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तकनीकी संस्थाओं व इंजिनियरिंग कालेजों में छात्रवृत्ति का मामला
भोपाल प्रदेश के इंजीनियरिंग व तकनीकी शिक्षा संस्थाओं में छात्रवृत्ति के नाम पर हुए 5 सौ करोड़ के घोटाले की आंच तत्कालीन आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह तक पहुंच सकती है। इस मामले की जांच फिलहाल ईओडब्ल्यू द्वारा की जा रही है। दरआसल प्रदेश में बीते नौ सालों के दौरान हुए इस घोटाले की राशि एक हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है। इसमें सर्वाधिक घोटाला वर्ष 2012-13 में हुआ है उस समय श्री शाह विभागीय मंत्री थे। इन मामलों मे ईओडब्ल्यू द्वारा अब तक तीन एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, जबकि 25 मामलों में जांच की जा रही है। माना जा रहा है कि मामले की जांच या तो सीबीआई को सौंपी जाएगी या फिर हाइकोर्ट की निगरानी में इसकी जांच हो सकती है। सीबीआई जांच में अमले की कमी आड़े आ रही है।
ऐसे हुआ घोटाला
प्रदेश में इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी कालेजों में अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के छात्रों को पढ़ाई के लिए राज्य सरकार द्वारा छात्रवृत्ति दी जाती है। छात्रवृत्ति सीधे कालेजों में जाती थी। शासन के नियम का कालेज संचालकों ने जमकर फायदा उठाया। एक छात्र के नाम तीन से चार कालेजों से छात्रवृति निकाली गई। यह सब आदिमजाति व अनुसूचित व अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से होता रहा। मामला सामने आने पर अधिकारियों ने चुप्पी साध ली। कालेज संचालकों ने खुद को बचने और सरकारी राशि का गोल माल करने के लिए आला अधिकारियों के परिजनों को अपने कालेजों में नौकरी में रख लिया। आला अधिकारियों के परिजनों को बिना काम के चालीस से पचास हजार रुपए वेतन दिया जाता था। इसी कारण जिला प्रशासन और आदिमजाति कल्याण विभाग के अधिकारी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं करते थे।
जनहित याचिका पर हुई जांच
हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। जनहित याचिका दायर होने के बाद ईओडब्ल्यू ने जांच तेज कर दी, लेकिन विभागीय अधिकारियों द्वारा सहयोग न दिए जाने के कारण जांच गति नहीं पकड़ पा रही है। हाईकोर्ट के सत रुख के बाद विभागों ने अपने स्तर पर जांच का कार्रवाई शुरू कर दी है। कई जिलों के आदिमजाति कल्याण विभाग के अधिकारियों ने खुद जांच कर रिपोर्ट ईओडब्ल्यू को भेजी है। कागज मिलते ही ईओडब्ल्यू ने कार्रवाई तेज कर दी है
तकनीकी संस्थाओं व इंजिनियरिंग कालेजों में छात्रवृत्ति का मामला
भोपाल प्रदेश के इंजीनियरिंग व तकनीकी शिक्षा संस्थाओं में छात्रवृत्ति के नाम पर हुए 5 सौ करोड़ के घोटाले की आंच तत्कालीन आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह तक पहुंच सकती है। इस मामले की जांच फिलहाल ईओडब्ल्यू द्वारा की जा रही है। दरआसल प्रदेश में बीते नौ सालों के दौरान हुए इस घोटाले की राशि एक हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है। इसमें सर्वाधिक घोटाला वर्ष 2012-13 में हुआ है उस समय श्री शाह विभागीय मंत्री थे। इन मामलों मे ईओडब्ल्यू द्वारा अब तक तीन एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, जबकि 25 मामलों में जांच की जा रही है। माना जा रहा है कि मामले की जांच या तो सीबीआई को सौंपी जाएगी या फिर हाइकोर्ट की निगरानी में इसकी जांच हो सकती है। सीबीआई जांच में अमले की कमी आड़े आ रही है।
ऐसे हुआ घोटाला
प्रदेश में इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी कालेजों में अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के छात्रों को पढ़ाई के लिए राज्य सरकार द्वारा छात्रवृत्ति दी जाती है। छात्रवृत्ति सीधे कालेजों में जाती थी। शासन के नियम का कालेज संचालकों ने जमकर फायदा उठाया। एक छात्र के नाम तीन से चार कालेजों से छात्रवृति निकाली गई। यह सब आदिमजाति व अनुसूचित व अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से होता रहा। मामला सामने आने पर अधिकारियों ने चुप्पी साध ली। कालेज संचालकों ने खुद को बचने और सरकारी राशि का गोल माल करने के लिए आला अधिकारियों के परिजनों को अपने कालेजों में नौकरी में रख लिया। आला अधिकारियों के परिजनों को बिना काम के चालीस से पचास हजार रुपए वेतन दिया जाता था। इसी कारण जिला प्रशासन और आदिमजाति कल्याण विभाग के अधिकारी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं करते थे।
जनहित याचिका पर हुई जांच
हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। जनहित याचिका दायर होने के बाद ईओडब्ल्यू ने जांच तेज कर दी, लेकिन विभागीय अधिकारियों द्वारा सहयोग न दिए जाने के कारण जांच गति नहीं पकड़ पा रही है। हाईकोर्ट के सत रुख के बाद विभागों ने अपने स्तर पर जांच का कार्रवाई शुरू कर दी है। कई जिलों के आदिमजाति कल्याण विभाग के अधिकारियों ने खुद जांच कर रिपोर्ट ईओडब्ल्यू को भेजी है। कागज मिलते ही ईओडब्ल्यू ने कार्रवाई तेज कर दी है
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