ममत्व महिला मंडल सीधी द्वारा सरकारी अनुदान राशि में करोड़ों का घोटाला
विनय जी. डेविड // 098932 21036
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सीधी जिले मे कार्यरत कई जेबी संगठनों द्वारा सरकारी राशि का किस प्रकार दुरूपयोग किया जा रहा है यह खबर ना तो जनता को होगी जिनके क ल्याण के लिए केन्द्र सरकार व राज्य सरकार पैसा देती है ना ही प्रशासन के किसी नुमाइंदें को यह खबर होती कि सरकार के किस विभाग द्वारा किस स्वयं सेवी संस्था को किस क्षेत्र में किस काम एवं किन हितग्राहियों के कल्याण के लिए कितना पैसा दिया जा रहा है और सहायता राशि से जिले में कितना काम हुआ और किन किन हितग्राहियों को इसमें लाभ प्राप्त हुआ यह कोई जानकारी जिले में नहीं होती। इससे इसमें जिला प्रशासन को पूरा दोष नहीं जाता क्योंकि केन्द्र सरकार के कुछ विभाग व अन्य डोनर संस्थाये जिले में कार्यरत कई स्वयं सेवी संस्थाओं को सीधे अनुदान सहायता राशि मुहैया कराती है। राज्य सरकार या प्रशासन का सिर्फ इतना दोष होता है कि इस संबंध मे यदि कहीं से कोई शिकायत होती है तो उसमे त्वरित कार्यवाही नहीं होती जब तक कार्यवाही होती है तब तक संगठनों द्वारा जनता के भलाई के लिये मिली पूरी सरकारी राशि हड़प कर अपना घर भर लिया जाता है तथा वास्तविक हितग्राही तक एक पैसा नहीं पहुंचता और प्रतिवेदन के नाम पर कागजी कार्यवाही पूरी कर ली जाती है। समाज सेवा की आड़ में जिले मे कार्यरत एक स्वयं सेवी संस्था ममत्व महिला मंडल सीधी जिसका निर्माण कुछ वर्षों पूर्व हुआ उस संस्था द्वारा केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार से आदिवासी एवं कारीगरो के विकास के नाम पर पिछले दो वर्षों से प्राप्त सरकारी अनुदान राशि करोड़ों रूपये के घोटाले का मामला उजागर हुआ है। महिला मंडल को विकास आयुक्त हस्तशिल्प कार्यालय, वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली द्वारा बाबा साहेब अम्बेडकर हस्तशिल्प योजनान्र्तगत तकरीबन 30 लाख रूपये जिसमे क्राफ्ट बाजार हेतु वित्तीय वर्ष 08-09 में रू. 1,85,000/- वित्तीय वर्ष 2009-10 मे रू. 8,62,500/- बेसलाइन सर्वे हेतु रू. 10,00,000/-ट्रेनिंग एवं वर्कशाप हेतु रू. 7,22,000/-एच.आर.डी. हेतु रू. 1,25,000/- अनुदान राशि प्रदान की गई तथा संस्था को वित्तीय वर्ष 2009-10 मे एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना जिला सीधी से कुसुमी एवं सिंगरौली विकासखण्ड के लिये 6,00,000/-रूपये अनुदान राशि प्राप्त हुई है। इसके अलावा भारत सरकार हस्तशिल्प विभाग द्वारा संस्था को एक करोड़ की स्वीकृति मिल चुकी है। जिसकी आधी राशि चालू वित्तीय वर्ष 2010-11 के प्रथम आठ महीने मे संस्था को प्राप्त हो चुकी है।
