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अवधेश पुरोहित
भोपाल। मध्यप्रदेश में लोकायुक्त की स्थापना जिस उद्देश्य से की गई थी लगता है इस समय लोकायुक्त उस उद्देश्य की दिशा से भटक गया है, यही वजह है कि उसकी जांच की कार्यप्रणाली का एक बार नहीं अनेकों बार तरह-तरह के सवाल खड़े किए गए हैं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा खरीदे गए डम्परों की जांच के समय भी तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं और समाज से जुड़े लोगों ने तरह-तरह के सवाल खड़े किए थे, यही नहीं डम्पर जाँच के मामले में आज भी यह प्रश्न लोगों के जेहन में है कि डम्पर मामले को लेकर तत्कालीन राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी के महासचिव प्रहलाद पटेल द्वारा जो मामला लोकायुक्त में दर्ज किया गया था उस मामले पर क्या कार्यवाही हुई,
यह ना तो लोकायुक्त सूचना के अधिकार के तहत लोगों द्वार लगाई गए आवेदनों में बताई गई और ना ही हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान लोकायुक्त के द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रतिवेदनों में डम्पर काण्ड में लोकायुक्त द्वारा की गई जांच का पूरा विवरण तक नहीं दिया गया। इससे यह साफ जाहिर होता है कि लोकायुक्त कहीं ना कहीं अपने उद्देश्यों से भटक गया है। यूं तो भ्रष्टाचार मिटाने और इस तरह के मामलों में कार्यवाही करने के लिये लोकायुक्त द्वारा अपना एक टेलीफोन नम्बर भी सार्वजनिक किया गया है,
लेकिन जब भी उस टेलीफोन पर फान लगाओ वह व्यस्त ही मिलता है इससे यह साफ जाहिर है कि लोकायुक्त केवल और केवल दिखावे की कार्यप्रणाली अपना रहा है यूँ तो ऐसे कई मामले हैं जिनको लेकर लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर तमाम सवाल उठते रहे हैं, हाल ही में प्रदेश के एक आईएएस रमेश थेटे द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा को लिखे एक पत्र में कहा गया है कि लोकायुक्त पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा गया है कि लोकायुक्त पुलिस द्वारा लगातार झूठे प्रकरण दर्ज किये जाते हैं ऐसे प्रकरणों में हमेशा न्यायालय ने दोषमुक्त किया है,
ऐसा आरोप लगाते हुए राज्य के बाल संरक्षण आयोग के सचिव रमेश थेटे ने अपने पत्र में लिखा है, पत्र में उन्होंने लिखा है कि लोकायुक्त द्वारा दर्ज पूर्व के प्रकरणों में उन्हें न्यायालय द्वारा दोषमुक्त किया गया है थेटे के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर अभियोजन की स्वीकृति मांगी है इस पर थेटे ने मुख्यमंत्री से न्याय की मांग करते हुए कहा है कि ऐसे सभी अभियोजन पर अविलम्ब निर्णय लिया जाए, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए, गौरतलब है कि थेटे के विरुद्ध लोकायुक्त पुलिस ने उज्जैन के एक मामले को लेकर प्रकरण दर्ज किया है, इस पर अभियोजन के लिये सरकार से मंजूरी मांगी गई है,
थेटे ने मुख्यसचिव और मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में लिखा है कि उज्जैन में पदस्थापना के दौरान वह न्यायालय के पीठासीन अधिकारी थे, सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार ऐसे पद पर रहते हुए दिये गये निर्णयों पर मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, कुल मिलाकर रमेश थेटे द्वारा लिखे गये पत्र में उन्होंने जो बिन्दु उठाए हैं और पिछले कुछ वर्षो से लोकायुक्त और उसकी पुलिस पर जिस तरह की कार्यप्रणाली के आरोप पिछले दिनों लगते रहे हैं,
यही नहीं लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर उठने वाले सवाल से यह साफ जाहिर हो जाता है कि कहीं न कहीं लोकायुक्त और उसके अधीनस्थ कर्मचारी दबाव के चलते जांच प्रक्रिया को अंजाम देते रहे हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा खरीदे गए डम्पर मामला है, हालांकि यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है इस पर कुछ लिखना और कहना उचित नहीं होगा,
