*खुद के खेतों में खनन रोकना भारी पड़ा आदिवासियों को
*प्रशासनिक संरक्षण में खुद रही थी सरकारी जमीन
शिवपुरी ब्यूरो
प्रशासन एक जिले में बिल्डकॉन कम्पनी के मैनेजर की भूमिका में आ गया है कथित राजनैतिक दबाव में आकर अपनी ही जमीन पर अवैध खनन रुकवाने वाले आदिवासियों पर पुलिस ने बिल्डकॉन के कर्ताधर्ता की रिपोर्ट पर से पत्रकार संजय बेचैन सहित अन्य आदिवासियों के खिलाफ मारपीट का मुकदमा दर्ज कर लिया है।
उल्लेखनीय है कि आदिवासियों की कृषि योग्य भूमि पर फोरलेन निर्माण में लगी बिल्डकॉन कम्पनी द्वारा अपनी मशीनरी लगाकर खेतों को खदानों में बदलने का जो सिलसिला शुरू किया था, इस अवैध खनन का आदिवासियों ने विरोध किया था। तत्समय तमाम मीडिया की मौजूदगी में मौके पर आदिवासियों के सरकारी पट्टे की भूमि पर अवैध खनन चलते पाया गया और बिल्डकॉन की मशीनरी जिसमें तमाम डम्पर और जेसीबी आदि से खनन होता मिला जिसका आदिवासियों ने पुरजोर विरोध किया और तमाम मशीनरी को जब्त करने की माँग की मगर मौके पर पहुंची पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने अपने संरक्षण में इस अवैध खनन में लगी मशीनों को मौके से छोड़ दिया। इस घटना को लेकर आदिवासी समुदाय पिछले एक हफ्ते से लगातार विरोध कर दोषियों पर कार्यवाही की मांग कर रहा था किन्तु सत्ता प्रतिष्ठान से नजदीकी रिश्तों के चलते बिल्डकॉन के दबाव में जिला कलेक्टर और पुलिस प्रशासन इस हद तक उतारू हो गया कि उसे सही और गलत की परिभाषा ही समझ नहीं आई। अपने ही खेतों को खदान में बदलने का विरोध करने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों पर झूठा मुकदमा साजिशन दर्ज करा दिया गया।
बम्हारी थाना पुलिस ने पत्रकार संजय बेचैन सहित विरोध कर रहे अन्य आदिवासियों पर मारपीट का मुकदमा दर्ज कर लिया जबकि इस पक्ष द्वारा बिल्डकॉन की दादागिरी के खिलाफ की गई शिकायत पर पुलिस और प्रशासन ने कोई एक्शन लेना मुनासिब नहीं समझा। अब इस घटनाक्रम को लेकर माहौल और गर्माता दिखाई दे रहा है। मौके पर खुद चुके खेत जिनकी मुरम का इस्तेमाल फोरलेन बनाने में किया गया है इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यहाँ अवैध उत्खनन प्रशासनिक संरक्षण में चला है, न केवल यहाँ बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी इसी दबंगई से सत्ता प्रतिष्ठान का लाभ उठाकर यह कम्पनी मनमाना काम कर रही है। प्रशासन ने अजीबो गरीब कार्यवाही करते हुए उल्टे विरोध कर्ताओं पर ही कार्यवाही कर डाली जबकि अवैध खनन मामले में अवैध खनन कर्ताओं के खिलाफ कोई कार्यवाही आज दिनांक तक संस्थित नहीं की है। इस घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि जिले में प्रशासनिक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रख कर खुद प्रशासनिक संरक्षण में अवैध खनन को शह दे रहे हैं। यहां बता दें कि इस घटनाक्रम से एक दिन पूर्व ही कलेक्टर की अध्यक्षता में टास्क फोर्स की बैठक का आयोजन कर पुलिस, वन, राजस्व और माइनिंंग विभाग को निर्देश दिए गए कि अवैध खनन के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए और दूसरे ही दिन करई कैरऊ के आदिवासियों के पट्टे की भूमि पर फोरलेन निर्माण कम्पनी के कर्ताधर्ताओं की तमाम मशीनरी डम्पर, जेसीबी आदि खेतों पर खनन करते दिखाई दिए जिसका सहरिया क्रांति संगठन ने पट्टाधारकों के साथ इस खनन का विरोध जताया मौके पर तमाम मशीनरी जो इनके खेतों पर खड़ी थी उसे भी जब्त करने की मांग की मगर दो थानों की पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने इनकी एक नहीं सुनी उल्टे प्रशासन के समक्ष कम्पनी की ओर से इन्हें धमकाया गया, बाद में भी धमकियां दी गई जिस पर गत 19 सितम्बर को फिर से सहरियाओं ने प्रदर्शन कर अवैध खनन कर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की मगर इनकी फरियाद नहीं सुनी गई।
नहीं है प्रशासन पर जबाव-
*क्या आदिवासियों को दी गई सरकारी पट्टे की भूमि पर खनन का अनुबंध किया जा सकता है?
