Monday, March 19, 2012

स्वामित्व हीन सम्पत्ति के चोरी के आरापी दोषमुक्त

फरियादी और अनुसंधान अधिकारी की दोहरी भूमिका पर उठा सवाल

बैतूल / / भारत सेन

कानून और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के अनुसार कोई फरियादी अपने ही मामले में अपराध की विवेचना नहीं कर सकता। पुलिस चौकी प्रभारी ने बतौर फरियादी चोरी का अपराध पंजीबद्ध कर, सम्पत्ति जप्त कर अपराध में विवेचना भी कर डाली और जप्त सम्पत्ति का सुपुर्दनामा बिना अदालत के आदेश के ही कर डाला। पुलिस द्वारा अदालत में चोरी के एक ऐसे अपराध का आरोप पत्र पेश किया गया जिसमें सम्पत्ति का कोई दावेदार ही नहीं था और जप्त सम्पत्ति को लेकर किसी ने कभी कोई चोरी की रिर्पोट भी नहीं की थी। न्यायालय में आरोपीगण को एक ऐसे अपराध में अभियोजन की कार्यवाही का सामना करना पड़ा जिसमें अन्तत: सजा नहीं सुनाई जा सकती थी। विशेष न्यायालय द्वारा स्वामित्व हीन सम्पत्ति के अपराध में आरोपी को दोषमुक्त करने के बाद अब यह सवाल उठने लगा हैं कि शासन के द्वारा दी गई कानून की शक्ति का दुरूपयोग करने वाले पुलिस अधिकारियों की वैधानिक जिम्मेदारी आखिर कब तय होगी? आरोपी के मानवअधिकारों का भला क्या होगा?

क्या हैं मामला
पुलिस थाना सारणी के अपराध क्रमांक 089/10 के अनुसार पुलिस चौकी प्रभारी राजेन्द्र सोनी को दूरभाष पर सुबह 3:35 बजे आरक्षक बंशीला से सूचना मिलती हैं कि गश्त के दौरान एक ट्रक क्रमांक एमपी 48/एच-0152 में जिसका ड्राईवर किशोर गोस्वामी हैं, एक व्यक्ति दीनदयाल के साथ राखड़ डेम से निकली हुई राखड़ ले जा रहा हैं। आरक्षक बंशीलाल द्वारा दोनो आरोपी को चौकी लाया गया। मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड, सारनी के सहायक यंत्री सिविल आरके जैन एवं अयुब खान द्वारा ट्रक में भरी बोरी का सेम्पल लिया गया और बताया गया कि बोरियों में भरी राख स्निोस्फयर हैं जो कि नदी, नालों में नहीं पाई जा सकती हैं। पुलिस द्वारा ट्रक सहित 530 बोरिया जप्त की गई। आरोपीगण के विरूद्ध अपराध धारा 379/34 भारतीय दण्ड विधान का 24 अप्रैल 10 को दर्ज किया गया। पुलिस चौकी प्रभारी द्वारा तहकीकात पूर्ण कर आरोपीगण के विरूद्ध न्यायालय में आरोप पत्र पेश किया गया।

विशेष न्यायालय में आरोप तय 
विशेष न्यायालय द्वारा आरोपीगण के विरूद्ध विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 136(1) तथा 379/34 भारतीय दण्ड विधान का अभियोग तय कर विचारण प्रारंभ किया गया। आरोपीगण की ओर से अपने बचाव में सूचना के अधिकार कानून के तहत पावर जनरेटिंग कंपनी से प्राप्त जानकारी पेश की गई।

