हास्य परिहास :- रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
जब -जब फागुन आता है मेरा मन दुखी हो जाता है। दुखी मन से फिर वहीं तराना गाने लगता है कि ''दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना ..........! हालांकि किसी के कहने या नहीं कहने से कुछ फर्क नहीं पडऩे वाला क्योकि जिसका दर्द तो वहीं उसका इलाज कर या करवा सकता है..? वैसे माने या न माने लेकिन सच है कि दर्द का कोई स्थाई इलाज भी नहीं होता है। दर्द तो कभी भी किसी को भी किसी भी वजह से होने लग जाता है। किसी ने कहां जरूर है कि ''तुम्ही ने दर्द दिया है , अब तुम्ही दवा देना .....!लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि कई बार नहीं अकसर नीम हकीम का दिया इलाज आफत का कारण बन जाता है। फागुन का मास जब भी मेरे जीवन में आता है मैं दर्द से कहार उठता हूं। दर्द भी ऐसा है कि उसका इलाज संभव भी नहीं है..? यदि करने की कोशिस की तो पूरी जिदंगी झण्ड हो जाएगी। आप लोग सोच रहे होगें कि फागुन मास का मेरे दर्द से क्या लेना - देना ..? फागुन मास का मेरे ही जीवन से लेना और देना है। अब भैया ऐसा है कि आप ने तो अभिताभ बच्चन की फिल्म शोले तो देखी होगी। वह बुढढ़ा होगा अभिषेक का बाप मेरे जीवन में नायक नहीं खलनायक की तरह आ चुका है। उसके होली के एक गाने ने मेरी पूरी लाइफ स्टाइल बदल डाली है।
मेरे लिए उसका एक गाना पूरे जीवन भर का फंसाना बन गया है। वह होली का गाना मुझे एक ऐसा दर्द दे जाता है जिसका इलाज शायद इस जनम में हो पाना संभव नहीं है। गाने के बोल के घोल में ''रामू की साली...! से रंगा वह गाना जिसमें शायद कहीं कहा गया था कि ''आज न छोडेगें ........! अब ऐसा है भैया कि किसी को पकडऩा और छोडऩा पकडऩा तो लोगो के लिए आम बात होगी लेकिन जहां तक मेरी साली को पकडऩे की बात दूर बात तो इस जनम में संभव नहीं है क्योकि यदि मेरी साली होती तो क्या मैं मदमस्त फागुन मास में रंगने से छोड़ता....? मैं कितनी बार लोगो से अपने व्यंग लेखो के माध्यम से कह चुका हूं कि भैया मेरी कोई साली नहीं है होती लेकिन जान बुझ कर मेरी कमजोर नस को दबाने में लोग को मजा आता है या फिर वे मुझे अपने मजा के लिए सजा देते चले आ रहे है। फागुन मास में जब पलाश पूरे यौवन पर होता है ऐसे में रंगो के इस त्यौहार में सबसे अधिक कोई ''बदनाम ....! होती है या ''चिकनी चमेली ..! या फिर ''जलेबी .....!
होती है तो वह साली है। आज रहीम जिंदा होते तो पानी की बचत को मेरे नजरीए से कुछ इस प्रकार बयां करते कि ''रामू पानी राखिए बिन पानी सब सून , पानी गए न ऊबरे बिन साली सब सून......! वैसे भी फागुन में साली के बिना पानी को व्यर्थ में बहाना कहां की अच्छी बात है...? वैसे भी फागुन मास में ही नहीं वैसे भी आफ और आन सीजन में इन दिनो आजकल टी वी चैनलो पर मनोरंजक हास्य - परिहास से ओत- पोत धारावाहिको के प्रसारण में भी साली की भरमार है। वैसे साली के बारे में कई लोगो की कई बार अपनी नीजी राय होती है। कुछ लोग कहते है कि ''साली आधी घर वाली होती है......! लेकिन मेरे जैसे जीजाजी के लिए तो साली शब्द एक प्रकार से सार्वजनिक प्रताडऩा का शब्द बन गया है। अचानक फागुन की मीठी - मीठी ठंड की बिदाई के समय होलिका जला कर मैं जब अपने बिस्तर पर लेटा तो अचानक आंख लग गई और किसी ने मेरे सपने में आकर कुछ इस प्रकार कहां कि '' जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी....!