इस बात का खुलासा तब हुआ जब संस्था की लीगल सेकेट्री ममता मिश्रा को वह राशि संस्था यूनियन बैंक ऑफ इंडिया सीधी के लीगल खाते मे जमा नही पाई गई उक्त राशि अध्यक्ष उमा सेन व कोषाध्यक्ष सरोज जैसवाल द्वारा फर्जी एवं अवैधानिक तरीके से बाला-बाला एक फर्जी खाता खोलकर राशि जमा की गई है तथा आहरण किया गया है संस्था सचिव ने अपने नैतिक दायित्वों का निर्वहन कर इस बात की शिकायत कलेक्टर सीधी एवं विकास आयुक्त कार्यालय भारत सरकार को पत्र लिखकर फर्जीवाड़ा रोकने की मांग की है। संस्था सचिव के अनुसार विधान मे यह प्रावधान है कि महिला मंडल का खाता किसी राष्ट्रीयकृत बैंक या पोस्टआफिस मे अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष का संयुक्त खाता खोला जायेगा तथा किन्हीं दो के संयुक्त हस्ताक्षर से पैसा निकाला जायेगा किन्तु उन दोनो पदाधिकारियों द्वारा फर्जी खाता खोलने हेतु किया गया कृत्य जालसाजी एवं गबन की श्रेणी मे आता है। पत्र मे सचिव ने यह भी शिकायत की है कि महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण के लिये गठित महिला मंडल केवल नाम मात्र के लिये महिला मंडल रह गया है इसमे यह पाया गया कि जब से इस संस्था को लाखों रूपये मे सरकारी अनुदान राशि मिलने लगी तबसे यह अपने उद्देश्यों से कोसो दूर हो गया। अब इस संगठन मे महिलाओं का नही बल्कि सिर्फ एक पुरूष और एक महिला का राज कायम हो गया है
महिला मंडल की तीन महिलायें जिसमे शकुन्तला जैसवाल उपाध्यक्ष, सरोज जैसवाल कोषाध्यक्ष, शीला जैसवाल संयुक्त सचिव एक घर की एवं एक परिवार की है जो महिला मंडल मे क्या हो रहा है उसके काले कारनामों से अनभिज्ञ है किसी भी रजिस्टर मे किसी भी कार्यवाही मे उनके वास्तविक हस्ताक्षर नही होते उन तीनो के हस्ताक्षर उपाध्यक्ष शकुन्तला जैसवाल के पति महेन्द्र जैसवाल द्वारा किया जाता है महेन्द्र जायसवाल महिला बाल विकास का सरकारी ड्रायवर है जो पिछले आठ वर्षों से कलेक्टर कार्यालय सीधी के स्थानीय निर्वाचन शाखा मे बिना वाहन के लगातार अटैच है तथा बिना गाड़ी चलाये प्रतिवर्ष शासन से लाखों रूपये फोकट मे वेतन ले रहा है तथा सबको कलेक्टर आफिस का धौंस बताता है सीधी मे अटेचमेंट से उसे फायदा है कि यहां कोई काम नही होने से उसे प्रतिदिन कार्यालय नही आना पड़ता।
वह जब चाहता है हफ्तें भर आफिस से नदारत रहता है तथा संस्था का अनुदान प्रस्ताव जमा करने फर्जीवाड़ा के माध्यम से बोगस प्रतिवेदन तैयार करने के कार्य से बिना परमीशन जिले से बाहर ग्वालियर, भोपाल, मुबंई, व दिल्ली के भ्रमण मे रहता है। जैसवाल द्वारा यह कार्य संस्था अध्यक्ष उमा सेन के मिली भगत से किया जा रहा है उमा सेन ने महिला मंडल कार्यालय को अपना निवास स्थान भी बना रखा है जिसमे महेन्द्र जायसवाल के अलावा किसी की इन्ट्री नहीं है संस्था कि सचिव पिछले दो वर्षों से सीधी प्रवास के समय जब जब कार्यालय आई उनसे महिला मंडल के सारे रिकार्ड जिसमे हितग्राही पंजीयन, स्वीकृत अनुदान राशि, कैश बुक एवं बिल व्हाउचर छिपाये गये इस बात का विरोध जब