*फोरलेन निर्माण में प्रयुक्त खनिज और उसकी चुकता की गई रायल्टी का सत्यापन क्या अब से पूर्व मायनिंग विभाग ने किया?
* पट्टे की जमीन पर उत्खनन की अनुमति प्रशासन के किस अधिकारी ने दी और यदि अनुमति नहीं थी तो उत्खनन कर रही मशीनरी को बजाए जब्त करने के कैसे छोड़ा गया?
*जिले भर में अवैध उत्खनन का सिलसिला चल रहा है मगर प्रशासन मौन क्यों है वह सिर्फ इक्का दुक्का कार्यवाही अवैध परिवहन पर करता है जबकि उत्खनन को छूट दी जा रही है।
*आदिवासियों की कृषि पट्टे की भूमि का लैण्ड यूज किसने और किस नियम से बदला?
*पुलिस ने अपने ही खेतों पर खनन रुकवाने की मांग कर रहे कमजोर सहरियाओं की अनसुनी कर कम्पनी की गलत गतिविधियों को कैसे संरक्षण दिया? उल्टे विरोध कर्ताओं पर कार्यवाही किसके दबाव में की गई?
ये तमाम सवाल अब फिजा में तैर रहे हैं जिनका जबाव कथित राजनैतिक दबाव में प्रशासन न दे रहा हो मगर आने वाले कल में यह मामला जब न्यायालय में उठेगा तब इतनी आसानी से प्रशासन कन्नी नहीं काट पाएगा।
इनका कहना है-
प्रशासन ने किस दबाव के वशीभूत होकर यह कार्यवाही की है यह समझ से परे है। अवैध उत्खननकर्ताओं को कार्यवाही से अछूता कैसे रखा गया है, इसकी जाँच के लिए लोकतांत्रिक ढंग से उच्च अथॉर्टी के समक्ष अपनी बात रखेंगे। मैं अपील करता हूं कि कोई भी आदिवासी भाई इस मामले में कतई कोई उत्तेजना न बरते, इस मामले में जो भी वैधानिक तरीका होगा उसी के अनुरूप हम अपनी बात रखेंगे।
संजय बेचैन
*प्रशासनिक संरक्षण में खुद रही थी सरकारी जमीन
शिवपुरी ब्यूरो
प्रशासन एक जिले में बिल्डकॉन कम्पनी के मैनेजर की भूमिका में आ गया है कथित राजनैतिक दबाव में आकर अपनी ही जमीन पर अवैध खनन रुकवाने वाले आदिवासियों पर पुलिस ने बिल्डकॉन के कर्ताधर्ता की रिपोर्ट पर से पत्रकार संजय बेचैन सहित अन्य आदिवासियों के खिलाफ मारपीट का मुकदमा दर्ज कर लिया है।
उल्लेखनीय है कि आदिवासियों की कृषि योग्य भूमि पर फोरलेन निर्माण में लगी बिल्डकॉन कम्पनी द्वारा अपनी मशीनरी लगाकर खेतों को खदानों में बदलने का जो सिलसिला शुरू किया था, इस अवैध खनन का आदिवासियों ने विरोध किया था। तत्समय तमाम मीडिया की मौजूदगी में मौके पर आदिवासियों के सरकारी पट्टे की भूमि पर अवैध खनन चलते पाया गया और बिल्डकॉन की मशीनरी जिसमें तमाम डम्पर और जेसीबी आदि से खनन होता मिला जिसका आदिवासियों ने पुरजोर विरोध किया और तमाम मशीनरी को जब्त करने की माँग की मगर मौके पर पहुंची पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने अपने संरक्षण में इस अवैध खनन में लगी मशीनों को मौके से छोड़ दिया। इस घटना को लेकर आदिवासी समुदाय पिछले एक हफ्ते से लगातार विरोध कर दोषियों पर कार्यवाही की मांग कर रहा था किन्तु सत्ता प्रतिष्ठान से नजदीकी रिश्तों के चलते बिल्डकॉन के दबाव में जिला कलेक्टर और पुलिस प्रशासन इस हद तक उतारू हो गया कि उसे सही और गलत की परिभाषा ही समझ नहीं आई। अपने ही खेतों को खदान में बदलने का विरोध करने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों पर झूठा मुकदमा साजिशन दर्ज करा दिया गया।
