Friday, September 11, 2015

डीएसपी मनोज शर्मा के बचाव में तैयार की गई मनगढं़त कहानी क्यों नहीं हुई विभागीय जांच

एएसपी की सफाई बकवास है ?
रीवा। दिनांक २७ अगस्त २०१५ को इवनिंग टाइगर के प्रथम पृष्ठ में खबर प्रकाशित हुई, वर्षो से चल रही यातायात डीएसपी की चालानी कार्यवाही का खुलासा, फर्जी रसीदों से कर चुके है करोड़ों की उगाही। इस खबर की पुष्टि व प्रमाण भी इवनिंग टाइगर समाचार पत्र में है। खबर प्रकाशन के बाद यातायात विभाग सहित पूरे पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया। यातायात पुलिस ने अपनी गलती को छुपाने के लिए एडीशनल एसपी प्रणव नागवंशी का सहारा लेकर कुछ  मीडियाकर्मियों को आंख में धूल झोक कर पत्रकारवार्ता के माध्यम से अपने आपको निर्दोष साबित करने का प्रयास किया। इसमें एडीशनल एसपी प्रणव नागवंशी, यातायात डीएसपी मनोज शर्मा विफल तो हो गये पर फर्जीवाड़े की कहानी भी साफ हो गई। चालानी कार्यवाही के दौरान रसीद बुक क्र. ७००१ से १०,००० तक की रसीदे फर्जी है इसकी भी पुष्टि अनौपचारिक रूप से हो गई। क्योंकि रसीदों के संबंध में शासन के दिशा निर्देश यह है कि रसीदों का रजिस्टर मेंटेन होता है जिसे स्टाक पंजी कहते है स्टाक पंजी में सबसे पहले प्राप्त हुई रसीदे दर्ज होती है फिर वो किसे आवंटित की गई उसका ब्यौरा दर्ज होता है। इसके बाद दैनिक संग्रहण पंजी होती है जिसमें आवंटित की गई रसीद की दैनिक उगाही का पूरा ब्यौरा दर्ज होता है? इसके बाद उक्त राशि कैशबुक में दर्ज होती है। फिर राशि बैंक में जमा होती है। उक्त संदिग्ध रसीद बुक से वसूली गई राशि खबर प्रकाशित होने के बाद कैशबुक में दर्ज की गई जबकि कैशबुक दर्ज करने की समय-सीमा निर्धारित होती है। यहां यातायात विभाग ने पत्रकारवार्ता में कैशबुक का उल्लेख किया लेकिन स्टाक पंजी व दैनिक संग्रहण पंजी का उल्लेख नहीं किया इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं फर्जीवाड़ा है व एडीशनल एसपी प्रणव नागवंशी की सफाई बकवाश है।

तीन प्राइवेट चालक दे रहे सेवा

यातायात विभाग रीवा में पिछले ६-७ वर्षो से तीन प्रावइेट चालक लगातार सेवाये दे रहे हैं जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार है-(१) वेद विश्वकर्मा (२) राजेश तिवारी (३) पारस साहू इन तीनो चालकों को प्रतिमाह लगातार वेतन मिल रही है २४ घंटा डियूटी कर रहे हैं यातायात विभाग का सरकारी वाहन चला रहे हैं वायरलेस से भी लैस रहते है इतना ही नहीं पूरे शहर में ये अकेले भी सरकारी वाहन लेकर सायरन बजाते चलते हैं कहीं अचानक शहर में जाम लग जाए तो यही चालक अकेले सायरन बजा कर जाम भी खुलवाते हैं। ऐसा लगता है कि पूरा यातायात विभाग यही तीनों चालक के भरोसे है। सरकारी वाहन लेकर पूरी रात बाईपास, शहडोल मार्ग में इंट्री वसूली होती है इनमें भी इन्हीं चालकों का प्रमुख रोल रहता है। बात यहीं समाप्त नहीं होती थाने में पदस्थ आरक्षकों की डियूटी भी इन्हीं के इसारों पर लगती है। इससे साफ जाहिर है कि अवैध कमाई से प्रायवेट चालक ने रुपयों के दम पर सबको अपने मुट्ठी में कैद कर रखा है।