संस्था सचिव ममता मिश्रा द्वारा किया गया तो उन्हें अवैधानिक तरीके से सचिव पद से हटा दिया गया और उन्हें साल भर इस बात की भनक नही लगने दी तथा आनन फानन मे सचिव पद पर ऐसी सीधी साधी ग्रामीण आदिवासी महिला को मनोनीत कर लिया गया जो महेन्द्र जैसवाल और उमा सेन के भ्रष्टाचार के काले कारनामों का विरोध नहीं कर सके तथा पैसे के बल पर सहायक पंजीयन से उसका अनुमोदन भी प्राप्त कर लिया जिसके विरूद्ध संस्था सचिव ममता मिश्रा ने रजिस्ट्रार फम्र्स सोसाइटी आफिस से स्टे प्राप्त कर लिया है प्रकरण विचाराधीन है प्रकरण मे उमा सेन पार्टी है वह तो पेशी मे जाती है पर महेन्द्र जैसवाल पार्टी नही होने के बावजूद कार्यालय के बिना अनुमति अध्यक्ष के साथ पेशी मे हर बार भोपाल जाता है। वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संस्था को अब तक जो अनुदान राशि प्राप्त हुई है उसमे किसी हितग्राही को प्रत्यक्ष लाभ नही मिला है काष्ठ शिल्प के अन्तर्गत प्राप्त अनुदान राशि से विकास खण्ड कुसमी एवं सीधी के जिन लाभान्वित कारीगरों का नाम दिया गया है संस्था द्वारा उन्हें कोई प्रशिक्षण नही दिया गया ना ही उन्हें मार्केटिंग मे सम्मिलित किया गया है उमा सेन एवं महेन्द्र जैसवाल द्वारा हस्तशिल्प कार्यालय मे जो प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है वह सब फर्जीवाड़ा तरीके से तैयार किया गया प्रतिवेदन होता है वह सब गलत है।
उसमे काष्ठ शिल्प के निर्मित जो प्रोडेक्ट जमा किये जाते है वह सीधी के कारीगरों द्वारा नही बनाया जाता हैं बल्कि वह बाहर से बना बनाया लाकर जमा किया जाता है। ममत्व महिला मंडल को करोड़ों रूपये कि जो अनुदान राशि प्राप्त हुई है वह फर्जी तरीके से खोले गये खाते मे जमा हुई है तथा सारा आहरण अध्यक्ष उमा सेन के एवं कोषाध्यक्ष सरोज जैसवाल के फर्जी हस्ताक्षर महेन्द्र जायसवाल ने किये है उसके द्वारा किया गया है। फर्जीवाड़ा कि जब जांच होगी तब उसमे ऐसे चौकाने वाले तथ्य सामने आयेगे कि एक ड्रायवर महेन्द्र जैसवाल जिसका 2008-09 मे वार्षिक वेतन डेढ़ लाख के आसपास होगा वह उसी वित्तीय वर्ष मे संस्था को दो लाख ऋण दिया है तथा उसने अपने पिताजी शिवराज जैसवाल को भी नही छोड़ा उनके नाम से भी दो लाख का ऋण दिखाकर आगामी वित्तीय वर्ष मे कुल चार लाख तो ऐसे ही हड़प लिया यहां तक नही उसने उसी वित्तीय वर्ष मे सीधी से रहे एक पूर्व मंत्री (गोपद बनारस क्षेत्र) के नाम डेढ़ लाख ऋण दिखाकर उनके नाम से भी सरकारी राशि डकार गया उसी वित्तीय वर्ष मे एक आरा मशीन व्यवसायी से तीन लाख ऋण लेना दिखाया है यह सभी राशि चेक या बैंक के माध्यम से लेन देन नही किया गया है यह भी बाला बाला लेना दिखाया गया है यह सब फर्जीवाड़ा है और संस्था के पदाधिकारी इसे सही मानते है तो यह आयकर चोरी के अपराध की श्रेणी से नही बच सकते।
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