भारत को ऋषि-मुनियों का देश माना जाता है और यहां गर्दभ राज से लेकर गाय तक की पूजा होती है। हर पशु का अपना धार्मिक महत्त्व है। पशु-पक्षी ही हमारे देवी देवताओं के वाहन भी है। ऐसी संस्कृति वाले देश में यदि मांस को लेकर राजनीति हो तो इसे दुर्भाग्य पूर्ण ही कहा जाएगा। जैन समाज के पर्यूषण पर्व को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 10 से लेकर 17 सितम्बर तक मांस की बिक्री पर रोक लगाई है। लेकिन यह रोक शिव सेना के उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे को पसंद नहीं आ रही है।
ठाकरे बंधुओं ने सरकार के साथ-साथ जैन समाज की भी आलोचना की है। यहां तक कहा गया है कि सरकार की रोक के बाद भी यदि कोई कसाई मांस की बिक्री करना चाहता है तो शिव सेना और मनसे के कार्यकर्ता संरक्षण देंगे। ठाकरे बंधुओं ने कहा कि कसाई अपनी दुकान खोले और निरडर होकर मांस की बिक्री करें। सब जानते हैं कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे तो आमने-सामने खड़े थे, लेकिन प्रतीत होता है कि मांस के मुद्दे ने दोनों को एक कर दिया है।
पर्यूषण पर्व पर मांस की बिक्री हो या नहीं, यह बात कोई मायने नहीं रखती, लेकिन मांस के मुद्दे पर जिस प्रकार समाज के ताकतवर आमने-सामने हुए है, उससे भारत की एकता खतरे में पड़ सकती है। सब जानते हैं कि मुंबई में शिव सेना ने ही सब से पहले आतंकी गतिविधियों का विरोध किया। यदि शिव सेना के कार्यकर्ता मदद के लिए नहीं आते तो दाऊद इब्राहिम और अन्य अपराधिक तत्व मुंबई का बुरा हाल कर देते।
ऐसे विरोध की वजह से ही शिवसेना की स्थिति मुंबई में मजबूत हुई, लेकिन आज वहीं शिव सेना मांस की बिक्री पर रोक का विरोध कर रही है। सवाल उठता है कि आखिर शिव सेना ने दाऊद इब्राहिम जैसे लोगों से किसकी रक्षा की? मुंबई के कारोबार पर जैन समाज के लोगों की पकड़ है। स्वाभाविक है कि शिव सेना के विरोध का सबसे ज्यादा फायदा जैन समाज के कारोबारियों को हुआ।
इस बात को जैन समाज भी स्वीकार करता है, लेकिन कसाईओं के मांस ने शिव सेना और जैन समाज को ही आमने-सामने खड़ा कर दिया और अब तो जैन संत भी इस जंग में कूद पड़े हैं। क्रांतिकारी संत तरुण सागर और राष्ट्र संत पुलक सागर महाराज ने शिव सेना को ललकारने वाले अंदजा में कहा कि जैन समाज को उकसाया न जाए। वहीं ठाकरे बंधुओं ने जैन समाज को मुसलमानों के रास्ते पर चलने की बात कहीं है।
हो सकता है कि शिवसेना की महाराष्ट्र की देवेन्द्र फडऩवीस सरकार से कोई नाराजगी हो। इसलिए मांस की बिक्री को मुद्दा बनाकर आलोचना की जा रही है। अच्छा हो कि शिवसेना किसी दूसरे मुद्दे पर भाजपा सरकार को सबक सिखाए। शिवसेना और जैन समाज दोनों को ही एकता बनाए रखने की जरुरत है। यदि शिवसेना और जैन समाज ही आपस में लड़ेंगे तो उन ताकतों को बल मिलेगा, जो देश को तोडऩा चाहती है।
मेरी नजर में तो मांस की बिक्री का कोई मुद्दा ही नहंी है। जैनी भी समग्र भारतीय समाज का अंग हैं। पर्यूषण पर्व के दौरान जो लोग मांस न खाए,उन्हें मांस खाने वालों से ऐतराज नहीं होना चाहिए। कोई काम सरकार के कहने से बंद नहीं होता। यदि सरकार ने बिक्री पर रोक लगा दी है तो क्या मांस का सेवन बंद हो जाएगा? जिन्हें मांस खाना है वह तो खाएंगे ही। अच्छा हो कि मांस खाने की प्रवृत्ति को ही रोका जाए जो लोग मांस खाते हैं वह स्वैच्छा से पर्यूषण पर्व के दौरान मांस न खाए तो यह ज्यादा अच्छा होगा। शिव सेना और जैन समाज के आमने-सामने होने से देश का कोई भला होने वाला नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)