दर असल में यह किसी साली की पीड़ा या वेदना नहीं है कि वह कब अपने जीजाजी की आधी से पूरी घरवाली बनेगी......! दरअसल में यह दर्द उन जीजा लोगो का है जो कि समाज में मौजूद उस कथित मानसिकता का बोझ ढो रहे है जिसमें यह कहा जाता रहा है कि ''साली तो आधी घरवाली होती है ! अब उन लोगो की तो लाटरी लग जाती है जिन्हे एक के बदले आधा दर्जन साली ब्याज में मिल जाती है। ऐसे लोगो की तो आधा दर्जन साली आधी घरवाली हो जायेगी लेकिन उन लोगो का क्या होगा जिनकी घरवाली किसी की साली होने के साथ आधी घरवाली होगी......? ऐसे में शकीला पति तो किसी नदी नाले में डुबकी लगा लेगा या फिर कच्ची देशी ठर्रा पीकर किसी चौराहे पर लुढक़ा हुआ मिलेगा। ईश्वर न करे किसी पति को शक के चलते किसी भी प्रकार के गम में या रम में डुबना पड़े। साली के बारे में अनेक किस्से कहानियां पढने को मिलती रहती है।
साली रसमलाई भी है और वह हल्दीराम की नमकीन भी है। यदि साली को चाट और भेलपुड़ी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम सब की माँ - बहने - बहू - बेटी - मामी - फूफी - चाची - भाभी - यहाँ तक नानी और दादी भी किसी न किसी की साली रही है। ऐसे में उन लोगो के ससुराल में साली का न होना एक प्रकार का अभिश्राप होगा जिन्होने साली को लेकर लम्बी - चौड़ी अभिलाषा पाली रखी थी। साली के बिना जीवन किसी विधुर पुरूष की तरह या विधवा नारी की तरह होता है। साली के न होने का दर्द उस कहावत के समान है कि च्ज्बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा.....! अब ऐसे में उन लोगो का दर्द बाटने वाला कहां मिलता है जो कि ऐसे लोगो को साली की सुविधा उपलब्ध करवा सके। आने वाले फागुन के गुलाल और रंग के लिए किसी राखी सावंत जैसी साली के लिए नगरपालिका या सरकारी किसी मोहकमे से बोल - चाल कर निविदा या टेण्डर या कोटेशन मंगवा लेते लेकिन हाय री किस्मत इस बसंत बहार के मौसम में जब अंगना में उड़े रे गुलाल और हम करते रहे साली न होने का मलाल.......! आज के इस रंगीन मौसम में कोई कुछ भी कहे लेकिन हमारी तो आदत है बक - बक कहने की ...... हमारी बक - बक का लोग भले ही अर्थ का अनर्थ निकाले पर यह बात तो सोलह आने सच है कि इस बार जब ससुराल में साली न हो , पडौसन मतवाली न हो तब हम जैसे लोग आखिर किससे कहे कि रंग - बरसे और बलम तरसे .......! किसी को यकीन हो न हो पर साली के लिए हर साल की तरह इस साल भी तरसे ......!
मुझे एक बात आज तक समझ में नहीं आती है कि लोग साली के बिना होली या रंग पंचमी कैसी होती है......? कुछ लोगो जब यह कहते कि साली फुलझड़ी है तो कुछ लोग उसे एटम बम बताते है। मैं साली को मिसाइल या तोप मानने के बजाय उसे दिल के किसी कोने में मचलती जीजा - साली के बीच तय सामाजिक रिश्तो में बधी उस मर्यादा मानता हँू जिसमें स्वस्थ मनोरंजन - हास्य - परिहास - हसी - ठिठोली कहा जाता रहा है। भारतीय समाज में साली को को जो दर्जा मिला है वह मर्यादा से बंधा है लेकिन जब - जब मर्यादा अपनी सीमा से बाहर होती है किसी न किसी प्रकार की अप्रिय घटना या वारदात किसी न किसी परिवार को ले डुबती है। जो लोग साली को आधी घरवाली मानते है वे लोग साले को आधा घरवाला क्यों नहीं मानते.....? साले बारे में हमारे समाज की मानसिकता में अलग प्रकार की धारणा है। लोग कहते है कि खेत में नाला नहीं चाहिये , ससुराल में साला नहीं चाहिये , घर में आला नहीं चाहिये , फसल के लिए पाला नहीं चाहिये.....! जिस समाज में लोग खेत के बहने के लिए नाले को - बेड़ा गर्क होने पर साले को - घर के गिरने पर आले को - फसल के ठीक से न उग पाने के लिए पाले को जवाबदार मानते है ऐसे लोगो को चाहिये कि वे अपनी साली और साले के प्रति धारणाओं को बदले। मेरा मतलब यह कदापि यह नही है कि मेरी साली नहीं है तो मैं लोगो की साली के साथ उनके इंटर टीटमेंट में किसी खलनायक की भूमिका निभाऊ......!