किसी ने नहीं की चोरी की रिर्पोट
विशेष न्यायाधीश प्रभात कुमार मिश्रा की अदालत में अभियोजन की ओर से कुल आठ गवाहों का परीक्षण करवाया गया। अभियोजन के द्वारा किसी भी गवाह को पक्षद्रोही घोषित नहीं किया गया। गवाहों के परीक्षण एवं प्रतिपरीक्षण में विचारण न्यायालय के समक्ष प्रमुख गवाह कार्यपालन यंत्री आरएस चौधरी ने बताय कि विद्युत उत्पादन के बाद कोयले के जलने से बची हुई राख को पाईप लाईन के माध्यम से राखड़ बांध में संग्रहित किया जाता हैं। पानी नालियों से खेत एवं नालों में बह जाता हैं जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रहता हैं। यदि उन स्थानों से कोई राख इकट्ठी की जाती हैं तो उसे पावर जनरेटिंग कंपनी की सम्पत्ति होना नहीं माना जा सका हैं। राखड़ बांध की सुरक्षा के लिए उसके अधीनस्थ कर्मचारी एवं प्राईवेट कंपनी लगी हुई हैं जो 24 घंटे राखड़ की सुरक्षा करती हैं। सहायक कार्यपालन यंत्री राजेश कुमार जैन ने बताया कि फरवारी 2010 से राखड़ बांध की सुरक्षा गार्डो ने राखड़ बांध से राख चोरी होने की कोई शिकायत उसे नहीं की हैं। सहायक अभियंता अयुब खान ने बातया कि पुलिस वालों ने राखड़ की बोरियां उसे सुपुर्दगी में दे दी थी। राख का कोई रासायनिक परीक्षण नहीं किया गया था। तीनों गवाहों में से किसी ने भी राखड़ चोरी होने की रिर्पोट नहीं की।

विवेचना की खामियां
विचारण न्यायालय के समक्ष प्रमुख गवाह चौकी प्रभारी राजेन्द्र सोनी ने स्वीकार किया कि पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड सारणी की ओर से किसी भी अधिकारी ने राखड़ चोरी होने की कोई रिर्पोट नहीं की थी। जप्तशुदा राखड़ की बोरियों से सेम्पलिंग किए जाने के संबंध में कोई पंचनामा नहीं बनाया गया। न्यायिक विज्ञान प्रयोग शाला भोपाल के लिए राखड़ का कोई नमूना जप्त नहीं किया गया। जप्त सम्पति को अथवा सेम्पल को न्यायालय में पेश नहीं किया गया। न्यायालय से सुपुर्दगी आदेश के बिना ही जप्त सम्पत्ति का निराकरण कर दिया गया। ट्रक एवं राखड़ जप्ती पंचनामा में स्वतंत्र गवाहों के उपलब्ध होने के बावजूद पुलिस कर्मियों को गवाह बनाया गया। किस स्थान से राखड़ चोरी की गई उस स्थान का नक्षा भी नहीं बनाया गया। गवाह राजेन्द्र कुमार सोनी ने यह भी स्वीकार किया कि अपराध पंजीबद्ध करने से लेकर विवेचना की सम्पूर्ण कार्यवाही उसी के द्वारा की गई थी। 

विचारण में कानून और न्याय का सवाल
विशेष न्यायाधीश प्रभात कुमार मिश्रा ने साक्ष्य की विवेचना करने पर यह पाया कि चोरी के अपराध में संपत्ति के मालिक द्वारा उसके कब्जे से संपत्ति चुराये जाने की शिकायत किया जाना आवश्यक हैं। पावर जनरेटिंग कंपनी की ओर से राखड़ चोरी जाने के संबंध में कोई रिर्पोट नहीं की गई। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 136 के अंतर्गत कार्यवाही करने के लिए यह आवश्यक हैं कि विद्युत कंपनी की ओर से पुलिस को रिर्पोट की जाए। विद्युत कंपनी ने पुलिस को कोई रिर्पोट नहीं की हैं ऐसी स्थिति में आरोपीगण को विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 136 के तहत दण्डित नहीं किया जा सकता। 
चौकी प्रभारी राजेन्द्र सोनी इस मामले में फरियादी भी हैं और सम्पूर्ण अनुसंधान उसी ने किया हैं। विद्वान न्यायाधीश ने अपने फैसले में लिखा हैं कि फरियादी एवं अनुसंधानकत्र्ता एक नहीं होना चाहिए। फरियादी हितबद्ध होता हैं। फरियादी एवं अनुसंधान अधिकारी एक ही पुलिस अधिकारी हो तो उस दशा में आरोपीगण को दंडित नहीं किया जा सकता। अभियोजन का प्रकरण संदेह से परे प्रमाणित नहीं होने से आरोपीगण को दोषमुक्त किया गया। आरोपी की ओर से ऐजाज खान अधिवक्ता द्वारा पैरवी की गई।
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