बम्हारी थाना पुलिस ने पत्रकार संजय बेचैन सहित विरोध कर रहे अन्य आदिवासियों पर मारपीट का मुकदमा दर्ज कर लिया जबकि इस पक्ष द्वारा बिल्डकॉन की दादागिरी के खिलाफ की गई शिकायत पर पुलिस और प्रशासन ने कोई एक्शन लेना मुनासिब नहीं समझा। अब इस घटनाक्रम को लेकर माहौल और गर्माता दिखाई दे रहा है। मौके पर खुद चुके खेत जिनकी मुरम का इस्तेमाल फोरलेन बनाने में किया गया है इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यहाँ अवैध उत्खनन प्रशासनिक संरक्षण में चला है, न केवल यहाँ बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी इसी दबंगई से सत्ता प्रतिष्ठान का लाभ उठाकर यह कम्पनी मनमाना काम कर रही है। प्रशासन ने अजीबो गरीब कार्यवाही करते हुए उल्टे विरोध कर्ताओं पर ही कार्यवाही कर डाली जबकि अवैध खनन मामले में अवैध खनन कर्ताओं के खिलाफ कोई कार्यवाही आज दिनांक तक संस्थित नहीं की है। इस घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि जिले में प्रशासनिक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रख कर खुद प्रशासनिक संरक्षण में अवैध खनन को शह दे रहे हैं। यहां बता दें कि इस घटनाक्रम से एक दिन पूर्व ही कलेक्टर की अध्यक्षता में टास्क फोर्स की बैठक का आयोजन कर पुलिस, वन, राजस्व और माइनिंंग विभाग को निर्देश दिए गए कि अवैध खनन के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए और दूसरे ही दिन करई कैरऊ के आदिवासियों के पट्टे की भूमि पर फोरलेन निर्माण कम्पनी के कर्ताधर्ताओं की तमाम मशीनरी डम्पर, जेसीबी आदि खेतों पर खनन करते दिखाई दिए जिसका सहरिया क्रांति संगठन ने पट्टाधारकों के साथ इस खनन का विरोध जताया मौके पर तमाम मशीनरी जो इनके खेतों पर खड़ी थी उसे भी जब्त करने की मांग की मगर दो थानों की पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने इनकी एक नहीं सुनी उल्टे प्रशासन के समक्ष कम्पनी की ओर से इन्हें धमकाया गया, बाद में भी धमकियां दी गई जिस पर गत 19 सितम्बर को फिर से सहरियाओं ने प्रदर्शन कर अवैध खनन कर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की मगर इनकी फरियाद नहीं सुनी गई।
नहीं है प्रशासन पर जबाव-
*क्या आदिवासियों को दी गई सरकारी पट्टे की भूमि पर खनन का अनुबंध किया जा सकता है?
*फोरलेन निर्माण में प्रयुक्त खनिज और उसकी चुकता की गई रायल्टी का सत्यापन क्या अब से पूर्व मायनिंग विभाग ने किया?
* पट्टे की जमीन पर उत्खनन की अनुमति प्रशासन के किस अधिकारी ने दी और यदि अनुमति नहीं थी तो उत्खनन कर रही मशीनरी को बजाए जब्त करने के कैसे छोड़ा गया?
*जिले भर में अवैध उत्खनन का सिलसिला चल रहा है मगर प्रशासन मौन क्यों है वह सिर्फ इक्का दुक्का कार्यवाही अवैध परिवहन पर करता है जबकि उत्खनन को छूट दी जा रही है।
*आदिवासियों की कृषि पट्टे की भूमि का लैण्ड यूज किसने और किस नियम से बदला?
*पुलिस ने अपने ही खेतों पर खनन रुकवाने की मांग कर रहे कमजोर सहरियाओं की अनसुनी कर कम्पनी की गलत गतिविधियों को कैसे संरक्षण दिया? उल्टे विरोध कर्ताओं पर कार्यवाही किसके दबाव में की गई?
ये तमाम सवाल अब फिजा में तैर रहे हैं जिनका जबाव कथित राजनैतिक दबाव में प्रशासन न दे रहा हो मगर आने वाले कल में यह मामला जब न्यायालय में उठेगा तब इतनी आसानी से प्रशासन कन्नी नहीं काट पाएगा।
इनका कहना है-
प्रशासन ने किस दबाव के वशीभूत होकर यह कार्यवाही की है यह समझ से परे है। अवैध उत्खननकर्ताओं को कार्यवाही से अछूता कैसे रखा गया है, इसकी जाँच के लिए लोकतांत्रिक ढंग से उच्च अथॉर्टी के समक्ष अपनी बात रखेंगे। मैं अपील करता हूं कि कोई भी आदिवासी भाई इस मामले में कतई कोई उत्तेजना न बरते, इस मामले में जो भी वैधानिक तरीका होगा उसी के अनुरूप हम अपनी बात रखेंगे।
संजय बेचैन
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