सामाजिक रिश्तो में तो यह कहा गया है कि छोटी साली बहन और बेटी की तरह होती है लेकिन ऐसा मानने वाले या समझने वाले बहँुत कम होगें। मेरे एक मित्र ने मुझे एक नया अनुभव बताया उसका कहना है कि कोई भी व्यक्ति किसी राह चलती युवती या महिला को आखिर किस रिश्ते में देखे......! यदि वह उसे माँ समझे तो उसके बाप का चरित्र पर कीचड़ उछलेगा। बहन समझे तो जीजा की इमेज खराब होगी। भाभी समझे तो भैया पर मुसीबत आयेगी। मामी समझे तो बेचारा मामा ब्याज में जूते खायेगा। चाची समझेगा तो चाचा का हाल का बेहाल हो जायेगा। ऐसे में उसके सामने सामने वाली को कुछ और समझने और दुसरो के चरित्र पर लालछन लगे इससे अच्छा है कि वह खुद ही बदनामी का ठीकरा अपने सर पर फोड़ ले ......! सामाजिक रिश्तो में वैसे देखा जाये तो साली आधी की जगह पूरी घरवाली तो कई लोगो की बनी है लेकिन उन बहनो का भी बसा - बसाया घर संसार लंका की तरह जल कर राख हो गया जिसे सोने की कहा जाता रहा है। सुखी परिवार तब तक सुखी रहता है जब तक की उस कोई आफत न आ आये लेकिन साली तो चलती फिरती आफत होती है। इसी तरह साला भी ज़हर के प्याले की तरह होता है जब तारक मेहता के उल्टा चश्मा की दया भाभी के भाई सुंदर की तरह साला मिल जाये.....!
कभी - कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि हमारे जैसे लोगो के साथ उनके ससुराल वालो ने इतना बड़ा अन्याय क्यो किया। यदि हमारे ससुराल वाले बता देते कि भैया तुम्हे अपनी बीबी के साथ में इनाम के रूप में कोई साली या आधी घरवाली की स्कीम नहीं मिलेगी.....! यदि वो पहले ही दुत्कार- फटकार - लताड़ देते तो हम उसी समय कोई दुसरा घर या ठौर ठिकाना ढुंढ लेते.....! कम से कम आज की इस उम्र की पीड़ा से पींड तो छुट जाता। अब उन लोगो को तो मेरे साथ मिल कर एक साली की डिमांड को लेकर युनियन बना लेनी चाहिये और हमें भी साली दिलाओ बैनर के तले सास - ससुर के द्धारा किये गये अन्याय के खिलाफ दस जनपथ पर गुहार लगानी चाहिये। सरकार सबके लिए कोई न कोई योजना - पैकेज - लालीपाप लेकर आ जाती है लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी किसी भी सरकार ने साली विहीन जीजा लोगो के लिए कोई विशेष पैकेज नहीं लाया और न दिया। ऐसे में हमें उन नारी शक्तियो की भी जरूरत पड़ सकती है जिनके कोई जीजा नहीं है। साझा प्रदर्शन से हो सकता है कि सरकार हम दोनो पीडि़त पक्षो के बीच कोई सुलहनाम या समझौता करवा दे जिसके चहते बिना जीजा वाली नारी को जीजा और बिना साली वाले जीजा को साली मिल जाये। सरकार को ऐसी अति महत्वाकांक्षी योजनाओ को सरकारी मोहर लगानी चाहिये लेकिन सरकार को ऐसे लोगो के बारे में सोचने के बजाय वह बिना वजह के पाकीस्तान और अमेरिका के पीछे पड़ी रहती है। अब देश के राजनैतिक दलो का भी हाल इस अहम मुद्दे पर संतोषप्रद नहीं है। अब नेतओ की बात करे तो उनकी तो सेके्रटी साली की तरह ही होती है जो कि उनके हर परसनल फाइलो को निकालती और संभालती रहती है। ऐसे में राजनैतिक पाटी के नेता भी इस अहम अंतराष्ट्रीय सवाल पर क्यों आ गले पड़ जा की तरह महत्व दे। इस देश में साली के बिना चंाद पर जाने की या चांद हो जाने की परिकल्पना नही की जा सकती।
अथ श्री साली पीड़ा अध्यात्म को अब मैं यह पर समाप्त करता हँू क्योकि मुझे किसी ने बताया कि इंटरनेट की गुगल बेव साइट पर सर्च इंजीन में डब्लयू - डब्लयू साली डाट काम लिख कर सर्च करने से साली मिल सकती है। अब आप लोगो से मैने साली के न होने की जो पीडा बाटी है उसे किसी से मत कहना वरना मैं समाज में किसी को मँुह दिखाने के लायक नहीं रहँूगा क्योकि जिसकी भी साली होगी वह मुझे तिस्कार की दृष्टि से देखेगा तथा हर राह चलती वह नारी भी मुझे देख कर ताने मारती फिरेगी और अपनी सखी - सहेली से कहती फिरेगी देखो बेचारा कितना बदनसीब है उसके साली भी उसके करीब नहीं है। अब मैं इन सब बातो को यही पर विराम देते हुये उस ईश्वर से सिर्फ यही कह सकता हँू कि हे भगवान तेरा क्या चला जाता यदि तू मुझे घरवाली के साथ - साथ एक साली दे जाता......!
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