लेकिन लोगों में यह चर्चा का विषय है कि लोकायुक्त कहीं न कहीं दबाव में जांच प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है ऐसा ही एक मामला कांग्रेस के विधायक डॉ. गोविंद सिंह का है जिसमें उनके द्वारा शिवराज मंत्रीमण्डल की तत्कालीन शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस पर देवपुत्र नामक एक पत्रिका को गलत तरीके से लाभ पहुंचाने का था। लेकिन डॉ. गोविंद सिंह द्वारा इस मुद्दे को लेकर आज भी यह कहा जा रहा है कि यह जांच प्रक्रिया निष्पक्षता से नहीं हुई है इसको लेकर वह न्यायालय की शरण लेंगे। ऐसे एक नहीं अनेकों मामले हैं जिनमें लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं।
डम्पर मामले के समय प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा एक बार नहीं अनेकों बार डम्पर मामले की लोकायुक्त द्वारा की जा रही जांच को लेकर यह सवाल खड़े किए गए हैं कि जो लोकायुक्त पुलिस मुख्यमंत्री के अधीनस्थ काम करती है उससे सही जांच की क्या उम्मीद की जाए, साथ ही लोकायुक्त जो कि एक संवैधानिक पद पर पदस्थ हैं उनके द्वारा दीवाली के अवसर पर सपरिवार मुख्यमंत्री के निवास पर मिलने जाने को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे और लोग यहां तक चर्चा करते नजर आए कि जब डम्पर मामले की जांच लोकायुक्त द्वारा की जा रही है, ऐसे समय में मुख्यमंत्री से उनके निवास पर जाकर मिलना क्या उचित है।
यही नहीं लोकायुक्त के परिजनों पर भी शासन द्वारा उसी दौरान लाभ पहुंचाने को लेकर भी सवाल उठे थे । जहां तक लोकायुक्त की कार्यप्रणाली का सवाल है तो उसको लेकर जहां राजनेताओं ने तो सवाल खड़े किए ही हैं अब एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रमेश थेटे द्वारा सवाल खड़े किए जाने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
अवधेश पुरोहित
भोपाल। मध्यप्रदेश में लोकायुक्त की स्थापना जिस उद्देश्य से की गई थी लगता है इस समय लोकायुक्त उस उद्देश्य की दिशा से भटक गया है, यही वजह है कि उसकी जांच की कार्यप्रणाली का एक बार नहीं अनेकों बार तरह-तरह के सवाल खड़े किए गए हैं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा खरीदे गए डम्परों की जांच के समय भी तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं और समाज से जुड़े लोगों ने तरह-तरह के सवाल खड़े किए थे, यही नहीं डम्पर जाँच के मामले में आज भी यह प्रश्न लोगों के जेहन में है कि डम्पर मामले को लेकर तत्कालीन राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी के महासचिव प्रहलाद पटेल द्वारा जो मामला लोकायुक्त में दर्ज किया गया था उस मामले पर क्या कार्यवाही हुई,
यह ना तो लोकायुक्त सूचना के अधिकार के तहत लोगों द्वार लगाई गए आवेदनों में बताई गई और ना ही हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान लोकायुक्त के द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रतिवेदनों में डम्पर काण्ड में लोकायुक्त द्वारा की गई जांच का पूरा विवरण तक नहीं दिया गया। इससे यह साफ जाहिर होता है कि लोकायुक्त कहीं ना कहीं अपने उद्देश्यों से भटक गया है। यूं तो भ्रष्टाचार मिटाने और इस तरह के मामलों में कार्यवाही करने के लिये लोकायुक्त द्वारा अपना एक टेलीफोन नम्बर भी सार्वजनिक किया गया है,
लेकिन जब भी उस टेलीफोन पर फान लगाओ वह व्यस्त ही मिलता है इससे यह साफ जाहिर है कि लोकायुक्त केवल और केवल दिखावे की कार्यप्रणाली अपना रहा है यूँ तो ऐसे कई मामले हैं जिनको लेकर लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर तमाम सवाल उठते रहे हैं, हाल ही में प्रदेश के एक आईएएस रमेश थेटे द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा को लिखे एक पत्र में कहा गया है कि लोकायुक्त पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा गया है कि लोकायुक्त पुलिस द्वारा लगातार झूठे प्रकरण दर्ज किये जाते हैं ऐसे प्रकरणों में हमेशा न्यायालय ने दोषमुक्त किया है,
