिन शायद भ्रष्टाचार पहले से भी ज्यादा हो गया। इसका ताजा उदाहरण 16 सितम्बर को उदयपुर स्थित खान निदेशालय के अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत को तीन करोड़ रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया है। यानि कांग्रेस के शासन में जहां दस-बीस लाख की रिश्वत के मामले होते थे, वहीं वसुंधरा के राज में 20-20 करोड़ रुपए तक हो गए। प्राथमिक पड़ताल में पता चला कि पूरा घोटाला 200 करोड़ का है। चूंकि दस प्रतिशत की राशि रिश्वत के बतौर तय हुई, इसलिए 20 करोड़ रुपए संत्री से लेकर मंत्री तक बंटने थे। तीन करोड़ की तो एक किश्त है। एसीबी ने रंगे हाथों पकड़ा, इसके लिए बधाई।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत की औकात 20 करोड़ रुपए की रिश्वत खाने की है? क्या वसुंधरा के राज में एक अफसर इतनी बड़ी रिश्वत अकेले हजम कर सकता है? जवाब नहीं में आएगा। गहलोत के साथ संजय सेठी नाम के एक दलाल को भी गिरफ्तार किया गया है। संजय सेठी ही खान विभाग के उदयपुर स्थित निदेशालय से लेकर जयपुर के सचिवालय में बैठ कर काम करता था। चाहे अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत हों या सचिवालय में बैठा मंत्री। फाइल पर वो ही होता था जो संजय सेठी कहता था।
यदि संजय सेठी के मोबाइल की कॉल डिटेल की ईमानदारी से जांच होगी तो पता चल जाएगा कि 200 करोड़ के इस घोटाले में वसुंधरा सरकार के कौन-कौन से मंत्री, आईएएस, आईपीएस, सांसद, विधायक आदि शामिल हैं। एसीबी की जांच में यह सामने आया है कि 20 करोड़ रुपए की रिश्वत लेकर सरकार को 200 करोड़ का नुकसान पहुंचाया जा रहा था। सवाल उठता है कि प्रदेश की सम्पदा क्या किसी सरकार, मंत्री, अफसर के बाप की है, जो भ्रष्ट लोग लूट रहे हैं। इस सम्पदा पर प्रदेश की जनता का हक है। खान विभाग में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो पूर्व में निरस्त हुई खानों का पुन: आवंटन करवाता है। कायदे से तो ऐसी खानों की नीलामी होनी चाहिए, लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से पुन: आवंटन का रास्ता निकाल रखा है।
सरकारी प्रक्रिया के मुताबिक निरस्तीकरण और पुन: आवंटन की फाइल संबंधित क्षेत्र के इंजीनियर से लेकर सरकार के मंत्री और जरुरत होने पर मुख्यमंत्री तक जाती है। फाइल पर सभी संबंधितों के हस्ताक्षर होते हैं। संजय सेठी जैसे दलाल अपनी भूमिका से फाइल पर सभी के हस्ताक्षर करवा लेते हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार संजय सेठी की ऑडी ऑर मर्सीडीज जैसी महंगी कारें उदयपुर के निदेशालय से लेकर जयपुर के सचिवालय तक में देखी गई हंै। कांग्रेस के जमाने में ऐसे सत्ता के दलालों को भाजपा के नेता कोसते रहे, लेकिन अब देखना भाजपा के ही नेता किस बेशर्मी से ऐसे दलालों को बचाएंगे। बचाने की मजबूरी इसलिए भी है कि संजय सेठी जैसे दलाल मंत्री से लेकर विधायक तक के नाम ले सकते हैं।
कुछ लोग कह सकते हैं कि वसुंधरा के शासन में ही तीन करोड़ की रिश्वतखौरी का मामला उजागर हुआ है, लेकिन ऐसे लोगों को इसका भी जवाब देना चाहिए कि पकडऩे में पौने दो वर्ष क्यों लगे? यदि वसुंधरा सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त होती तो क्या 20 करोड़ रुपए की रिश्वत खाने की हिम्मत होती? जिन लोगों का सरकारी दफ्तरों में काम पड़ता है, उन्हें पता है कि फाइल को एक कक्ष से दूसरे कक्ष में पहुंचाने के लिए भी चपरासी को चाय-पानी के पैसे देने होते हैं। बेशर्मी का आलम यह है कि संबंधित बाबू और अफसर अपने-अपने पैसे लेकर मुक्त हो जाता है। यदि किसी फाइल पर दूसरे अफसर के हस्ताक्षर होने होते हैं तो पीडि़त व्यक्ति को फिर से रिश्वत देनी होती है या फिर संजय सेठी जैसे दलालों की सेवाएं ली जाएं तो चपरासी-बाबू से लेकर मंत्री और सीएम सचिवालय तक के हस्ताक्षर की गारंटी लेते हैं।
सीएम वसुंधरा राजे राजस्थान में विदेशी निवेश के लिए बहुत प्रचार प्रसार कर रही हैं। जबकि वहीं प्रदेश के खान विभाग का असली चेहरा सामने आ गया। ऐसे में कौन उद्यमी खास कर विदेशी उद्यमी राजस्थान आना चाहेगा। अच्छा हो कि वसुंधरा राजे अपना राज शाही रवैया छोड़कर सरकारी मशीनरी सुधारने का कार्य युद्ध स्तर पर करे। देखें तो सही प्रदेश की जनता कितनी परेशान है।
(एस.पी. मित्तल)
वसुंधरा सरकार की ईमानदारी ध्वस्त।
राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने गत विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान बार-बार दावा किया कि राजस्थान को कांग्रेस और भ्रष्टाचार से मुक्त बनाएंगे। 200 में से 163 सीटे जीत कर प्रदेश को कांग्रेस मुक्त तो बना दिया, लेकिन शायद भ्रष्टाचार पहले से भी ज्यादा हो गया। इसका ताजा उदाहरण 16 सितम्बर को उदयपुर स्थित खान निदेशालय के अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत को तीन करोड़ रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया है। यानि कांग्रेस के शासन में जहां दस-बीस लाख की रिश्वत के मामले होते थे, वहीं वसुंधरा के राज में 20-20 करोड़ रुपए तक हो गए। प्राथमिक पड़ताल में पता चला कि पूरा घोटाला 200 करोड़ का है। चूंकि दस प्रतिशत की राशि रिश्वत के बतौर तय हुई, इसलिए 20 करोड़ रुपए संत्री से लेकर मंत्री तक बंटने थे। तीन करोड़ की तो एक किश्त है। एसीबी ने रंगे हाथों पकड़ा, इसके लिए बधाई।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत की औकात 20 करोड़ रुपए की रिश्वत खाने की है? क्या वसुंधरा के राज में एक अफसर इतनी बड़ी रिश्वत अकेले हजम कर सकता है? जवाब नहीं में आएगा। गहलोत के साथ संजय सेठी नाम के एक दलाल को भी गिरफ्तार किया गया है। संजय सेठी ही खान विभाग के उदयपुर स्थित निदेशालय से लेकर जयपुर के सचिवालय में बैठ कर काम करता था। चाहे अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत हों या सचिवालय में बैठा मंत्री। फाइल पर वो ही होता था जो संजय सेठी कहता था।
यदि संजय सेठी के मोबाइल की कॉल डिटेल की ईमानदारी से जांच होगी तो पता चल जाएगा कि 200 करोड़ के इस घोटाले में वसुंधरा सरकार के कौन-कौन से मंत्री, आईएएस, आईपीएस, सांसद, विधायक आदि शामिल हैं। एसीबी की जांच में यह सामने आया है कि 20 करोड़ रुपए की रिश्वत लेकर सरकार को 200 करोड़ का नुकसान पहुंचाया जा रहा था। सवाल उठता है कि प्रदेश की सम्पदा क्या किसी सरकार, मंत्री, अफसर के बाप की है, जो भ्रष्ट लोग लूट रहे हैं। इस सम्पदा पर प्रदेश की जनता का हक है। खान विभाग में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो पूर्व में निरस्त हुई खानों का पुन: आवंटन करवाता है। कायदे से तो ऐसी खानों की नीलामी होनी चाहिए, लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से पुन: आवंटन का रास्ता निकाल रखा है।
सरकारी प्रक्रिया के मुताबिक निरस्तीकरण और पुन: आवंटन की फाइल संबंधित क्षेत्र के इंजीनियर से लेकर सरकार के मंत्री और जरुरत होने पर मुख्यमंत्री तक जाती है। फाइल पर सभी संबंधितों के हस्ताक्षर होते हैं। संजय सेठी जैसे दलाल अपनी भूमिका से फाइल पर सभी के हस्ताक्षर करवा लेते हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार संजय सेठी की ऑडी ऑर मर्सीडीज जैसी महंगी कारें उदयपुर के निदेशालय से लेकर जयपुर के सचिवालय तक में देखी गई हंै। कांग्रेस के जमाने में ऐसे सत्ता के दलालों को भाजपा के नेता कोसते रहे, लेकिन अब देखना भाजपा के ही नेता किस बेशर्मी से ऐसे दलालों को बचाएंगे। बचाने की मजबूरी इसलिए भी है कि संजय सेठी जैसे दलाल मंत्री से लेकर विधायक तक के नाम ले सकते हैं।
कुछ लोग कह सकते हैं कि वसुंधरा के शासन में ही तीन करोड़ की रिश्वतखौरी का मामला उजागर हुआ है, लेकिन ऐसे लोगों को इसका भी जवाब देना चाहिए कि पकडऩे में पौने दो वर्ष क्यों लगे? यदि वसुंधरा सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त होती तो क्या 20 करोड़ रुपए की रिश्वत खाने की हिम्मत होती? जिन लोगों का सरकारी दफ्तरों में काम पड़ता है, उन्हें पता है कि फाइल को एक कक्ष से दूसरे कक्ष में पहुंचाने के लिए भी चपरासी को चाय-पानी के पैसे देने होते हैं। बेशर्मी का आलम यह है कि संबंधित बाबू और अफसर अपने-अपने पैसे लेकर मुक्त हो जाता है। यदि किसी फाइल पर दूसरे अफसर के हस्ताक्षर होने होते हैं तो पीडि़त व्यक्ति को फिर से रिश्वत देनी होती है या फिर संजय सेठी जैसे दलालों की सेवाएं ली जाएं तो चपरासी-बाबू से लेकर मंत्री और सीएम सचिवालय तक के हस्ताक्षर की गारंटी लेते हैं।
सीएम वसुंधरा राजे राजस्थान में विदेशी निवेश के लिए बहुत प्रचार प्रसार कर रही हैं। जबकि वहीं प्रदेश के खान विभाग का असली चेहरा सामने आ गया। ऐसे में कौन उद्यमी खास कर विदेशी उद्यमी राजस्थान आना चाहेगा। अच्छा हो कि वसुंधरा राजे अपना राज शाही रवैया छोड़कर सरकारी मशीनरी सुधारने का कार्य युद्ध स्तर पर करे। देखें तो सही प्रदेश की जनता कितनी परेशान है।
(एस.पी. मित्तल)
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