भोपाल से रवीन्द्र जैन
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भोपाल। प्रदेश कांग्रेस में अब प्रवक्ता केके मिश्रा को लेकर पार्टी अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के ज्ञान की चर्चा शुरू हो गई है। भूरिया ने मिश्रा को यह आरोप लगाकर पद से हटाया है कि उन्होंने भाजपा सरकार से बंगला लिया और अपनी सुरक्षा के लिए गनमेन लिया। केके मिश्रा पर आरोप लगाया गया है कि उनका शिवराज सरकार से कथित मेलजोल था। कांग्रेस अध्यक्ष ने जैसे ही मिश्रा को पद से हटाया, वैसे ही इस अवसरवादी पार्टी के कुछ छुटभैया नेता पुलिस मुख्यालय में केके मिश्रा को मिले गनमेन को हटवाने के लिए सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। यह राजनीति का सबसे बड़ा मजाक है कि जिन कांतिलाल भूरिया ने राज्य सरकार से भोपाल में बड़ा सा बंगला ले रखा है और भारी भरकम सुरक्षा ले रखी है वे ही अपनी पार्टी के एक सशक्त योद्धा के खिलाफ लड़ रहे हैं।
अब भूरिया को कौन बताए कि प्रोफेसर कॉलोनी के जिस दक्षिण मुखी बंगले के एक कमरे में केके मिश्रा पिछले कई सालों से ठहरे हुए थे वह कांग्रेस के विधायक अश्विन जोशी को विधायक के रूप में मिला सरकारी आवास है न कि राज्य सरकार की केके मिश्रा को दी सौगात। जहां तक सुरक्षा के नाम पर गनमेन मिलने की बात है तो उसकी कहानी भी सुन लें। पचौरी के कार्यकाल में मिश्रा को टेलिफोन और पत्र के जरिए जान से मारने की धमकियां मिलीं थी तब स्वयं प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने इस संबंध में मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और पुलिस महानिदेशक से केके मिश्रा की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा था। शिवराज के निर्देश पर पुलिस मुख्यालय की खुफिया शाखा ने इन धमकियों का परीक्षण करने के बाद केके मिश्रा को सुरक्षा गार्ड मुहैया कराया था। केके मिश्रा लगभग सात साल पहले इंदौर से भोपाल आए थेे और उन्होंने इन सात सालों में कम से कम सात सौ ऐसे बयान सरकार के खिलाफ जारी किए जिससे राज्य सरकार स्वयं को असहाय महसूस करती रही। मिश्रा केवल बयानों तक ही सीमित नहीं थे।
उन्होंने सूचना के अधिकार को हथियार बनाया और राज्य सरकार व प्रशासनिक मशीनरी के खिलाफ प्रमाणिक साक्ष्य एकत्रित करके लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू, न्यायालयों के भी दरवाजे खटखटा दिये। तय है कि लंबे समय से केके मिश्रा सत्ता के साकेत में बैठे लोगों के लिए सरदर्द बने हुए थे। ऐसे समय में जबकि कांग्रेस लगातार आठ वर्षों से विपक्ष में बैठी है। कांग्रेस के कई जाने पहचाने चेहरे सत्ता सुख से वंचित होने के बाद अपने घर की चार दीवारियों में कैद हैं तब उम्मीद की जाती है कांग्रेस की लड़ाई लडऩे वाले केके मिश्रा जैसे योद्धा का सम्मान किया जाएगा लेकिन जिस तरह केके मिश्रा को पद से हटाया गया है उससे कांग्रेस के तमाम नेताओं, कार्यकर्ताओं में हताशा ही उत्पन्न होगी। कांतिलाल भूरिया को निकट से जानने वाले यह जानते हैं कि भूरिया घाघ राजनेता नहीं हैं। वे आसानी से लोगों पर भरोसा कर लेते हैं। केके मिश्रा के मामले में भी यही हुआ है। जब से भूरिया प्रदेश अध्यक्ष बने हैं उनके चारों ओर इंदौर के नेताओं, व्यवसायियों और अफसरों की चौकड़ी बन गई है। यह चौकड़ी भूरिया के पीए प्रवीण कक्कड़ के जरिए जो चाहती है सो कराती है। केके को हटवाने में इस चौकड़ी की महत्वपूर्ण भूमिका है। भूरिया और मिश्रा के बीच मतभेद की दीवार खड़ी करने का काम कई महीने से इंदौर, ग्वालियर एवं भोपाल में किया जाना था। इसमें कई पात्र अलग-अलग भूमिकाएं निभा रहे थे। यह कहानी लंबी है लेकिन संक्षेप में बता दें कि षडय़ंत्र के तहत ग्वालियर के रिटायर्ड फौजी ने भूरिया की मौसी सास से शिकायत की कि केके मिश्रा इंदौर में एक पुलिस अफसर को ब्लेकमेल कर पैसे मांग रहे हैं। इस शिकायत के बाद केके मिश्रा ने भूरिया को दो टूक शब्दों में सफाई दी कि आरोप सिद्ध हो जाएं तो वह किसी भी बड़ी से बड़ी सजा के लिए तैयार हैं। इस दौरान केके मिश्रा ने झाबुआ में खनिज घोटाले को लेकर बयान जारी कर दिए। खनिज व्यवसाय से जुड़े लोग भूरिया के दर पर पहुंच गए और उन्होंने भी मिश्रा के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया। इसी बीच भूरिया के पीए प्रवीण कक्कड़ के बेटे सलिल कक्कड़ को शराब फैक्टरी बनाने का लायसेंस मिलने की खबर मीडिया में सुर्खियां बना तो यह आरोप भी केके मिश्रा के सर मढ़ दिया गया। मजेदार बात यह है कि ग्वालियर के रिटायर्ड फौजी और भूरिया की मौसी सास ने मिश्रा पर लगाए गए आरोप स्वयं वापिस ले लिए हैं। भूरिया के पास इस बात के भी कोई प्रमाण नहीं हैं कि सलिल कक्कड़ के लायसेंस की खबर केके ने छपवाई थी। लेकिन फिर भी केके मिश्रा फिलहाल शहीद कर दिए गए हैं।
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