ऐसा आरोप लगाते हुए राज्य के बाल संरक्षण आयोग के सचिव रमेश थेटे ने अपने पत्र में लिखा है, पत्र में उन्होंने लिखा है कि लोकायुक्त द्वारा दर्ज पूर्व के प्रकरणों में उन्हें न्यायालय द्वारा दोषमुक्त किया गया है थेटे के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर अभियोजन की स्वीकृति मांगी है इस पर थेटे ने मुख्यमंत्री से न्याय की मांग करते हुए कहा है कि ऐसे सभी अभियोजन पर अविलम्ब निर्णय लिया जाए, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए, गौरतलब है कि थेटे के विरुद्ध लोकायुक्त पुलिस ने उज्जैन के एक मामले को लेकर प्रकरण दर्ज किया है, इस पर अभियोजन के लिये सरकार से मंजूरी मांगी गई है,
थेटे ने मुख्यसचिव और मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में लिखा है कि उज्जैन में पदस्थापना के दौरान वह न्यायालय के पीठासीन अधिकारी थे, सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार ऐसे पद पर रहते हुए दिये गये निर्णयों पर मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, कुल मिलाकर रमेश थेटे द्वारा लिखे गये पत्र में उन्होंने जो बिन्दु उठाए हैं और पिछले कुछ वर्षो से लोकायुक्त और उसकी पुलिस पर जिस तरह की कार्यप्रणाली के आरोप पिछले दिनों लगते रहे हैं,
यही नहीं लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर उठने वाले सवाल से यह साफ जाहिर हो जाता है कि कहीं न कहीं लोकायुक्त और उसके अधीनस्थ कर्मचारी दबाव के चलते जांच प्रक्रिया को अंजाम देते रहे हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा खरीदे गए डम्पर मामला है, हालांकि यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है इस पर कुछ लिखना और कहना उचित नहीं होगा,
लेकिन लोगों में यह चर्चा का विषय है कि लोकायुक्त कहीं न कहीं दबाव में जांच प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है ऐसा ही एक मामला कांग्रेस के विधायक डॉ. गोविंद सिंह का है जिसमें उनके द्वारा शिवराज मंत्रीमण्डल की तत्कालीन शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस पर देवपुत्र नामक एक पत्रिका को गलत तरीके से लाभ पहुंचाने का था। लेकिन डॉ. गोविंद सिंह द्वारा इस मुद्दे को लेकर आज भी यह कहा जा रहा है कि यह जांच प्रक्रिया निष्पक्षता से नहीं हुई है इसको लेकर वह न्यायालय की शरण लेंगे। ऐसे एक नहीं अनेकों मामले हैं जिनमें लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं।
डम्पर मामले के समय प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा एक बार नहीं अनेकों बार डम्पर मामले की लोकायुक्त द्वारा की जा रही जांच को लेकर यह सवाल खड़े किए गए हैं कि जो लोकायुक्त पुलिस मुख्यमंत्री के अधीनस्थ काम करती है उससे सही जांच की क्या उम्मीद की जाए, साथ ही लोकायुक्त जो कि एक संवैधानिक पद पर पदस्थ हैं उनके द्वारा दीवाली के अवसर पर सपरिवार मुख्यमंत्री के निवास पर मिलने जाने को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे और लोग यहां तक चर्चा करते नजर आए कि जब डम्पर मामले की जांच लोकायुक्त द्वारा की जा रही है, ऐसे समय में मुख्यमंत्री से उनके निवास पर जाकर मिलना क्या उचित है।
यही नहीं लोकायुक्त के परिजनों पर भी शासन द्वारा उसी दौरान लाभ पहुंचाने को लेकर भी सवाल उठे थे । जहां तक लोकायुक्त की कार्यप्रणाली का सवाल है तो उसको लेकर जहां राजनेताओं ने तो सवाल खड़े किए ही हैं अब एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रमेश थेटे द्वारा सवाल खड़े किए जाने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
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