प्राइवेट प्रेक्टिस के साथ प्राइवेट अस्पतालों से मोटी फीस लेकर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे
तहसील प्रमुख //नंद किशोर पटवा (बीना // टाइम्स ऑफ क्राइम)
तहसील प्रमुख से संपर्क:-75096 45718
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बीना . बीना शासकीय अस्पताल में पदस्थ डॉक्टरों द्वारा निजी पे्रक्टिस में मनमर्जी की जा रही है। इन डॉक्टरों के अपने परिजनों के नाम से निजी अस्पताल खोल रखे है। जिनमें सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रेक्टिस के संबंध में प्रदेश सरकार द्वारा बनाए नियमों का खुला उल्लघंन हो रहा है। इस के बावजूद जिला स्वास्थ्य विभाग से लेकर जिला प्रशासन भी मूदर्शक बना बैठा है या फिर कुछ सांठगांठ कर नियमों की अवहेलना की जा रही है एवं शासकीय डॉक्टरों द्वारा निजी अस्पतालों में मरीजों के साथ के साथ जमकर लूटखसोट की जा रही है। इसी तरह की लूट का शिकार बीना एक पत्रकार हुआ तो उस पत्रकार ने उस शासकीय डॉक्टर ए.के. जैन जो गंजबसौदा सरकारी अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ के पद पर पदस्थ है। लेकिन वीर सावरकर वार्ड उसे समाधान क्लीनिक के नाम से निजि अस्पताल खोलकर अपने पुत्र अंशुल जैन एवं नेहा जैन के साथ ज्यादातर समय अपने निजी क्लीनिक में रहते है एवं अपने कत्र्तव्यों के प्रति लापरवाह रहते है। वैसे बीना शासकीय अस्पताल में वर्षों से जमे डॉक्टरों ने अपने निजी अस्पतालों के साथ बीना नगर में बन गए बड़े-बड़े अस्पतालों में मरीजों के हिसाब से वहां भी अपना ज्यादा तर समय वहां देते है जहां पर इन डॉक्टरों को अधिक से अधिक पैसा मिलता है। शासकीय अस्पताल तो इन डॉक्टरों को रास ही नहीं आता है। लेकिन मजबूरी होती है कि खानापूर्ति करना है तो समय पास करने आते है। अन्यथा अस्पताल में पदस्थ ज्यादातर डॉक्टरों को अस्पता में आने वाले मरीजों से एलर्जी होती है क्योंकि अस्पताल में आने वाला मरीज गांव का गरीब आदमी होता है।
क्या है मामला-
बीना के एक प्रतिष्ठित पत्रकार प्रमेन्द्र जाटव के भतीजे विक्रांत जाटव को उल्टी होने पर वीर सावरकर वार्ड तीन में संचालित समाधान क्लीनिक पर डॉ. ए.के.जैन को 1 मार्च 11.20 पर इलाज के लिए ले गए जिसकी जांच कर कुछ दवा एवं इजेक्शन लगाकर 1.15 पर इलाज कर विक्रम जाटव की अस्पताल से छुट्टी कर 900/- रूपये का भुगतान कर बिल दे दिया गया। जब प्रमेन्द्र जाटव ने जब डॉक्टर से पर्चा बनाकर देने की बात कहां तो डॉ. ने जो पहले दवा के पर्चा अपने क्लीनिक के अंदर खोले गए मेडिकल के पर्चा की जगह दूसरी ऊंची कम्पनी की दवा का पर्चा लिखकर पकड़ा दिया गया। क्योंकि जो पहले मरीज को दवा दी गई थी वह डॉ. जैन द्वारा दिया गया पर्चा था। और जब 900/- रूपये का पर्चा मांगा गया तो दूसरी दवा का पर्चा बना कर दे दिया जिसकी शिकायत मुख्यमंत्री से आन लाईन की गई है कि शासकीय डॉक्टर निजी अस्पतालों में पर्चियों के खेल में किस तरह लोगों को लूट रहे है।
गरीबों की कोई नहीं सुनता-