पत्रिका, भास्कर जैसे पेपरों को 1000 रु. महीना बंधा है
रीवा में समाचार पत्र और चैनलों को मिला कर गिनती की जाय तो लगभग सैकड़ा भर से ऊपर होंगे। दैनिक पत्रिका समाचार पत्र व भास्कर समाचार पत्र। इसमें कोई शक नहीं कि ये प्रष्ठित समाचार पत्र है इनकी अपनी छवि है आम जनता भी इन समाचार पत्रों पर बहुत भरोसा करती है व अपेक्षाएं भी रखती है ऐसे संस्थान में लोग नौकरी पाने की हर तरह से कोशिश करते हैं। नौकरी प्राप्त करने के बाद व अपने संस्थान की ही ऐसी तैसी चन्द रुपयों की लालच में करते हैं। जबकि संस्थान इन्हें सबसे ज्यादा वेतन देता है साथ ही अन्य सुविधायें भी देता है। लेकिन कतिपय ऐसे लोग है जो रुपयों की लालच में न तो संस्थान का भला सोचते और न रीवा की जनता का। मात्र १ हजार रुपये महीने में सब कुछ बेच देते हैं। यातायात पुलिस द्वारा इन प्रतिष्ठित अखबारों के नाम से १-१ हजार रुपया वितरित किया जाता है। वितरित करने वाला व्यक्ति का नाम राजेश तिवारी है। और ये एक थाना प्रभारी के नजदीकी एक रिस्तेदार है । प्राइवेट चालक हैं लेकिन सेवायें यातायात विभाग को २४ घंटे देते हैं। राजेश तिवारी १२ तारीख से १६ तारीख के बीच इन लोगों को फोन करके रुपये पहुंचाता है। हो सकता है हमारी बात सही न हो पर अखबार स्वयं बताते हैं यातायात पुलिस के खिलाफ वर्षो के अंक उठा कर देख लिया जाय तो कभी भी डीएसपी मनोज शर्मा थाना प्रभारी सोनिया राजपूत सहित पूरे यातायात की अव्यवस्था व अवैध वसूली  की खबर प्रकाशित नहीं होती है। यह कहानी अकेले यातायात विभाग की नहीं है रीवा के कई विभागों की कहानी है  बहुत से ऐसे विभाग है जहां से जनता प्रतिदिन पीडि़त रहती है पर जनता की आवाज भी इन समाचार पत्रों में नहीं दिखाई देती। इससे साफ जाहिर है कि महीना बंधा है।

सवाल बोल रहे है रसीदे फर्जी है

१- इवनिंग टाइगर को नहीं बुलाया गया पत्रकारवार्ता में क्यों ?
२- जिला कोशालय व सासकीय प्रेस से प्राप्त जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया क्यों?
३- संबंधित एएसआई जनता से राशि वसूलते है रकम कहा जमा किया किसी के पास कोई प्रमाण नहीं क्यों ?
४- रसीद बुक क्र. १ से ७००० तक वैध है ७००१ से १०,००० तक अवैध है इसकी वैधता का कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया। मीडिया के सामने क्यों ?
५- मीडिया को वितरित समाचार विज्ञप्ति में किसी पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं है किसी जांच अधिकारी का हवाला नहीं दिया गया क्यों?
६- नियमानुसार रसीदों का सम्पूर्ण ब्यौरा स्टाकपंजी से दर्ज होने के बाद रसीदों का आवंटन होता है। वसूली रकम दैनिक सग्रहण रजिस्टर में दर्ज होने के बाद कैसबुक में दर्ज होती है व बैंक में जमा होती है। लेकिन कैशबुक ४०० पृष्ठों से ऊपर की कभी नहीं होती है कैशबुक भी संदेहास्पद है ? स्टाक पंजी व दैनिक संग्रहण पंजी नहीं दिखाया मीडिया को क्यों ?
७- दिनांक 24-9-14 को बुक क्र.1 से 7000 तक प्रिंट हुई स्वीकार किया लेकिन 7001 से 8000 कब प्रिंट हुई स्पस्ट नहीं किया फिर 8001 से 10000 बुक न.1-1-15 को प्रिंट हुई तो जाहिर है की 9289 व 9297 की बुक भी 1-1-15को प्रिंट हुई लिकिन रसीद में 24-9-14ही दर्ज है जो अपने आप में फर्जी है?
८- सासकीय प्रेस में ऑटोमेटिक प्रिंटिंग मसीन है जिसमे ऑटो काउंटर  व सेंसर लगा होता है जो प्रिंट हुए पेपर की गिनती रुपयों की तरह करता है इस लिए 24-9-14 को 7001 से 10000 बुक जादा प्रिंट होना संभव ही नहीं है ?
९- सासकीय प्रेस में कागज का स्टोर प्रथक से संचालित होताहै वहाँ से 7000 की जगह 10000 बुक के प्रिंटिंग का कागज आवंटित हो संभव ही नहीं है?
१०- ७००१ से १०,००० बुक नं. की रसीद किस दिनांक को यातायात थाने में कहां से प्राप्त हुई, किस कर्मचारी ने प्राप्त कर पावती में हस्ताक्षर किये इसका प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया ?
११-जिले के किसी भी पुलिस थाने में ७००१ से १०,००० बुक नं. की रसीद का उपयोग नहीं हुआ सिर्फ यातायात थाने से ही उपयोग हुआ क्यों ?
१२-खबर प्रकाशन के बाद से चालानी कार्यवाही भी लगभग बंद हो गई व फर्जी रसीदे भी विलुप्त हो गई क्यों ?

