खबर शायद तबकी है जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन रहे थे. मायावती तब तक निवर्तमान मुख्यमंत्री ही थीं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के बनारस से छपनेवाले राष्ट्रीय सहारा अखबार में एक खबर छपी. खबर गाजीपुर डाक एडिशन में थी जिसमें कहा गया था कि मायावती के शासन काल में एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय या महाविद्यालय को अनुदान सूची में शामिल नहीं किया गया. मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में 2006 में जो निर्णय किया गया था उस पर भी अमल नहीं किया गया.
खबर बहुत छोटी सी है लेकिन इस खबर के आखिरी पैरे में जो लिखा है वह बहुत बड़ा क्रूर मजाक है. एक कॉलम की इस खबर के आखिरी पैरे में मायावती को गालियां निकालते हुए लिखा गया है- "उस वक्त सरकार गिर जाने के परिणामस्वरूप निवर्तमान मुख्यमंत्री एकरी मां क चोदौ मायावतिया ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया."
सहारा समूह ने देर से इस गलती के पकड़ में आने के बाद करीब आधा दर्जन लोगों को इसकी सजा देते हुए उन्हें नौकरी से निकाल दिया है जिसमें स्थानीय संपादक भी शामिल हैं. लेकिन इस खबर की विडंबना शायद यह नहीं है कि अखबार में एक पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में गाली छप गई. अखबार के लिए शोध का विषय होगा कि क्या यह गाली लिखनेवाले पत्रकार सवर्ण थे? फिर भी किसी सवर्ण मानसिकता से ज्यादा यह अखबारी दुनिया की विडंबना है जहां कई बार लिखनेवाले को भी नहीं पता होता कि वह जो सोच रहा है क्या वही लिख रहा है? और अगर उसके सोचने में ही गाली गलौज है तो क्या वह वही तो नहीं लिख रहा है?
पूर्वी उत्तर प्रदेश में गाली गलौज के साथ बोलना रोजमर्रा की जिंदगी है. मायावती के लिए जिस गाली का इस्तेमाल किया गया है वह हर एक व्यक्ति अमूमन एक दूसरे के खिलाफ खुलकर करता है. क्रोध में भी और शांतिकाल में भी. क्रोध में आमने सामने तो शांतिकाल में पीठ पीछे. इसलिए इस विडंबनापूर्ण सच्चाई के कई और पहलू भी हो सकते हैं जिनकी जांच जरूरी है ताकि भविष्य में फिर किसी पर आंच न आये.
sabhar- visfot
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