सरकारी अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टरों पर ठोस कार्यवाहीं नहीं होने के कारण जिला अस्पतालों में अधिक समय देना और मोटी फीस लेना कमजोर गरीब आदमी की कोई नहीं सुनता है वैसे सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टर मरीजों को अपनी निजी अस्पतालों में आकर चेकअप कराने की बात कहते हैं। कुछ मरीज सक्षम होते है तो कुछ मजबूरी में जुगाड़ कर या अपना कुछ गिरवी रख कर इलाज करवाते है। लेकिन गरीब व्यक्ति सरकारी अस्पताल में तड़पता रहता है, पर उसकी कोई नहीं सुनता और गरीब अपने दर्द और गरीबी की लाचारी के लिए आंसू बहाता है लेकिन जब ऊपर से भगवान ने उसे गरीब बनाकर सजा दी है तो नीचे डॉक्टर रूपी भगवान उस गरीब मरीज की अपेक्षा कर उसे तड़प तड़प कर मरने के लिए छोड़ देता है । इसके बाद भी दोनों भगवान का दिल नहीं पसीजता है।
क्या है मामला-
बीना के एक प्रतिष्ठित पत्रकार प्रमेन्द्र जाटव के भतीजे विक्रांत जाटव को उल्टी होने पर वीर सावरकर वार्ड तीन में संचालित समाधान क्लीनिक पर डॉ. ए.के.जैन को 1 मार्च 11.20 पर इलाज के लिए ले गए जिसकी जांच कर कुछ दवा एवं इजेक्शन लगाकर 1.15 पर इलाज कर विक्रम जाटव की अस्पताल से छुट्टी कर 900/- रूपये का भुगतान कर बिल दे दिया गया। जब प्रमेन्द्र जाटव ने जब डॉक्टर से पर्चा बनाकर देने की बात कहां तो डॉ. ने जो पहले दवा के पर्चा अपने क्लीनिक के अंदर खोले गए मेडिकल के पर्चा की जगह दूसरी ऊंची कम्पनी की दवा का पर्चा लिखकर पकड़ा दिया गया। क्योंकि जो पहले मरीज को दवा दी गई थी वह डॉ. जैन द्वारा दिया गया पर्चा था। और जब 900/- रूपये का पर्चा मांगा गया तो दूसरी दवा का पर्चा बना कर दे दिया जिसकी शिकायत मुख्यमंत्री से आन लाईन की गई है कि शासकीय डॉक्टर निजी अस्पतालों में पर्चियों के खेल में किस तरह लोगों को लूट रहे है।
गरीबों की कोई नहीं सुनता-
सरकारी अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टरों पर ठोस कार्यवाहीं नहीं होने के कारण जिला अस्पतालों में अधिक समय देना और मोटी फीस लेना कमजोर गरीब आदमी की कोई नहीं सुनता है वैसे सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टर मरीजों को अपनी निजी अस्पतालों में आकर चेकअप कराने की बात कहते हैं। कुछ मरीज सक्षम होते है तो कुछ मजबूरी में जुगाड़ कर या अपना कुछ गिरवी रख कर इलाज करवाते है। लेकिन गरीब व्यक्ति सरकारी अस्पताल में तड़पता रहता है, पर उसकी कोई नहीं सुनता और गरीब अपने दर्द और गरीबी की लाचारी के लिए आंसू बहाता है लेकिन जब ऊपर से भगवान ने उसे गरीब बनाकर सजा दी है तो नीचे डॉक्टर रूपी भगवान उस गरीब मरीज की अपेक्षा कर उसे तड़प तड़प कर मरने के लिए छोड़ देता है । इसके बाद भी दोनों भगवान का दिल नहीं पसीजता है।
डॉ. ने कहां हाँ चलाते है निजी क्लीनिक-
जब डॉ. ए.के.जैन से इस संबंध में जानकारी ली तो कहा कि मैं गंजबसौदा में शिशु रोग विशेषज्ञ के पद पर पदस्थ हूं। पर पारिवारिक कारणों से मैंने वी.आर.एस. हेतु आवेदन भोपाल में दिया है। अभी तक मुझे रिलीव नहीं किया गया एवं मैं गंजबसौदा अस्पताल से वेतन भी नहीं ले रहा हूं इसलिए मैं अपने निवास पर अपने बच्चों के साथ अस्पताल चला रहा हूं। वैसे बीना के कई डॉक्टर बीना के बीना में प्राइवेट प्रेक्टिस के साथ प्राइवेट अस्पतालों से मोटी फीस लेकर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे है आपको वे नहीं दिखते है।
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