ठाकरे बंधुओं ने सरकार के साथ-साथ जैन समाज की भी आलोचना की है। यहां तक कहा गया है कि सरकार की रोक के बाद भी यदि कोई कसाई मांस की बिक्री करना चाहता है तो शिव सेना और मनसे के कार्यकर्ता संरक्षण देंगे। ठाकरे बंधुओं ने कहा कि कसाई अपनी दुकान खोले और निरडर होकर मांस की बिक्री करें। सब जानते हैं कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे तो आमने-सामने खड़े थे, लेकिन प्रतीत होता है कि मांस के मुद्दे ने दोनों को एक कर दिया है।
पर्यूषण पर्व पर मांस की बिक्री हो या नहीं, यह बात कोई मायने नहीं रखती, लेकिन मांस के मुद्दे पर जिस प्रकार समाज के ताकतवर आमने-सामने हुए है, उससे भारत की एकता खतरे में पड़ सकती है। सब जानते हैं कि मुंबई में शिव सेना ने ही सब से पहले आतंकी गतिविधियों का विरोध किया। यदि शिव सेना के कार्यकर्ता मदद के लिए नहीं आते तो दाऊद इब्राहिम और अन्य अपराधिक तत्व मुंबई का बुरा हाल कर देते।
ऐसे विरोध की वजह से ही शिवसेना की स्थिति मुंबई में मजबूत हुई, लेकिन आज वहीं शिव सेना मांस की बिक्री पर रोक का विरोध कर रही है। सवाल उठता है कि आखिर शिव सेना ने दाऊद इब्राहिम जैसे लोगों से किसकी रक्षा की? मुंबई के कारोबार पर जैन समाज के लोगों की पकड़ है। स्वाभाविक है कि शिव सेना के विरोध का सबसे ज्यादा फायदा जैन समाज के कारोबारियों को हुआ।
इस बात को जैन समाज भी स्वीकार करता है, लेकिन कसाईओं के मांस ने शिव सेना और जैन समाज को ही आमने-सामने खड़ा कर दिया और अब तो जैन संत भी इस जंग में कूद पड़े हैं। क्रांतिकारी संत तरुण सागर और राष्ट्र संत पुलक सागर महाराज ने शिव सेना को ललकारने वाले अंदजा में कहा कि जैन समाज को उकसाया न जाए। वहीं ठाकरे बंधुओं ने जैन समाज को मुसलमानों के रास्ते पर चलने की बात कहीं है।
हो सकता है कि शिवसेना की महाराष्ट्र की देवेन्द्र फडऩवीस सरकार से कोई नाराजगी हो। इसलिए मांस की बिक्री को मुद्दा बनाकर आलोचना की जा रही है। अच्छा हो कि शिवसेना किसी दूसरे मुद्दे पर भाजपा सरकार को सबक सिखाए। शिवसेना और जैन समाज दोनों को ही एकता बनाए रखने की जरुरत है। यदि शिवसेना और जैन समाज ही आपस में लड़ेंगे तो उन ताकतों को बल मिलेगा, जो देश को तोडऩा चाहती है।
मेरी नजर में तो मांस की बिक्री का कोई मुद्दा ही नहंी है। जैनी भी समग्र भारतीय समाज का अंग हैं। पर्यूषण पर्व के दौरान जो लोग मांस न खाए,उन्हें मांस खाने वालों से ऐतराज नहीं होना चाहिए। कोई काम सरकार के कहने से बंद नहीं होता। यदि सरकार ने बिक्री पर रोक लगा दी है तो क्या मांस का सेवन बंद हो जाएगा? जिन्हें मांस खाना है वह तो खाएंगे ही। अच्छा हो कि मांस खाने की प्रवृत्ति को ही रोका जाए जो लोग मांस खाते हैं वह स्वैच्छा से पर्यूषण पर्व के दौरान मांस न खाए तो यह ज्यादा अच्छा होगा। शिव सेना और जैन समाज के आमने-सामने होने से देश का कोई भला होने वाला नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)
No comments:
Post a Comment