फर्जी रसीदों का मास्टर माइंड है प्रमोद शुक्ला


फर्जी रसीदों का मास्टर माइंड है प्रमोद शुक्ला
यातायात विभाग रीवा में लम्बे समय से पदस्थ है प्रमोद शुक्ला। इनकी सच्चाई यह है कि ये शहर में नौकरी करते इनको २५ वर्ष से ऊपर हो गये हैं। शिल्पी प्लाजा में इनकी दुकान है शहर में वेशकीमती जमीन है करोड़ों की सम्पत्ति के ये मालिक है। अपने नौकरी काल में तीन साल ये आरटीओ में पदस्थ रहे। आरटीओ में पदस्थ रहने के दौरान ही फर्जी रसीदों, टोकनों से इंट्री वसूली और उगाही के गुण सीखने के बाद पुन: ये यातायात थाना रीवा में पदस्थ हो गये। इनकी डियूटी पदस्थापना से लेकर आज तक रीवा के बाईपास में ही लगाई जाती है। जहां से हर माह लाखों की उगाही होती है। अवैध वसूली के मास्टर माइंड हो चुके प्रमोद शुक्ला ने ही यातायात विभाग में फर्जी रसीदों के द्वारा चालानी कार्यवाही की शुरूआत कराई। जो पिछले कई वर्षो से बेरोक टोक संचालित है। २७ अगस्त को इवनिंग टाइगर में खबर प्रकाशित होने के बाद २८ अगस्त को प्रमोद शुक्ला को डीएसपी मनोज शर्मा ने थाने में बुलवाया। इसके पहले प्रमोद शुक्ला लम्बी बीमारी से पीडि़त थे कहीं बाहर अपना इलाज करा रहे थे अवकाश में थे। लेकिन अचानक २८ अगस्त को प्रगट हो गये। इन रसीदों के फर्जीवाड़ा का मास्टर माइंड ही है प्रमोद शुक्ला।

लोकायुक्त व राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरों से क्यों नहीं कराते जांच
वर्षो से चल रही यातायात की चालानी कार्यवाही का खुलासा फर्जी रसीदों से कर चुके उगाही से संबंधित समाचार का प्रकाशन इवनिंग टाइगर समाचार पत्र ने प्रमुखता से किया। इसमें फर्जी रसीदों के संबंध में खुला चैलेंज भी इवनिंग टाइगर ने किया। इतना ही नहीं डंके की चोट पर मनोज शर्मा रीवा की गरीब भोली-भाली जनता के जेब से लाखों रुपये वसूली करवा चुके हैं। इस तरह की खबर का प्रकाशन प्रमुखता से होने के बाद जिले के पुलिस अधीक्षक को चाहिये कि लोकायुक्त व राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो रीवा को जांच का जिम्मा सौंपे। पर पुलिस अधीक्षक ने ऐसा न कर उप पुलिस अधीक्षक प्रणव नागवंशी को सौंप दिया। जिन्होंने मामले में लीपापोती करने का प्रयास किया। लेकिन वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाये। अभी भी यदि उक्त एजेंसियों के द्वारा जांच नहीं कराई जाती तो माननीय न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर इस प्रकरण के खुलासे का प्रयास किया जायेगा। 

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