भोपाल| वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने विश्व हिंदी सम्मेलन को वैभवशाली बनाए जाने पर कहा कि इस सम्मेलन को वैभव देकर और पूरे शहर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों से रंगकर व्यापम घोटाले में फंसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मोदी को खुश करने की कोशिश की है। प्रदेश की राजधानी भोपाल में चल रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिस्सा लेने आए पत्रकार ओम थानवी ने कहा , “इस सम्मेलन की मुश्किल यह हो गई कि शुरुआत से ही इसका मकसद यह हो गया कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज प्रधानमंत्री मोदी को प्रभावित करेंगे, क्योंकि वे खुद व्यापमं घोटाले में फंसे हैं और अगर अपने माई-बाप को प्रभावित करते हैं तो थोड़ा सा तो बचाव है।” थानवी ने कहा, “आप देखिए न, हवाईअड्डे से लेकर पूरा शहर प्रधानमंत्री की तस्वीरों से पटा पड़ा है।
इसमें मुख्यमंत्री अपनी तस्वीर नहीं लगा सकते तो एक संगठन का जिक्र किया गया है, एक ऐसा हिंदी प्रेमी संगठन जिसका कभी नाम नहीं सुना गया।” उन्होंने कहा कि हिंदी बड़ी भाषा है और इस तरह के आयोजन से प्रोत्साहन मिलता है, मगर इस आयोजन में साहित्य को उतना महत्व नहीं दिया गया, जितना दिया जाना चाहिए था, मगर सिर्फ साहित्य को महत्व दिया जाए यह भी जरूरी नहीं है, क्योंकि हिंदी के जितने क्षेत्र हैं, जैसे- रंगमंच, पत्रकारिता, शिक्षा, शिक्षण कर्म, इन सभी को महत्व मिलना चाहिए, लेकिन सहित्य इनमें सबसे बड़ी चीज है, क्योंकि साहित्य ही भाषा को पहचान देता है।
थानवी ने कहा, “साहित्य कालजयी होता है, पत्रकारिता वक्त के साथ खत्म हो सकती है। साहित्य को सबसे अधिक महत्व मिलना चाहिए जो इस सम्मेलन में नहीं मिला है।” थानवी ने कहा कि भोपाल में कई प्रतिष्ठित सहित्यकार हैं, जिन्हें महत्व नहीं दिया गया है। गोविंद मिश्र, रमेश चंद्र शाह जैसे लोग अगर आयोजन में न दिखें तो लगता है कि साहित्य की उपेक्षा हुई है। इसकी वजह नौकरशाहों की कार्यप्रणाली नजर आती है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “आयोजन में वही हिंदी सेवी नजर आ रहे हैं जो पिछले सम्मेलनों में दिखते रहे हैं, सवाल उठता है कि क्या देश में और लोग तैयार नहीं हो रहे हैं? नए लोगों की बात सुनी और समझी नहीं जाना चाहिए। इस सम्मेलन में विषय तो ठीक हैं, मगर बोलने वाले ‘फटीचर’ इकट्ठे कर लिए गए हैं, जो हमें भाषा का ज्ञान दे रहे हैं।”
इसमें मुख्यमंत्री अपनी तस्वीर नहीं लगा सकते तो एक संगठन का जिक्र किया गया है, एक ऐसा हिंदी प्रेमी संगठन जिसका कभी नाम नहीं सुना गया।” उन्होंने कहा कि हिंदी बड़ी भाषा है और इस तरह के आयोजन से प्रोत्साहन मिलता है, मगर इस आयोजन में साहित्य को उतना महत्व नहीं दिया गया, जितना दिया जाना चाहिए था, मगर सिर्फ साहित्य को महत्व दिया जाए यह भी जरूरी नहीं है, क्योंकि हिंदी के जितने क्षेत्र हैं, जैसे- रंगमंच, पत्रकारिता, शिक्षा, शिक्षण कर्म, इन सभी को महत्व मिलना चाहिए, लेकिन सहित्य इनमें सबसे बड़ी चीज है, क्योंकि साहित्य ही भाषा को पहचान देता है।
थानवी ने कहा, “साहित्य कालजयी होता है, पत्रकारिता वक्त के साथ खत्म हो सकती है। साहित्य को सबसे अधिक महत्व मिलना चाहिए जो इस सम्मेलन में नहीं मिला है।” थानवी ने कहा कि भोपाल में कई प्रतिष्ठित सहित्यकार हैं, जिन्हें महत्व नहीं दिया गया है। गोविंद मिश्र, रमेश चंद्र शाह जैसे लोग अगर आयोजन में न दिखें तो लगता है कि साहित्य की उपेक्षा हुई है। इसकी वजह नौकरशाहों की कार्यप्रणाली नजर आती है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “आयोजन में वही हिंदी सेवी नजर आ रहे हैं जो पिछले सम्मेलनों में दिखते रहे हैं, सवाल उठता है कि क्या देश में और लोग तैयार नहीं हो रहे हैं? नए लोगों की बात सुनी और समझी नहीं जाना चाहिए। इस सम्मेलन में विषय तो ठीक हैं, मगर बोलने वाले ‘फटीचर’ इकट्ठे कर लिए गए हैं, जो हमें भाषा का ज्ञान दे रहे हैं।”
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