बीड़ी श्रमिक झोपड़पट्टियों में रहने के लिए विवश है
तहसील प्रमुख //नंद किशोर पटवा (बीना // टाइम्स ऑफ क्राइम)
तहसील प्रमुख से संपर्क:-75096 45718
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बीना .प्राचीनकाल से चली आ रही सामंतवादी प्रथा का अंत अब भारत की आजादी के 63 वर्षों के बाद भी नहीं हुआ है। आज भी भारतीय बंधुआ मजदूर की तरह अपने मालिक के लिए काम करता है और उसे समय पर मजदूरी तथा दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। शासन द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी और भ्रष्टाचार के कारण जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचाता और उनका लाभ मालिक अर्थात ठेकेदार उठाते है।
जानकारी के अनुसार शासन बीड़ी श्रमिकों के लिए 13 जनकल्याणकारी योजनाएं चलाती है परन्तु एक तो जानकारी का अभाव दूसरे बीड़ी निर्माताओं की उदासीनता स्वार्थ के कारण बीड़ी श्रमिकों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। अलबता बीड़ी मालिक, सट्टा दार शासकीय योजनाओं का पूरा लाभ उठाते है। और गरीब बीड़ी निर्माता के हक पर डाका डालते है। बीड़ी मालिक सट्टादार अपने परिवार रिश्तेदार के फर्जी नाम बीड़ी निर्माताओं के रूप में इन योजनाओं का लाभ बखूबी उठाते है। बीना की तीन शेर, खुरई की चरखा, खिमलासा की धनुष, एवं अर्जुन मालथौन के हजारों बीड़ी निर्माताओं के नाम की जगह एवं बीड़ी मालिक या सट्टेदार अपने परिवार या रिश्तेदार के फर्जी नामों से शासन की योजनाओं का लाभ उठाकर फलफूल रहे है तो गरीब बीड़ी निर्माता गंभीर बिमारियों की चपेट में आकर तिल तिल मरने को मजबूर है लेकिन इन की कोई सुनने वाला नहीं है, क्योंकि आज हालात यह है कि जिस के दरबार में शिकायत लेकर जाओ सभी अपनी जेब गरम कर चुप बैठ जाता है और गरीब समय की मार समझकर चुप बैठ जाता है। कुछ जगी थी आस लेकिन सब दिखावा निकला- अगले वर्ष कृषि उपज मंडी में भारतीय मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रहलाद पटेल ने बड़ी तादात में उपस्थित बीड़ी श्रमिकों का महासम्मेलन में बीड़ी श्रमिकों को उनका हक दिलाने की बात कहीं थी और इसी कार्य को आगे बढ़ाते हुए सुनील सिरोठिया ने बीड़ी श्रमिकों का बड़ी संख्या में रजिस्ट्रेशन करवाया।
उस समय बड़ी आस लेकर बीड़ी श्रमिकों ने बीना आकर फार्म भरा और अपना रजिस्ट्रेशन करवाया लेकिन उसके बाद उन रजिस्ट्रेशन के बाद कितने बीड़ी श्रमिकों को लाभ मिला इसका आज तक मालूम नहीं। शासन की 13 योजनाएं- बीड़ी श्रमिकों को हृदय रोग होना आम बात है जिसके लिए शासन 80000/- हजार रूपये इलाज को सहायता देती है। टी.वी. जैसे गंभीर बीमरारी कई बीड़ी श्रमिकों को हो गई है जिसे शासन 50000/- रूपये लेकर 1,50000/- लाख रूपयें तक ईलाज हेतु सहायता देती है। मानसिक रोगियों को 75000/- हजार रूपये ईलाज हेतु सहायता देती है। बीड़ी श्रमिकों को मकान हेतु 50000/- हजार मनोरंजन हेतु 10000/- बच्चों को जैसे प्राथमिक स्तर पर 500/-रूपये, माध्यमिक स्तर पर 2000/- हजार रूपये, हाईस्कूल से स्नातक पर 3500/- रूपये सहायता देती है। वहीं बीमा हेतु सामाजिक सुरक्षा तथा सामूहिक बीमा योजनान्तर्गत बीमों का लाभ बीड़ी श्रमिकों को दिया जाता है। लेकिन बीड़ी मालिक अपने रिश्तेदारों का नाम जिम्मेदार अधिकारियों की मिली भगत से जोड़ कर लाभ उठाते है और इतनी राशि योजनाओं के बावजूद भी बीड़ी श्रमिक झोपड़पट्टियों में रहने के लिए विवश है और बीड़ी श्रमिकों के बच्चें इस विवशता में बिना पढ़े बड़े होने के बाद इन्हीं बीड़ी सट्टों पर काम करने को मजबूर होते है।
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